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95वें एकेडमी अवार्ड्स यानी ऑस्कर अवार्ड 2023 के मंच पर इस बार भारत का जलवा रहा। भारत ने दो ऑस्कर अवार्ड अपने नाम किए हैं। एसएस राजामौली की बहुचर्चित फिल्म ‘आरआरआर’ के प्रसिद्ध गीत ‘नाटू नाटू’ ने ‘बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग’ श्रेणी में और कार्तिकी गोंजाल्विस और गुनीत मोंगा की डॉक्यूमेंट्री द एलिफेंट व्हिस्परर्स ने बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म श्रेणी में ऑस्कर जीता है। भारत की ओर से ऑल दैट ब्रीथ भी ऑस्कर के लिए नामांकित हुई थी, लेकिन यह अवार्ड नहीं जीत पाई। भारतीय फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण इस बार ऑस्कर के मंच पर अवार्ड देने के लिए उपस्थित थीं। ये सारे पल भारत के लिए बेहद खास हैं। क्योंकि अमूमन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फिल्मों या गीतों को बड़े पुरस्कारों के लिए कम ही चुना जाता है। इन अवार्ड्स पर अक्सर हॉलीवुड का दबदबा रहता आया है। लेकिन अब इस परिदृश्य में बदलाव महसूस किया जा सकता है।

भारतीय फिल्मों, गीतों यहां तक कि टीवी धारावाहिकों की धूम कई देशों में मची हुई है। अब तो फिल्मों की कमाई में यह भी देखा जाने लगा है कि विदेशी थियेटरों में किसी फिल्म ने कितना बिजनेस किया। एशियाई देशों या उन देशों में जहां प्रवासी भारतीय बड़ी संख्या में हैं, वहां भारतीय मनोरंजन उद्योग का कारोबार भी फैल गया है। लेकिन मनोरंजन के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय कला जिस सम्मान और पहचान की तलबगार थी, वह कमी भी अब किसी हद तक पूरी हो रही है। कई भारतीय कलाकार विदेशी फिल्मों में अपनी पहचान बना चुके हैं। अभिनय के अलावा, निर्देशन और संगीत के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रहे हैं। और अब ऑस्कर मिलने से भारतीय कलाकारों की पहचान का दायरा और बढ़ गया है।

नाटू-नाटू और द एलिफेंट व्हिस्परर्स से पहले 2008 में आई फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेर’ के गीत जय हो ने तीन ऑस्कर अवार्ड अपने नाम किए थे। इसमें गीत के लिए गुलजार, संगीत के लिए ए.आर.रहमान और बेस्ट साउंड मिक्सिंग के लिए रेसुल पोकुट्टी को ऑस्कर मिला था। प्रख्यात फिल्म निर्देशक सत्यजीत राय को 1991 में ऑनरेरी लाइफटाइम अचीवमेंट के ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। और ऑस्कर के मंच पर भारत का नाम रौशन करने का कमाल सबसे पहले कॉस्ट्यूम डिजाइनर भानु अथैया ने किया था। जिन्होंने 1983 में आई ऐतिहासिक फिल्म गांधी के लिए पोशाकें तैयार करने का काम किया था। इस तरह पांच ऑस्कर अवार्ड के बाद एक लंबे विराम के बाद फिर से भारत का परचम लहराया है।

नाटू-नाटू ने अभी कुछ समय पहले ही गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीता था और तभी से संभावनाएं व्यक्त की जा रही थीं, इस बार ऑस्कर भी इसकी झोली में आएगा। नाटू-नाटू गीत और इस पर हुए नृत्य की धूम दुनिया भर में मची हुई है। सोशल मीडिया का कमाल यह भी है कि एक बार कोई चीज चर्चा में आ जाए, तो फिर तरह-तरह से उसे मनोरंजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

