-सुनील कुमार॥
पर्दा एकदम से हट गया है, और मुल्क नंगा हो गया। इसके लिए किसी को मणिपुर जाकर वहां की हकीकत को हजारवीं बार दुहराना भी नहीं पड़ा, यह काम घर बैठे हो गया, वैसे संसद से दिल्ली में मिले घर को छोडक़र विपक्ष के सांसद मणिपुर होकर लौट आए, और दहले हुए दिल के साथ बैठे ही थे कि एक ट्रेन की खबर आ गई। रेलवे की हिफाजत के लिए बनी हथियारबंद पुलिस, आरपीएफ, के एक सिपाही ने अपने सीनियर एएसआई को ट्रेन में ड्यूटी के दौरान गोली मार दी, और इसके बाद एक दूसरे डिब्बे में जाकर उसने सफर कर रहे तीन मुस्लिम मुसाफिरों को छांटकर गोली मारी। देश के एक बड़े अखबार भास्कर की खबर के मुताबिक इस सिपाही ने मुस्लिमों को लेकर कोई टिप्पणी की थी जिसका एएसआई ने विरोध किया था, और इसी बात पर उसने अपने सीनियर को मार डाला, इसके बाद दूसरे डिब्बे में जाकर न सिर्फ तीन छांटे हुए मुस्लिम मुसाफिरों को मारा, बल्कि उनकी लाश पर खड़े रहकर बंदूक हाथ में लिए हुए उसने बहुत से मोबाइल कैमरों के बीच एक भाषण भी दिया, जिसमें मुसलमानों के खिलाफ अपमान की बातें कहीं, और कुछ धुंधली आवाज में इस वीडियो में सुनाई पड़ता है कि वह इन लोगों के पाकिस्तान से ऑपरेट होने की कोई बात कह रहा है, और अगर हिन्दुस्तान में रहना है तो मोदी और योगी को वोट देने की बात भी कह रहा है। ऐसी खुली हत्या, खुली नफरत, और मोदी-योगी के समर्थन के खुले फतवे को देख-सुनकर सोशल मीडिया पर हक्का-बक्का लोग यह सवाल कर रहे हैं कि देश में आज मुस्लिमों के खिलाफ नफरत जितनी फैला दी गई है, यह उसी का नतीजा है कि सबसे छोटा हथियारबंद कर्मचारी भी ट्रेन में छांटकर मुस्लिमों को मार रहा है, और वहीं पर मोदी-योगी का प्रचार कर रहा है। फिर मानो यह घटना भी काफी नहीं थी तो कल शाम होते-होते हरियाणा के नूंह में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच बड़ा साम्प्रदायिक तनाव हो गया है, अब तक चार मौतें हो चुकी हैं, कफ्र्यू लगा हुआ है, और मानो इसी के असर में हरियाणा के गुरूग्राम में कल पुलिस के दिलाए गए भरोसे के बाद भी एक मस्जिद को जला दिया गया, और उसका ईमाम जिंदा जल मरा।
हरियाणा के जिस नूंह में कल विश्व हिन्दू परिषद दस-बीस हजार लोगों की एक कलश यात्रा निकालने जा रही थी, उसके बारे में मुस्लिमों की हत्या के एक अभियुक्त, गौ-गुंडे मोनू मनेसर की तरफ से एक वीडियो फैल रहा था कि वह इस यात्रा में शामिल होने अपने साथियों के साथ पहुंच रहा है। मोनू मनेसर नाम का फरवरी से फरार यह अभियुक्त दो मुस्लिम युवकों को गाड़ी में ही जलाकर मार डालने के मुकदमे में फरार है, और अब वह अपना वीडियो जारी करके मुस्लिम बहुल इस शहर-कस्बे में वीएचपी की रैली में पहुंचने का दंभ भर रहा था। इसके अलावा भी वीएचपी-बजरंगदल के लोगों ने सोशल मीडिया पर भडक़ाऊ वीडियो फैलाने का काम किया था जिससे इस पूरे इलाके में तनाव फैला हुआ था। कहने के लिए हरियाणा सरकार ने मोनू मनेसर के वीडियो के बाद उसे गिरफ्तार करने पुलिस को नूंह भेजने की बात कही थी, लेकिन यह बात साफ है कि हरियाणा के गौ-गुंडे, गौरक्षकों के नाम पर सरकार और पुलिस की मेहरबानी से ही हिंसा का साम्राज्य चलाते हैं। उसी साम्राज्य ने कल साम्प्रदायिक तनाव को इस हद तक फैलाया कि वह सडक़ों पर हिंसा की शक्ल में सामने आया। देश के एक बड़े टीवी चैनल आज तक के कैमरों ने बजरंगदल की भीड़ का जीवंत प्रसारण किया है जिसमें उसके लोग ऑटोमेटिक रायफल, और दूसरे हथियार लेकर चलते दिख रहे हैं, और यह सब कुछ पुलिस की मौजूदगी में होते दिख रहा है।
