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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल मध्यप्रदेश के अपने राजनीतिक-चुनाव पूर्व कार्यक्रम में मंच और माईक से समान नागरिक संहिता का मुद्दा छेड़ा है। उन्होंने धीरे-धीरे, एक-एक शब्द को जोर देकर यह कहा है कि एक ही परिवार में दो लोगों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते, ऐसे दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चल पाएगा? वे भाजपा कार्यकर्ताओं के बूथ स्तर के कार्यक्रम में बोल रहे थे, लेकिन उन्हें मालूम था कि उनकी कही बातें देश के तमाम टीवी चैनलों पर लाईव टेलीकास्ट हो रही हैं। उन्होंने कहा यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर लोगों को भडक़ाने का काम हो रहा है। उन्होंने कहा एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून हो, तो क्या वो घर चल पाएगा? कभी भी चल पाएगा? ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चल पाएगा? उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग मुसलमानों के हिमायती बनते हैं वे अगर सचमुच ही हिमायती होते तो अधिकतर मुस्लिम परिवार पढ़ाई और रोजगार में पीछे नहीं रहते, मुसीबत की जिंदगी जीने को मजबूर नहीं रहते। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है, वह डंडा मारती है, कहती है कॉमन सिविल कोड लाओ, लेकिन वोट बैंक के भूखे ये लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं।

प्रधानमंत्री की ये बातें इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि एक कॉमन सिविल कोड से देश के मुस्लिमों, आदिवासियों, और हिन्दुओं के कई अलग-अलग तबकों में प्रचलित अलग-अलग धार्मिक-सामाजिक नियम-कायदे बदलकर एक होंगे। आज भारत में शादी, तलाक, विरासत, और गोद लेने के मामले में अलग-अलग समुदायों में उनकी धार्मिक आस्था और रीति-रिवाजों के आधार पर अलग-अलग कानून है। समान नागरिक संहिता के तहत इन सभी को एक सरीखा बनाया जाएगा। इसमें आदिवासियों के रीति-रिवाजों पर क्या फर्क पड़ेगा इस बारे में सोचे बिना देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं का एक तबका प्रधानमंत्री की इस बात पर इसलिए खुश है कि इससे सडक़ किनारे पंक्चर बनाने वाले अब्दुल के हक बदलेंगे। मोदी ने 2024 के चुनाव के पहले संसद के अपने अभूतपूर्व बाहुबल के चलते ऐसा लगता है कि इसकी तैयारी कर रखी है, और वे मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनावों के पहले इस चर्चा को छेडक़र हिन्दुओं के उस तबके के वोटों की गारंटी कर रहे हैं जिन्हें मुस्लिमों पर वार या मार करने वाले हर फैसले सुहाते हैं। हम यहां पर यूनिफॉर्म सिविल कोड के गुण-दोष का विश्लेषण नहीं कर रहे हैं, वह एक लंबा, जटिल, और तकनीकी-कानूनी मामला है, उस पर हम अलग से बात करेंगे, लेकिन जो बात प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से कही है, एक परिवार वाली उस बात पर आज बात करना जरूरी है।

पूर्व केन्द्रीय वित्तमंत्री और कांग्रेस नेता पी.चिदम्बरम ने प्रधानमंत्री के बयान को पूरी तरह गलत बताया है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि समान नागरिक संहिता को सही ठहराने के लिए एक परिवार और राष्ट्र के बीच तुलना गलत है। उन्होंने कहा कि एक परिवार जहां खून के रिश्तों से बंधा होता है, वहीं एक देश संविधान के सूत्र में बंधा होता है, जो कि एक राजनीतिक-कानूनी दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि एक परिवार के भीतर भी विविधता होती है, और भारत के संविधान में भी विविधता और बहुलता को मान्यता दी है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को पिछले विधि आयोग की रिपोर्ट पढऩा चाहिए जिसमें बताया गया था कि इस समय इसे लागू करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि बीजेपी के कारण आज देश बंटा हुआ है, और लोगों पर थोपा गया कॉमन सिविल कोड इस विभाजन को बढ़ाएगा। चिदम्बरम ने कहा कि समान नागरिक संहिता के लिए प्रधानमंत्री की इस तगड़ी वकालत का मकसद महंगाई, बेरोजगारी, नफरती जुर्म, भेदभाव, और राज्यों के अधिकार नकारने जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए है, लोगों को सावधान रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार चलाने में नाकामयाब होने के बाद भाजपा वोटरों का ध्रुवीकरण करने को लेकर समान नागरिक संहिता का मुद्दा उठा रही है।
हिन्दुस्तान में मुस्लिम समुदाय के लोगों पर टिकी राजनीति करने वाले एआईएमआईएम के सांसद और मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने मोदी से सवाल किया है कि क्या आप हिन्दू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) को खत्म करेंगे जिसकी वजह से देश को हर साल तीन हजार करोड़ से अधिक का टैक्स नुकसान हो रहा है? आरजेडी सांसद मनोज झा संसद में अपने गंभीर बयानों के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने कहा कि मोदी आजकल कुछ बेचैन हो रहे हैं, उन्हें यूनिफॉर्म सिविल कोड पर 21वें विधि आयोग की रिपोर्ट पढऩी चाहिए, उन्हें संविधान सभा की बहस भी पढऩी चाहिए।

