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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?
-सत्य पारीक
किस्मत वाला लेकिन सत्ता लोभी नेता के नाम के इतिहास में अशोक गहलोत का नाम सबसे ऊपर अंकित किया जाएगा जो स्वंय को शातिर मानते हैं लेकिन हैं वो सत्तालोभी । क्योंकि जिन्होंने अपना व अपने राज्य का नाम रोशन करने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद ठुकरा दिया और मुख्यमंत्री बने रहने में ही अपना व अपने परिवार का हित समझा ऐसे नेता को सत्ता लोभी नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे ? गहलोत की राजनीति का आधार गांधी परिवार है जिसने इन्हें तीन बार केंद्र में मंत्री , तीन बार प्रदेशाध्यक्ष , तीन बार मुख्यमंत्री , दो बार केंद्रीय संगठन में महामंत्री व एक बार केंद्रीय संगठन का संगठन मंत्री बनाया । लेकिन उसी परिवार की प्रमुख श्रीमति सोनिया गांधी का गहलोत को मुख्यमंत्री पद छोड़ कर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की ऑफर को ठुकरा दिया वो भी ऐसे समय जब कांग्रेस का सबसे बुरा दौर चल रहा था । ऐसा गहलोत ने इस लिये किया कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद ही चाहिए…….गांधी परिवार को इससे बड़ा धोखेबाज नेता कोई दूसरा नहीं मिलेगा । हालांकि गांधी परिवार की इंदिरा गांधी , राजीव गांधी , सोनिया गांधी , राहुल गांधी तक को उनके रहमो करम पर राजनीति करने वाले नेताओं ने धोखा दिया है लेकिन पार्टी से नाता तोड़ कर । लेकिन गहलोत ने नये तरह का धोखा दिया वो भी पार्टी में बने रहकर जबकि इन्हें तीन बार मुख्यमंत्री का पद सोनिया गांधी ने दिया है ।
      लेकिन गहलोत को मुख्यमंत्री पद से इतना अधिक मोह है कि उनपर ढेरों मेहरबानी करने वाली अपनी नेता सोनिया गांधी की सलाह को दरकिनार कर पीठ में छुरा भोंक कर पार्टी के विधायक दल की बगावत करा दी । गहलोत के इस अक्षम्य अहसान फ़रोसी के नीचे सचिन पायलट की पार्टी से की गई बगावत दब गई ।
सोनिया गांधी व प्रियंका गांधी के सामुहिक निर्णय को नहीं मानने में शामिल 92 नेताओं की कारिस्तानी को गांधी परिवार कभी भुला पायेगा या नहीं ? ऐसी बग़ावत करके भी गहलोत चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के सपने संजोये बैठें हैं व इनके बागी साथी फिर से पार्टी की उम्मीदवारी लेने की लाईन में लगें हैं , क्या इन सब को गांधी परिवार माफ़ कर इन्हें गले लगा लेगा बड़ा ही विचारणीय प्रश्न है । अगर इंदिरा गांधी इस समय होती तो गहलोत सहित सभी बागियों को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा देती । लेकिन इस समय पार्टी की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी है तथा पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं । खड़गे उस टीम में थे जिन्हें सोनिया गांधी ने जयपुर जाकर गहलोत से मुख्यमंत्री पद से रुखसत कर सचिन पायलट को उनके स्थान पर मुख्यमंत्री बनाना था वो भी पार्टी विधायकों की सर्वसम्मति से । लेकर खड़गे को जयपुर से खाली हाथ लौटना पड़ा केवल सोनिया गांधी के निर्देशों की धज्जियां बिखरने वाले मुख्यमंत्री गहलोत के ” माफ़ी नामे ” के साथ कि ” खड़गे साहब मैं आपसे माफी चाहता हूं क्योंकि पार्टी के मंत्री व विधायक मेरे कहने में नहीं है ” जबकि सोनिया गांधी के निर्देश आने के बाद उनकी अवहेलना करने का पूरा कार्यक्रम ही गहलोत के कहने पर स्वायत मंत्री शान्ति धारीवाल , जलदाय मंत्री डॉ महेश जोशी व राज्य पर्यटन विभाग के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ ने रचा था ।