दक्षिण भारतीय सिनेमा के चर्चित कलाकारों एनटीआर जूनियर और रामचरण की जुगलबंदी ने इस गीत में नई जान फूंक दी। दोनों ही अभिनेता उम्दा नर्तक भी हैं और फिल्म आरआरआर के निर्देशक राजामौली चाहते थे कि दोनों की नृत्य प्रतिभा का ऐसा इस्तेमाल हो कि दर्शक आनंद के एक अलग स्तर पर पहुंच जाएं। इस गीत के रचयिता चंद्रबोस और संगीतकार किरावानी ने राजामौली की ख्वाहिश को हकीकत में उतारने की कोशिश शुरु की। गाना लिखने और धुन पिरोने की प्रक्रिया का काम 2020 से शुरु हुआ और कई महीनों की मेहनत 2023 में रंग लाई।

आरआरआर फ़िल्म 1920 में होने वाली घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है, इसलिए गीत भी उसी कालखंड के मुताबिक तैयार किया गया। गीत में तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में इस्तेमाल किए जाने वाले स्थानीय बोलों का खूब इस्तेमाल हुआ है। ‘मिरापा टोक्कु’ (पिसी लाल मिर्च) और ‘दुमुकुल्लदतम’ (ऊपर-नीचे कूदना) जैसे प्रचलित तेलुगू शब्दों के साथ तेलुगू लोककथाओं के चरित्रों को इस गीत में इस्तेमाल किया गया है। कालभैरव और राहुल सिपलीगुंज ने गीत को आवाज दी है। दोनों दक्षिण भारतीय फिल्मों के जाने-माने गायक हैं और अब इनकी आवाज अंतरराष्ट्रीय पटल पर गूंज रही है।

शार्ट डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ इंसान और प्रकृति के अद्भुत, नाजुक, संवेदनशील रिश्तों के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी पर आधारित है। इस फिल्म को ऑस्कर दिलाने का श्रेय दो महिलाओं, फिल्म निर्माता गुनीत मोंगा और निर्देशक कार्तिकी गोंसाल्विज को जाता है। गुनीत मोंगा दसवेदानियां, गैंग्स ऑफ वासेपुर, वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई, द लंचबॉक्स, शाहिद, और मानसून शूटआउट जैसी फिल्मों की निर्माता हैं। उनकी कई फिल्मों की स्क्रीनिंग इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी हो चुकी है। लेकिन ऑस्कर तक पहुंचने का यह पहला मौका उन्हें मिला।

जबकि कार्तिकी गोंसाल्विज फिल्म जगत में नई हैं, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने इस फिल्म में जानवर और इंसान के बीच की कहानी को दिखाया है, उनकी प्रतिभा का लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है। हाथियों और इंसानों के रिश्तों पर पहले भी कई फिल्में बन चुकी हैं, लेकिन इस फिल्म में कई हादसों से गुजर चुके दो अनाथ हाथियों और उनकी देखभाल के लिए आगे आए बमन और बेला नाम के दो किरदारों को बहुत खूबसूरती से उकेरा गया है। दो इंसानों के आपसी रिश्ते, अलग-अलग वक्त पर गोद लिए गए हाथियों के बच्चों के साथ उनका जुड़ाव, उतार-चढ़ाव के साथ आगे बढ़ती जिंदगी, इन सबका चित्रण इस डाक्यूमेंट्री में हुआ, जिसे अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिला है।

2023 में भारतीय फिल्मों को मिली ये पहचान इस मायने में भी खास है, क्योंकि पिछले कुछ वक्त से फिल्मों या फिल्मों से जुड़े लोगों के विवाद ही सामने आ रहे थे। फिल्म इंडस्ट्री पर राजनैतिक विवादों का साया पड़ने लगा था, जो स्थापित कलाकारों और उभरती प्रतिभाओं दोनों के लिए नुकसानदायक था। जनता के बीच भी फिल्म जगत को लेकर एक नकारात्मक धारणा बनने लगी थी। अब ऑस्कर जीतने के बाद नकारात्मकता की यह धुंध कुछ छंटेगी और प्रतिभाशाली लोगों को अपनी पहचान बनाने का मौका मिलेगा, ऐसी उम्मीद है।

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