-सुनील कुमार॥
राजनीतिक की खबरें अक्सर ही मुंह का स्वाद खराब करने वाली होती हैं, कभी-कभी ही उन्हें पढक़र चेहरे पर मुस्कुराहट आ पाती है। ऐसी ही एक खबर आज सामने है। महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के प्रमुख नेता संजय राउत ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को चिट्ठी लिखकर बीस जून को विश्व गद्दार दिवस घोषित करने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि महाराष्ट्र के लाखों लोग दस्तखत करके संयुक्त राष्ट्र भेजने वाले हैं कि इस प्रदेश में शिवसेना के शिंदे गुट ने पार्टी तोडक़र जिस तरह भाजपा के साथ सरकार बनाई थी, इसे संयुक्त राष्ट्र विश्व गद्दार दिवस के रूप में मान्यता दे जिस तरह 21 जून के विश्व योग दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमरीका गए हुए हैं और ऐसी खबर है कि वे कल 21 जून को संयुक्त राष्ट्र संघ में योगाभ्यास करेंगे। मोदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने कुछ बरस पहले इस दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाना शुरू किया है, और ऐसा लगता है कि संजय राउत का संयुक्त राष्ट्र महासचिव को भेजा गया खत इस मौके पर ही मोदी की पार्टी, और उनके राज्यपाल के असंवैधानिक कामकाज पर तंज कसने के लिए लिखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत साफ-साफ फैसला दिया है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल ने असंवैधानिक फैसला लेकर उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने का काम किया था। संजय राउत ने मोदी के संयुक्त राष्ट्र में रहते हुए गद्दार दिवस का यह प्रस्ताव एक बड़े ही मौलिक और अनोखे अंदाज के व्यंग्य के रूप में भेजा है।
लेकिन व्यंग्य से बाहर आएं, तो जो संजय राउत ने लिखा है उसे हम व्यापक संदर्भ में बरसों से लिखते चले आ रहे हैं कि दलबदल करने वाले लोगों के नई पार्टी से चुनाव लडऩे पर कुछ बरसों के लिए रोक लगनी चाहिए। शिवसेना सहित बहुत सी पार्टियों में यह आम बात है कि सांसद और विधायक नई पार्टी में चले जाते हैं, और रातोंरात वहां के उम्मीदवार हो जाते हैं। पिछले एक दशक में भाजपा से अधिक शायद ही किसी दूसरी पार्टी में ऐसा हुआ हो कि बाहर से लोगों को लाकर, पीढिय़ों से अपनी पार्टी में बने हुए लोगों के सिर पर बिठा दिया जाए। कांगे्रस से जाने कितने ही लोगों को लाकर भाजपा ने ऐसा किया है, और लोग मजाक में भाजपा के बारे में कहते हैं कि भाजपा कांगे्रसमुक्त भारत के अपने नारे को इस हद तक पूरा कर रही है कि वह खुद कांगे्रसयुक्त पार्टी हो गई है। ताजा मिसाल मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, जिनके खिलाफ पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के सारे नारे गढ़े गए थे, और उसी महाराज को लाकर भाजपा के सिर पर ताज की तरह बिठा दिया गया है, और भाजपा के बहुत से पुराने लोग अपने को जूतों की तरह तिरस्कृत पा रहे हैं। भाजपा ने महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को गिराने के लिए शिवसेना को भी इसी तरह तोड़ा था, और राज्यपाल और विधानसभाध्यक्ष के नाजायज और असंवैधानिक फैसलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के बाद अब कहने को क्या रह जाता है। इसलिए आज संजय राउत की चिट्ठी एक जख्मी शेर की कराह है, जो मोदी के न्यूयॉर्क में रहते उनके मेजबान यूएन को भेजी गई है, ताकि उन्हें याद दिलाया जा सके कि उनका मेहमान 21 जून के योग दिवस के पहले 20 जून को एक और अंतरराष्ट्रीय दिवस का हकदार बनाया जाना चाहिए।
हम फिर से अपनी बात पर लौटें, तो यह समझने की जरूरत है कि दलबदल कानून के तहत अब किसी पार्टी के संसदीय दल के दो तिहाई लोग जब पार्टी बदलते हैं, तभी वे दलबदल कानून से बचते हैं। इसलिए दो तिहाई जैसी बड़ी संख्या को एकदम से खारिज करना तो ठीक नहीं है, उसे तो दल विभाजन मानना ही होगा, लेकिन जो इक्का-दुक्का लोग अपने कार्यकाल के बीच में दलबदल करते हैं, और नई पार्टी में जाकर उसके उम्मीदवार हो जाते हैं उस पर कम से कम छह बरस के लिए अपात्रता लगानी चाहिए। दलबदल के बाद वे नई पार्टी में एक कार्यकाल के फासले से ही चुनाव लड़ सकें। ऐसा अगर नहीं किया जाएगा तो हिंदुस्तानी लोकतंत्र सैकड़ों बरस पहले की गुलामों और औरतों की मंडी की तरह होकर रह जाएगा कि मोटे बटुए वाले लोग मनमानी खरीददारी करके घर लौटेंगे। चूंकि संसदीय लोकतंत्र में आमतौर पर काम आने वाली गौरवशाली परपंराएं हिंदुस्तान में आमतौर पर पेनिसिलिन से भी कम असरदार रह गई हैं, और बेशर्मी ने अपार प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है, इसलिए यहां पर कड़े कानून बनाना जरूरी है। गरिमा भारतीय राजनीति को छोडक़र कबकी जा चुकी है, और अब कड़े कानूनों से नीचे और किसी बात का असर नहीं हो सकता। इसलिए दलबदलू सांसदों और विधायकों को संसद या विधानसभा का नामांकन दुबारा भरने के पहले छह बरस का फासला रखना चाहिए ताकि यह गंदगी कुछ घट सके। आज तो पंजाब की एक पुरानी कहावत की तरह आग लेने आई, और घर संभाल बैठी जैसा हाल हो गया है कि पूरी जिंदगी किसी पार्टी के खिलाफ काम करने वाले इम्पोर्ट किए जाते हैं, और पूरी जिंदगी पार्टी का काम करने वाले लोगों के बाप बनाकर बिठा दिए जाते हैं। ऐसे पार्टीपिता की ताजपोशी संगठन में तो ठीक है, लेकिन संसद और विधानसभाओं को इस गंदगी से बचाना जरूरी है।