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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

पिछले विधानसभा चुनाव के पहले पंजाब में यह मुद्दा उठा था कि क्या आम आदमी पार्टी खालिस्तान समर्थकों के समर्थन से चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है? और वहां आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से लगातार न सिर्फ पंजाब में, बल्कि हिन्दुस्तान के बाहर भी ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में वहां बसे हुए सिखों के बीच के कुछ तबके खालिस्तान को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। अभी पंजाब के एक पुलिस थाने में ऐसे ही खालिस्तान समर्थकों के हुए एक हथियारबंद आक्रामक हमले, और उसके साथ में पुलिस के आत्मसमर्पण से एक बार फिर पंजाब में खालिस्तान समर्थक हिंसा पनपने का खतरा दिख रहा है। इस ताजा घटना में पुलिस ने खालिस्तान का मुद्दा उठाने वाले अमृतपाल सिंह नाम के एक चर्चित व्यक्ति के करीबी समर्थक को अपहरण और हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किया था। और अपने समर्थक को छुड़वाने के लिए ‘वारिस पंजाब दे’ (पंजाब के वारिस) नाम के संगठन के मुखिया अमृतपाल सिंह ने सैकड़ों हथियारबंद समर्थकों के साथ थाने पर हमला किया, और इसके सामने बेबस पुलिस ने यह वायदा किया कि अगले अदालती कामकाज के दिन इस समर्थक को अदालत से छुड़वा दिया जाएगा, तब यह हिंसक भीड़ वहां से टली। और पुलिस ने अपने ही गिरफ्तार किए इस आदमी को अदालत से छुड़वा भी दिया। खबरों में यह भी है कि अमृतपाल सिंह नाम के इस आदमी ने हाल ही में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को धमकी दी थी कि उनका हाल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जैसा होगा। पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने पुलिस थाने पर हुए इस हमले पर फिक्र जाहिर की है, और इसे एक खतरनाक नौबत करार दिया है। आम आदमी पार्टी की राज्य सरकार अभी भीड़ की ताकत के सामने दंडवत बिछी दिख रही है, और आने वाला वक्त पंजाब को राजनीतिक और अलगाववादी हिंसा के दौर में एक बार फिर धकेल सकता है।

पंजाब की मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी के साथ एक दिक्कत यह भी है कि इसके पहले सिर्फ दिल्ली में उसकी सरकार थी, और दिल्ली की सरकार पर पुलिस और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी नहीं रहती है। इसलिए इस पार्टी को अब तक किन्हीं राजनीतिक मुद्दों से नहीं जूझना पड़ा था, और यह मोटेतौर पर म्युनिसिपल जैसा काम करने के तजुर्बे वाली पार्टी थी। पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी, और उसके पहले लंबे समय तक सत्ता में रहे अकाली-भाजपा गठबंधन की बुरी सरकारों के जवाब की शक्ल में आम आदमी पार्टी वोटरों द्वारा चुनी गई थी। लेकिन इस पार्टी और इसके नेताओं को पंजाब के पिछले अलगाववादी और आतंकी इतिहास का कोई तजुर्बा नहीं है। नतीजा यह है कि एक नई क्षेत्रीय पार्टी की तरह वह राज्य को सिर्फ प्रशासन चलाने जैसा मानकर चल रही है, और इससे प्रदेश में अलगाववाद का खतरा बढ़ते चल रहा है। आज ऐसा लग रहा है कि दुनिया के कुछ दूसरे देशों में बसे हुए सिखों में से भी कुछ लोग इस खुशफहमी में हैं कि भारत के एक हिस्से को काटकर खालिस्तान बनाया जा सकता है, और वह सिखों का एक धर्मराज्य होगा। इनकी कल्पना में भारत के नक्शे का जो हिस्सा खालिस्तान दिखता है, वह भारत और पाकिस्तान के बीच की जगह है। हिन्दुस्तान एक तो बहुत बड़ा और बहुत ताकतवर देश है, और इससे यह उम्मीद करना एक नासमझी है कि वह किसी दबाव के तहत अपने देश को काटकर एक नया देश बनाने के लिए झुक जाएगा। लेकिन जिन लोगों का अस्तित्व खालिस्तान के मुद्दे को जिंदा रखकर ही चलता है, वे लोग तो कमसमझ लोगों को ऐसे काल्पनिक धर्मराज का सपना दिखाते हुए उन्हें डॉलर और पौंड में दुहते ही रहेंगे। फिर लोगों को यह भी याद रखना चाहिए कि पिछली बार जब खालिस्तान बनाने की खुशफहमी के साथ पंजाब में आतंक फैला था, तो उसके पीछे सरहद पार पाकिस्तान की तरफ से आने वाला बहुत बड़ा समर्थन भी था। आज पाकिस्तान खुद ही दाने-दाने को मोहताज है, हिन्दुस्तानी सरहदें उस दौर के मुकाबले आज अधिक मजबूत हैं, और ऐसे में खालिस्तान का सपना कुछ अलगाववादियों की हसरतों से अधिक कुछ नहीं है। लेकिन पंजाब के घरेलू हालात हिंसक होने में कभी भी देर नहीं लगती है। देश का यह प्रदेश धर्म के नाम पर सबसे पहले उबलने वाला प्रदेश है, और धर्म के अपमान होने की भावना यहां तेजी से फैलाई जा सकती है, तेजी से फैल जाती है। इसलिए पकिस्तान की सरहद से लगा हुआ यह प्रदेश एक लापरवाह सरकार का खतरा नहीं उठा सकता जो कि थाने पर पहुंची भीड़ के सामने अभी बिछ गई थीं। आज पंजाब से परे अगर दिल्ली में भी यह जनभावना और जनधारणा फैली कि आम आदमी पार्टी की सरकार खालिस्तान समर्थकों के सामने समर्पण कर चुकी है, तो शायद दिल्ली में भी केजरीवाल अगला चुनाव नहीं जीत पाएंगे। आज सारे देश में अपनी मौजूदगी बढ़ाने का सपना लिए चलने वाले केजरीवाल और दूसरे आप नेताओं को यह समझना चाहिए कि उनकी असली परख दिल्ली में नहीं हुई थी, वह परख अभी पंजाब में होने जा रही है।

पंजाब में एक तरफ तो खालिस्तान समर्थकों को खुलकर सामने आते हुए देखा जा सकता है, दूसरी तरफ इसी पंजाब में बड़े-बड़े संगठित जुर्म जेलों में बैठे हुए माफिया-सरगना करवा रहे हैं। ऐसे संगठित अपराधों के तमाम सुबूत सामने आ चुके हैं, और पंजाब सरकार इस पर भी काबू नहीं पा सक रही है। यह मौका इस राज्य में अलग-अलग चुनावी हसरत और निशाना रखने वाली पार्टियों की राजनीति का भी है। यह मौका केन्द्र सरकार और पंजाब की राज्य सरकार के बीच तनातनी के खतरे का भी है। ऐसे में पंजाब को धर्मराज बनने से बचाना, उसे अलगाववादियों के शिकंजे से दूर रखना, और सरहद पार से होने वाली तस्करी से आए नशे में डूबी पूरी नौजवान पीढ़ी को बचाने का भी है। इनमें से हर चीज बड़ी चुनौती है, और देखना होगा कि टीवी के इश्तहारों से परे पंजाब की आप सरकार कैसे कामयाब होती है।

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