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पाकिस्तान में जावेद अख्तर के दिए एक बयान पर सोशल मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। लाहौर में मशहूर शायर फैज अहमद फैज की याद में हो रहे फैज फेस्टिवल में जावेद अख्तर शिरकत कहने पहुंचे। कार्यक्रम के दौरान एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि आप कई बार पाकिस्तान आ चुके हैं। जब आप वापस जाएंगे तो क्या अपने लोगों से कहेंगे कि पाकिस्तानी अच्छे लोग हैं। इस सवाल के जवाब में अख्तर ने कहा- हमें एक-दूसरे पर इल्जाम नहीं लगाना चाहिए। इससे कोई मसला हल नहीं होगा। हमने देखा है कि मुंबई पर हमला कैसे हुआ। वो आतंकवादी नॉर्वे या इजिप्ट से नहीं आए थे। वो आतंकवादी आपके देश में ही खुलेआम घूम रहे हैं।

हिंदुस्तानियों ने इसके खिलाफ शिकायत की है। उन्हें इससे परेशानी है। जावेद अख्तर के इस बयान पर हिंदुस्तान के बहुत से लोग गदगद हैं। खासकर वे, जिन्हें पाकिस्तान सबसे बड़ा दुश्मन नजर आता है। कंगना रानौत ने भी जावेद अख्तर के इस बयान की तारीफ की है कि पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा। इस तरह की तारीफ सुनकर समझा जा सकता है कि जावेद अख्तर के जवाब पर किस किस्म के लोग अधिक खुश हुए हैं। कंगना रानौत अपनी संकीर्ण सोच के कई उदाहरण अतीत में प्रस्तुत कर चुकी हैं और जिन जावेद अख्तर ने उन पर मानहानि का मुकदमा दायर कर रखा है, उनकी बात कंगना को इसलिए अच्छी लग रही है, क्योंकि उसमें पाकिस्तान की आलोचना हुई है।

हालांकि जावेद अख्तर के बयान को डिकोड किया जाए, तो उन्होंने कोई ऐसी बात नहीं की, जिसे हिंदुस्तान के लोग न जानते हों या पाकिस्तान के लोग न समझते हों। आतंकवाद से जितना हिंदुस्तान पीड़ित है, उतना ही परेशान पाकिस्तान भी है। सत्ता में बैठे लोग राजनीति का चश्मा लगाकर आतंकवाद का हल ढूंढा करते हैं। और जनता का ध्यान जरूरी मुद्दों से हटाने के लिए धर्म से जुड़े विवादों को जन्म देते हैं। जिससे समाज में हमेशा एक तनाव की स्थिति बनी रहती है और आतंकवाद फलता-फूलता है।

हिंदुस्तान से लेकर पाकिस्तान तक यही कहानी है। इसी कहानी को दो-चार पंक्तियों में जावेद अख्तर ने बयां कर दिया। जब वे कह रहे हैं कि हमें एक-दूसरे पर इल्जाम नहीं लगाना चाहिए, तो इसका मतलब यही है कि दोनों देशों की जनता के बीच किसी किस्म का दुराव नहीं होना चाहिए। उनके बयान पर कार्यक्रम में मौजूद दर्शकों ने खूब तालियां बजाईं। इससे जाहिर होता है कि वहां की आम जनता भी अमन-चैन ही चाहती है। लेकिन उन्मादी बयान देने वाले वहां भी हैं और यहां भी हैं। ऐसे लोगों की संख्या कम थी। लेकिन जिस तेजी से घृणा और नफरत का प्रसार होता जा रहा है, यह डर बढ़ रहा है कि धर्मांध और उन्मादी लोगों की संख्या बढ़ जाएगी और फिर शांति की बात पर ताली बजाने वाले कम हो जाएंगे।

जावेद अख्तर ने पाकिस्तान जाकर मुंबई हमलों के अपराधियों के खुले घूमने की बात कह कर हिम्मत का काम तो किया है, लेकिन यह बात ध्यान देने की है, ये बातें उन्होंने फैज फेस्टिवल के मंच से कही। अगर आज फैज अहमद फैज होते, तो शायद वे भी ऐसा ही कुछ कहते और मुमकिन है, उन्हें फिर सलाखों के पीछे डाल दिया जाता। अपने प्रगतिशील विचारों और वैसी ही रचनाओं के कारण पाकिस्तान में फैज अहमद फैज को जेल भी हुई।

लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी पर उनका यकीन हमेशा कायम रहा। उनकी याद में हुए कार्यक्रम में एक जरूरी मसले पर बिल्कुल सही विचार जावेद अख्तर ने रखे हैं। यह पहली बार नहीं है, जब जावेद अख्तर ने कट्टरता और हिंसात्मक विचारों की मुखालफत की हो। वे हिंदुस्तान में मौजूदा परिदृश्य पर कई बार अपनी चिंताएं जाहिर कर चुके हैं। पिछले साल सोशल मीडिया ऐप बनाकर मुस्लिम महिलाओं की बिक्री का घृणित विचार जिस तरह से प्रसारित किया गया और इसी दौरान धर्म संसदों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगला गया, तब जावेद अख्तर ने इसकी कड़ी निंदा की ही थी, साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर सवाल भी उठाए थे। जनवरी 2022 का उनका ट्वीट है कि सौ महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी हो रही है, तथाकथित धर्म संसद सेना और पुलिस को लगभग 200 मिलियन भारतीयों के नरसंहार की सलाह दे रही है। मैं हर एक की चुप्पी, खास तौर पर प्रधानमंत्री की चुप्पी से हैरान हूं। क्या यही है सब का साथ है।

इससे पहले मार्च 2016 में राज्यसभा की सदस्यता खत्म होने पर अपने विदाई भाषण में उन्होंने असद्दुदीन ओवैसी का नाम लिए बिना उनके भारत माता की जय न बोलने के आह्वान पर तंज कसा था। अपने भाषण के बाद जावेद अख्तर ने भारत माता की जय के नारे भी लगाए। उन्होंने एक ओर इस्लाम के नाम पर कट्टरता के नाम पर श्री ओवैसी का विरोध किया, तो वहीं सत्तारुढ़ भाजपा को नसीहत दी थी कि वह अपने उन विधायकों, सांसदों, और मंत्रियों को रोके जो नफरत फैलाने वाले बयान देते हैं। श्री अख्तर ने कहा था कि देश में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं जिन्हें कोई उखाड़ नहीं सकता, लेकिन लोकतंत्र तभी है जब धर्मनिरपेक्षता है। लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता के बिना नहीं रह सकता।

भारत में लोकतंत्र के लिए खतरा दिख रही तमाम बातों की ओर जावेद अख्तर पहले ध्यान दिला चुके हैं। लेकिन इससे पहले याद नहीं पड़ता कि सोशल मीडिया पर उनके बयान की ऐसी चर्चा हुई हो। अभी केवल पाकिस्तान की आलोचना के कारण अगर उनकी बात की तारीफ हो रही है, तो फिर यह तय है कि उनकी बात का मर्म ही लोगों ने नहीं समझा है। मुंबई हमलों के अपराधियों का खुले घूमना मानवता के हित में नहीं है। न ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वालों को कानूनी संरक्षण मिलना सही है। सीमा के आर-पार इंसानियत और अमन की परिभाषाएं एक जैसी ही हैं।

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