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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

आज एक खबर से हिन्दुस्तान में दो मुद्दे उठ खड़े हो रहे हैं। यह खबर एनसीपी के मुखिया शरद पवार का ताजा बयान है जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से डिग्री दिखाने की मांग करते हुए आम आदमी पार्टी के चलाए जा रहे अभियान को राजनीतिक मुद्दा मानने से इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि केन्द्र सरकार की आलोचना, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था, महंगाई जैसे मुद्दों पर होनी चाहिए, लोगों के बीच धर्म और जाति के नाम पर पैदा की जा रही दरारों की बात उठानी चाहिए, बेमौसम बरसात से फसल खराब हुई है उस पर बात होनी चाहिए, डिग्री भी कोई मुद्दा है?

शरद पवार का बयान तो यह एक है, लेकिन इससे दो बातें उठ रही हैं। अभी दो दिन पहले ही उन्होंने संसद में 20 विपक्षी दलों की उठाई गई इस मांग को खारिज कर दिया कि अडानी के खिलाफ जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति बनाई जाए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बनी जांच कमेटी बेहतर काम कर सकती है। उनके इस बयान को कांग्रेस सहित बाकी तमाम विपक्षी दलों के लिए एक झटका माना गया क्योंकि एनसीपी न सिर्फ इन विपक्षी दलों में गिनी जाती है, बल्कि महाराष्ट्र में तो वह कांग्रेस के साथ गठबंधन में भी है। ऐसे में पवार के बयान को अडानी को ताकत देने वाला, मोदी को असुविधा से निकालने वाला, और विपक्षी एकता को झटका देने वाला माना गया। अब आज फिर उनका यह बयान ऐसा माहौल बना रहा है कि वे आम आदमी पार्टी के आज के सबसे बड़े राजनीतिक मुद्दे को खारिज करके एक बार फिर विपक्ष में दरार खड़ी कर रहे हैं। इन दो बातों को जब जोडक़र देखा जाए, तो पहली नजर में ऐसा लगता है कि शरद पवार शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बिना लिखे हुए एक क्लीनचिट दे रहे हैं, हालांकि पवार को संदेह का लाभ दिया जाए, तो यह भी माना जा सकता है कि वे इन मुद्दों पर एक सैद्धांतिक असहमति रखते हैं, और यह असहमति बिना मोदी-मदद की नीयत के, एक ईमानदार असहमति है। लेकिन दूसरी नजर में देखें तो लगातार दो ऐसे बयान साबित करते हैं कि इसके पीछे पवार का कुछ जोड़-घटाना भी है क्योंकि राजनीति इतनी मासूमियत और इतनी संतई का पेशा तो है नहीं। पवार को भी मालूम है कि इन दो बयानों से विपक्ष को झटका लगेगा, और नरेन्द्र मोदी को ताकत मिलेगी।