समान नागरिक संहिता की मांग बहुत पुरानी है, और यह देश में उस विविधता के लिए एक चुनौती भी रहेगी जिसके लिए भारत जाना जाता है। फिर मोदी के भाषण को लेकर, देश को एक परिवार बताने को लेकर एक सवाल यह भी उठता है कि अगर नागरिक संहिता के लिए देश एक परिवार है, तो ऐसे में नाजुक और भडक़ाऊ मुद्दों पर इस परिवार के अलग-अलग लोगों को उनकी पोशाक के आधार पर कैसे पहचाना जा सकता है? एक घर में रहने वाले लोग तो अपनी मर्जी और पसंद से अलग-अलग पोशाक पहनते हैं, महज पोशाक के आधार पर जब कुछ सदस्यों को परिवार के बाकी सदस्य हिंसा का शिकार बनाएं, तो वह किस तरह का परिवार हो सकता है? भारत सरीखे विविधता वाले लोकतांत्रिक देश को एक परिवार कहना अपने आपमें परिवार के सबसे ताकतवर तबके के फायदे की चतुराई दिखती है। जिसका सबसे अधिक दबदबा हो वह अपने से दबे-कुचले लोगों को परिवार बताए, तो उस परिभाषा का कोई मतलब नहीं रहता। दुनिया में जो सबसे चतुर मालिक होते हैं, वे अपने कर्मचारियों को अपने परिवार का सदस्य बताते हैं, और वह उनके शोषण करने का एक मासूम दिखता तरीका होता है। इसलिए भारत को उसके विविधतावादी रूप में ही मंजूर करना ठीक है, और एक देश के लिए एक परिवार की मिसाल देना निहायत ही गलत बात है, और इसकी ठीक-ठीक व्याख्या चिदम्बरम ने की है। और अगर किसी का परिवार की मिसाल दिए बिना मन नहीं मान रहा है तो उसे याद रखना चाहिए कि एक परिवार के भीतर भी अलग-अलग लोग अलग-अलग किस्म का खाना-पीना पसंद करते हैं, अपने मर्जी के कपड़े पहनते हैं, अपनी मर्जी के जीवन-साथी को छांटकर शादी करते हैं, एक परिवार के भीतर अलग-अलग धार्मिक आस्था के लोग भी हो सकते हैं, और आस्थाहीन लोग भी रह सकते हैं। परिवार किसी एक दादा के तहत गुलामों के एक झुंड का नाम नहीं होता, परिवार अलग-अलग महत्वाकांक्षाओं और जीवनशैली के लोगों का भी होता है, जो कि किसी नियम से बंधे नहीं होते हैं, जो जहां तक मुमकिन हो सके एक-दूसरे के हिसाब से तालमेल बिठाकर चलते हैं, वरना एक परिवार के लोग भी एक परिवार के रहते हुए भी, अलग-अलग घरों में भी रहते हैं, और एक परिवार भी बने रहते हैं। इसलिए परिवार की मिसाल को एक मुखिया के गुलामों के परिवार की तरह नहीं देखना चाहिए। प्रधानमंत्री ने भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच इस मुद्दे का अतिसरलीकरण करके उसे मंच से दिए गए नारों की जुबान में कहा है, उसका असल जिंदगी में कोई महत्व नहीं है, एक देश को उसके संवैधानिक स्वरूप में देखा जा सकता है, एक परंपरागत भारतीय-हिन्दू परिवार की तरह उसे देखना जायज नहीं है, देश ऐसी तंगदिल परिभाषा से बहुत अधिक व्यापक होता है।

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