       ऐसे में खड़गे को गहलोत का ये कहना कि पार्टी विधायक मेरे कहने में नहीं है सरासर झूठ बोलना है क्योंकि गहलोत को पता है कि पार्टी आलाकमान उनकी बगावत और अपने हुक्मउदूली करने पर कठोर कार्यवाही नहीं कर सकती है । जिसकी पीछे पार्टी में आई कमजोरी है जिसने पार्टी को खोखला कर रखा है । इस घटना के बाद पार्टी ने तीन नेताओं को अनुशासन हीनता का नोटिस दे रखा है ये है शांति धारीवाल , डॉ महेश जोशी व धर्मेन्द्र राठौड़ उनके नोटिस की तिथि कभी की निकल चुकी है । जबकि राजस्थान में कांग्रेस को कमजोर करने का अभियान स्वंय गहलोत ने पहली बार मुख्यमंत्री बनते ही शुरू कर दिया था । राज्य की बहुत बड़ी जाति जाटों को 1998 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस ने वादा किया था कि उसकी सरकार गठित होने पर जाटों का अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण दिया जाएगा । ये वादा करने वाले प्रदेशाध्यक्ष स्वंय गहलोत ही थे जो चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने थे । मुख्यमंत्री बनते ही गहलोत ने जाट आरक्षण के मुखिया नेताओं को कह दिया कि उनकी जाति को आरक्षण देने का अधिकार केंद्र सरकार को है । जबकि हकीकत ये थी कि गहलोत स्वंय अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं इसलिए वे जाटों को बड़ी जाति को उसी वर्ग में आरक्षण का लाभ देकर अपनी बिरादरी के हिस्से में बंटवारा नहीं करना चाहते थे । जब जाटों को गहलोत ने आरक्षण देने से स्पष्ट इंकार कर दिया तब जाटों ने भाजपा की शरण ली , थोड़े दिनों बाद लोकसभा के चुनाव होने थे इसलिए भाजपा को राज्य की सबसे बड़ी जाति जाट को अपने पक्ष में कर वोट लेने थे । भाजपा की तरफ से जाटों से आरक्षण देने का वादा अटलबिहारी वाजपेयी ने किया था । जिसे उन्होंने अपनी सरकार बनते ही पूरा किया , केंद्र ने जब जाटों को आरक्षण दे दिया तो गहलोत के हाथों से छुट्टी लगाम को पुनः पकड़ने के लिए उन्होंने ने भी मजबूर हो कर केंद्र के निर्णय को लागू कर दिया । मगर बाजी हाथ से निकल चुकी थी जिसका परिणाम ये निकला कि 1999 के लोकसभा चुनाव में राज्य की जाट बाहुल्य सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा उम्मीदवार विजयी हुए । बाद में जब 2003 के विधानसभा चुनाव हुए तो गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस को 1998 में मिली 156 सीटों का आंकड़ा लुडकर केवल 50 पर आ गया ।
        अशोक गहलोत के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए पहली बार 1998 में राज्य कांग्रेस को विधानसभा में 156 सीटें मिली थी । जिसके पीछे तीन मुख्य कारण थे पहला था जाट जाति को आरक्षण का वादा दूसरा कारण था परस राम मदेरणा को भावी मुख्यमंत्री बनाने का संकेत कर चुनाव लड़े गये थे और तीसरा कारण था भैरोंसिंह शेखावत सरकार के साढ़े सात साल के कार्यकाल की एंटी इनकम्बेंसी । चुनाव परिणाम के बाद सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से गहलोत को मुख्यमंत्री का पद मिला जिससे जाट जाति में कांग्रेस के प्रति नाराजगी पैदा हो गई । उस नाराजगी में आरक्षण देने के मुद्दे को लटका देने ने आग में घी का काम किया । जाट जाति की गहलोत के प्रति नाराजगी आज भी बरकरार है इसी कारण 1998 के बाद हुए राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कभी बहुमत नहीं मिला । गहलोत के नेतृत्व में हुए 2003 के विधानसभा चुनाव भाजपा ने पहली बार वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़े थे जिनमें कांग्रेस को अर्स से फर्श पर ला पटका । विपक्ष में रहकर गहलोत को कांग्रेस ने विधायक दल का नेता नहीं बनाया था जबकि प्रदेशाध्यक्ष के पद पर पहले बुलाकी दास कल्ला को फिर डॉ सी पी जोशी को बैठाया गया उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव हुए । तब ये तय माना जा रहा था कि डॉ जोशी ही भावी मुख्यमंत्री होंगे लेकिन वे एक वोट से विधायक का चुनाव हार गये । इसी कारण फिर गहलोत की मुख्यमंत्री बनने की लॉटरी लग गई क्योंकि कांग्रेस को विधानसभा में बहुमत नहीं मिला था । इसलिए अल्पमत की सरकार चलाने की जिम्मेदारी सोनिया गांधी ने फिर से उन्हें ही सौपीं थी । जोड़तोड़ करके गहलोत पांच साल मुख्यमंत्री बने रहे लेकिन विधानसभा के 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस को उनके नेतृत्व में मात्र 21 सीटें ही मिली जबकि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भाजपा को 162 सीटें मिली । इस करारी हार के बाद गहलोत को पार्टी ने घर बैठा दिया और लोकसभा चुनाव में पराजित हुए सचिन पायलट को प्रदेशाध्यक्ष का पद सौंप दिया । गहलोत तीन साल तक अपने सरकारी बंगले में निर्वासित जीवन बिताते रहे …क्रमशः
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