यह तो एक बात हुई, लेकिन इससे परे एक दूसरी बात भी इस बयान के बाद उठती है। पवार ने तो यह खारिज कर दिया है कि प्रधानमंत्री की डिग्री कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए यह मुद्दा इज्जत का सवाल इसलिए बना हुआ है कि मोदी से उनकी डिग्री दिखाने की मांग करने वाले अरविंद केजरीवाल पर गुजरात हाईकोर्ट ने 25 हजार रूपये जुर्माना लगाया है, अदालत का यह मानना है कि सूचना के अधिकार के तहत डिग्री मांगकर केजरीवाल ने इस अधिकार का बेजा इस्तेमाल किया है। यह तो जाहिर है कि केजरीवाल इसके खिलाफ ऊपरी अदालत तक जाएंगे, या जा चुके होंगे, लेकिन अब जब यह मामला अदालत से जुर्माना सुन चुका है, तो ऐसा लगता है कि इसका किसी किनारे पहुंच जाना ही ठीक होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पढ़ाई कितनी हुई है, यह किसी भी तरह की संवैधानिक जरूरत नहीं है। लेकिन चुनाव आयोग में दाखिल कागजातों में कोई छोटी-मोटी गड़बड़ी रहने पर भी लोगों के चुनाव खारिज होते रहे हैं। प्रधानमंत्री देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण नेता होते हैं, इसलिए उनके स्तर पर सार्वजनिक जीवन के पैमानों का सबसे अधिक कड़ाई से इस्तेमाल भी होना चाहिए, उसी से बाकी देश के सामने एक मिसाल खड़ी हो सकती है। हम पढ़ाई और डिग्री की जरूरत को खारिज करते हुए भी इस मांग को सही मानते हैं कि प्रधानमंत्री को अपनी डिग्री दिखा देनी चाहिए। जो लोग सार्वजनिक जीवन में हैं, और सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर हैं, उनसे जुड़े हुए किसी भी मामले में शक की गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए। और यह बात उनके निजी पारिवारिक जीवन की कोई बात नहीं है, यह बात पढ़ाई और यूनिवर्सिटी की डिग्री की है, जिसे न दिखाने की क्या वजह हो सकती है? हम आम आदमी पार्टी के जेल में बंद भूतपूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के लिखकर भेजे गए एक बयान को खारिज करते हैं कि प्रधानमंत्री पढ़े-लिखे नहीं हैं, इसलिए वे तरह-तरह की अवैज्ञानिक बातें करते हैं, और इससे देश का अपमान होता है। अवैज्ञानिक बातों के लिए लोगों का अनपढ़ होना जरूरी नहीं होता, हमने तो विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. मुरली मनोहर जोशी को खड़े होकर बाबरी मस्जिद गिरवाते देखा है, जिनकी पीठ पर लदी हुई उमा भारती वाली तस्वीर आज भी किसी भी इंटरनेट सर्च में सबसे पहले सामने आ जाती है। हमने विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे डॉ. प्रवीण तोगडिय़ा के अनगिनत धर्मान्ध, साम्प्रदायिक, और अवैज्ञानिक बयान पढ़े हैं, और वे तो पेशे से एक कैंसर सर्जन बताए जाते हैं। इसलिए पढ़ाई-लिखाई से समझदारी का अनिवार्य रूप से कोई रिश्ता नहीं होता। हो सकता है कि पोस्ट ग्रेजुएट होने के बाद भी लोग आदतन अवैज्ञानिक बातें और हर तरह के झूठ बोलने की मानसिक बीमारी के शिकार हों, इसलिए डिग्री से किसी की बातों को हम अनिवार्य रूप से नहीं जोड़ते। हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री के पास निश्चित ही पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री होगी, और जो जनचर्चा है कि वह डिग्री एंटायर पॉलिटिकल साईंस में एमए की है, तो उस पर भी शक करने की कोई वजह हमें नहीं लगती है, हो सकता है कि कोई यूनिवर्सिटी पॉलिटिकल साईंस का और विस्तार करके एंटायर पॉलिटिकल साईंस का कोर्स चलाती हो। आज हवा में जितने तरह की डिग्रियां मोदी से जुडक़र तैर रही हैं, इनको देखते हुए खुद प्रधानमंत्री को चाहिए कि सारे सुबूतों के साथ अपने तथ्य लोगों के सामने रख दें, अगर उन्होंने एंटायर पॉलिटिकल साईंस में मास्टर्स डिग्री पाई है, तो उसमें छुपाने का कुछ नहीं है, वे तो इस देश में चुनाव जीत-जीतकर अपने आपको एंटायर इलेक्टोरल साईंस में मास्टर साबित कर ही चुके हैं। हम केजरीवाल की मांग को और अधिक वजन देने के खिलाफ हैं, और केजरीवाल के पूरे मुद्दे को खारिज करने का काम प्रधानमंत्री खुद ही कर सकते हैं। विश्वविद्यालय इसकी जानकारी न दे, और हाईकोर्ट केजरीवाल पर जुर्माना लगाए, इन सबसे प्रधानमंत्री पद की साख पर जो संदेह खड़े होते हैं, वे लोकतंत्र के लिए अच्छे नहीं हैं। नरेन्द्र मोदी को हर बरस दर्जनों अंतरराष्ट्रीय नेताओं से मिलना होता है, और ऐसे में उनके बारे में देश-विदेश के मीडिया में ओछी बातें छपती रहें, यह ठीक नहीं है। शरद पवार ने चाहे उन्हें रियायत दी हो, मोदी को खुद होकर अपने कागज दिखाने चाहिए, क्योंकि इस देश में कागज नहीं दिखाएंगे नाम का आंदोलन तो वे लोग चला रहे हैं, जिनके बारे में एक तबका देशद्रोही, राष्ट्रविरोधी, टुकड़े-टुकड़े गैंग विशेषण इस्तेमाल करता है। प्रधानमंत्री का पद एक असाधारण सम्मान का होता है, और उन्हें इस बहस पर पूर्णविराम लगाना चाहिए।

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