विपक्ष अब तक मणिपुर के नस्लीय खात्मे के मुद्दे को लेकर ही केन्द्र सरकार से जूझ रहा था, अब इतने और मुद्दे कल ही सामने आ गए कि मणिपुर समाचार बुलेटिनों के बाहर हो गया है। लेकिन एक बात साफ है कि ट्रेन में सिपाही के किए कत्ल हो, या कि हरियाणा में खड़ा हुआ यह साम्प्रदायिक तनाव, यह सब देश में मुस्लिमों के खिलाफ बनाए जा रहे एक माहौल का नतीजा है। अब अगर यह देखें कि इस देश में पुलिस और तरह-तरह के दूसरे सुरक्षाबलों के लोगों के पास जो दसियों लाख बंदूकें हैं, ऑटोमेटिक हथियार हैं, उनमें से कुछ और के दिमाग में अगर इस नफरत की वजह से धर्म या राष्ट्र का उन्माद हावी हो जाता है, तो उनमें से एक-एक बंदूकबाज दर्जनों लाशें गिरा सकता है। देश में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि सुरक्षित समझी जाने वाली भारतीय रेल में मुसाफिरों को सुरक्षाकर्मी ही धर्म के आधार पर छांटकर इस तरह से मार डाले। इसके आसपास की एक-दो मिसालें जरूर हैं जब खालिस्तानी आतंकी कहीं-कहीं पर मुसाफिरों को बसों और ट्रेन से धर्म के आधार पर छांटकर उतारते थे, और गोलियों से भून डालते थे। सुरक्षाकर्मी ही हत्या कर दें, इसकी भी सबसे बड़ी मिसाल ऐसे ही खालिस्तानी असर में हुई थी जब ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों ने उन्हें मार डाला था। लेकिन ऐसी गिनी-चुनी घटनाओं से परे लोग हिन्दुस्तानी ट्रेन को सुरक्षित मानते थे जिसने लोगों के बीच धर्म और जाति के भेदभाव को पिछले 75 बरसों में बहुत हद तक तोड़ा था, और लोगों को हर धर्म और जाति के लोगों के साथ बैठकर लंबा सफर करना पड़ता था, अगल-बगल खाना भी पड़ता था, और जरूरत पर मदद लेनी-देनी भी पड़ती थी। हिन्दुस्तानी रेल सामाजिक एकता की एक बड़ी जगह रहती आई थी, और उस गौरवशाली इतिहास को मुस्लिमों के खिलाफ फैलाई गई नफरत ने कल इस तरह बर्बाद किया है। अब सवाल यह उठता है कि ट्रेनों में सफर करने वाले लोगों को हवाई अड्डों की तरह की हिफाजत तो रहती नहीं है, और लोग अपनी धार्मिक पहचान को छिपाए बिना सफर करते हैं। लोगों का पहरावा उनका धर्म बता देता है, तीर्थयात्रा से लेकर शादी-ब्याह तक किसी मकसद का सफर भी लोगों की जात, धर्म की शिनाख्त करा देता है। ऐसे में अगर सुरक्षा कर्मचारियों के बीच धर्मान्धता, और धार्मिक नफरत, राजनीतिक मूर्ति पूजा, और राष्ट्रवाद का उन्माद हावी होते चलेगा, तो निहत्थे मुसाफिरों के बगल से निकलने वाले ऐसे दसियों हजार सुरक्षाकर्मी हर पल भारतीय रेलगाडिय़ों पर सवार रहते हैं, और क्या दुनिया की कोई भी ताकत उन पर काबू कर सकती है?
बहुत मुश्किल से पौन सदी में हिन्दुस्तान के लोगों ने दूसरे धर्म और दूसरी जाति के लोगों को कुछ हद तक बर्दाश्त करना सीखा था, लोग दूसरे को मारे बिना भी खुद जी पा रहे थे, लेकिन पिछले दस बरस से पौन सदी की उस मेहनत पर पानी फेर दिया। हिन्दुस्तानी इंसानों के भीतर की हिंसा को किसी तरह घटाया गया था, उनमें सहअस्तित्व की एक समझ विकसित की गई थी, वह सब नाली में बह गई। मणिपुर को लेकर फिक्र एक किनारे चली गई, और रेल मुसाफिरों को लेकर यह एक अभूतपूर्व खतरा देश में हर दिन सफर करने वाले दसियों लाख लोगों पर मंडराने लगा है, हरियाणा का साम्प्रदायिक तनाव एक बार फिर यह बता रहा है कि साम्प्रदायिक ताकतें किस हद तक बेकाबू हैं, और किस हद तक सरकार या सरकारें उनके साथ हैं। हिन्दुस्तान में आज जिन सत्तारूढ़ ताकतों को यह लग रहा होगा कि साम्प्रदायिक तनाव और धार्मिक ध्रुवीकरण से लगातार कितने भी चुनाव जीते जा सकते हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र का इतिहास दर्जनों चुनावों के बाद भी दर्ज होते रहेगा, और किस सत्ता या संगठन ने किस तरह से, किस कीमत पर चुनाव जीते, यह बात भी अच्छी तरह दर्ज होती रहेगी। आज देश के हालात बारूद के ढेर के पास तक चिंगारी के पहुंच जाने के हैं। अगर देश की पुलिस और सुरक्षाबल धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता की शिकार होकर अपने कारतूसों का इस्तेमाल चुनिंदा निशानों पर करने लगेंगे, तो कारतूस शायद 140 करोड़ से ज्यादा ही मौजूद होंगे।
इस वक्त पाकिस्तान के शायर जौन एलिया का लिखा याद आता है- अब नहीं कोई बात खतरे की, अब सभी को सभी से खतरा है…