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कांग्रेस शासित राज्य छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में बच्चों के बीच का झगड़ा जानलेवा हिंसा से होता हुआ सांप्रदायिक तनाव तक पहुंचा दिया गया। जिसके बाद सोमवार को विश्व हिंदू परिषद ने छत्तीसगढ़ बंद का ऐलान किया। राजधानी रायपुर समेत राज्य के कई इलाकों में विहिप के साथ भाजपा कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए। चक्काजाम करने से लेकर बाजारों को बंद कराने में ये कार्यकर्ता सक्रिय रहे। हालात काबू में रहें, इसके लिए पुलिस प्रशासन मुस्तैदी दिखा रहा है। अलग-अलग समुदायों के लोगों के साथ बैठक कर शांति बनाए रखने की अपील पुलिस ने की है। साथ ही हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है, ताकि किसी भी नागरिक तक तुरंत मदद पहुंचाई जा सके। दंगों के इतिहास में यह बात बार-बार सामने आई है कि अगर पुलिस-प्रशासन ठान ले तो स्थिति को संभाला जा सकता है और अगर पुलिस भी राजनैतिक एजेंडे का मोहरा बन जाए, तो फिर दंगों की आग सब कुछ तबाह करके ही बुझती है। इसलिए छत्तीसगढ़ में पसरे तनाव के बीच पुलिस की सक्रियता से आश्वस्ति मिलती है। अभी रामनवमी के आसपास उत्तरप्रदेश के आगरा में भी पुलिस की सक्रियता से ही सांप्रदायिक आग भड़कने से पहले रुक गई थी। यहां अखिल भारतीय हिंदू महासभा के पदाधिकारी ने कुछ हिंदू और मुस्लिम लड़कों के साथ मिलकर गाय काटी और फिर इसका इल्जाम दूसरे मुस्लिम लोगों पर लगा दिया, जिनसे उनकी पुरानी रंजिश थी। यह साजिश रामनवमी पर हिंसा भड़काने के लिए रची गई थी, लेकिन आगरा पुलिस की सतर्कता और त्वरित जांच से सारा खुलासा हो गया और एक बड़ा तनाव टल गया। वैसे भी रामनवमी के मौके पर प.बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र आदि कई राज्यों में जिस तरह हिंसा भड़की वह चिंताजनक है, क्योंकि वर्षों से रामनवमी, हनुमान जयंती जैसे पर्वों पर शस्त्रों और शक्ति का बेजा प्रदर्शन कर धर्म के नाम पर आतंक दिखाने का चलन बढ़ गया है। जिन राज्यों में रामनवमी शांति से आकर बीत जाती थी, वहां भी अब तनाव पसरने लगा है। निश्चित ही इसके पीछे राजनैतिक एजेंडा है, ताकि धर्म और जाति के नाम पर लोगों को बांटकर वोट बटोरने में सहूलियत हो।
राहत इंदौरी का शेर है कि- सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या। जब-जब चुनाव आते हैं, लोगों का ध्यान उनकी बुनियादी समस्याओं से हटाने के लिए देशभक्ति, राष्ट्रवाद के मसले खड़े कर दिए जाते हैं। अब यही खेल धर्म के साथ हो रहा है। चुनाव नजदीक हैं तो समाज में तनाव बढ़ाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ हिंदी पट्टी के बाकी राज्यों की अपेक्षा सांप्रदायिक सौहार्द्र के नजरिए से मजबूत प्रदेश रहा है। यहां देश के अलग-अलग राज्यों के लोग विभिन्न उद्योगों और उपक्रमों में कार्यरत हैं और समाज में सद्भाव की एक अंतर्धारा हमेशा से बहती रही है। लेकिन अब उसमें खलल पड़ता नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ के सामाजिक सौहार्द्र के ताने-बाने को तोड़ने की सायास कोशिश हो रही है, इसका ताजा उदाहरण बेमेतरा की घटना से सामने आया है। जहां बीरनपुर गांव में शनिवार को स्कूली बच्चों के बीच झड़प के बाद हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में गांव के 23 बरस के युवक भुवनेश्वर साहू की मौत हो गई और तीन पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। हालात संभालने के लिए प्रशासन ने धारा 144 लगाई, लेकिन स्थिति अब भी तनावपूर्ण है। मृतक का अंतिम संस्कार कड़ी सुरक्षा के बीच किया गया, लेकिन गांव में स्थिति संभलने तक पुलिस की तैनाती की गई है, साथ ही पीड़ित परिवार को सुरक्षा भी दी गई है।
किसी की भी हत्या होना दुखद है, लेकिन उससे भी अधिक दुखद है उस घटना को धार्मिक विद्वेष की राजनीति का हथियार बनाना। अगर मृतक का शोकाकुल परिवार इंसाफ की बात करे, नाराज लोग सरकार और प्रशासन की कमियां गिनाएं, तो यह उनका लोकतांत्रिक हक है। लेकिन एक हत्या के बाद बंद का आह्वान, सड़क पर हनुमान चालीसा का पाठ और हिंदू जागो के गीत गाना, किस तरह इंसाफ की राह प्रशस्त करता है, यह सवाल प्रदर्शनकारियों से किया जाना चाहिए। गांधीजी कहते थे आंख के बदले आंख का सिद्धांत पूरी दुनिया को अंधा कर देगा। यह बात हर विवाद में लागू होती है।
छत्तीसगढ़ में सांप्रदायिक तनाव का यह पन्ना ऐसे वक्त खोला जा रहा है, जब चंद महीनों में चुनाव होने वाले हैं। पिछली बार 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के 15 सालों के शासन को खत्म कर दिया था। जिस वक्त कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हारती जा रही थी, उस समय छत्तीसगढ़ की यह जीत काफी बड़ी और महत्वपूर्ण मानी गई। मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन मप्र की सरकार भाजपा के ऑपरेशन लोटस का शिकार बन गई और राजस्थान में तो पांच साल में सत्ता परिवर्तन के नियम का चलन ही बरकरार रहा। लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत से यहां पार्टी की मजबूती का संदेश देश भर में गया। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस के स्टार प्रचारक के तौर पर देश भर में दौरे करते हैं। हाल ही में हुए कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन से भी राज्य में कांग्रेस की मजबूत पकड़ दिखी है। इस अधिवेशन के पहले ईडी औऱ आयकर विभाग के कई छापे कांग्रेस से जुड़े लोगों पर पड़े, लेकिन कांग्रेस और मुख्यमंत्री इससे अविचलित ही दिखे। ऐसे में भाजपा के लिए इस बार फिर चुनाव में जीत हासिल करना संकट भरा सवाल बन गया है। भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे को भूपेश बघेल राजनीति के शुरुआती दिनों से नकारते और चुनौती देते आए हैं। दिसंबर, 1992 में जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी, तब श्री बघेल युवक कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष थे और उस वक्त तत्कालीन दुर्ग ज़िले में साढ़े तीन सौ किलोमीटर की ‘सद्भावना पदयात्राÓ उन्होंने निकाली थी। अब वे राज्य के मुख्यमंत्री हैं तो जाहिर है सांप्रदायिक ताकतों को सिर उठाने के लिए यहां जगह नहीं मिल पा रही है। लेकिन इसकी कोशिशें जारी हैं। ऐसे में कांग्रेस सरकार को यहां और अधिक सतर्क रहने और संभल कर काम करने की जरूरत है। 1992 से लेकर 2023 तक देश की राजनीति का ढंग और समाज की सोच दोनों ही बदल चुके हैं। उम्मीद है छत्तीसगढ़ इस बात को समझेगा और शांति की राह पर डटा रहेगा।

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