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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

दरिंदगी की हदों को पार कर चुके शैतान आफताब अमीन पूनावाला और अपने प्यार भरे भविष्य के सुनहरे सपने बुन रही श्रद्धा वॉकर के बीच क्या और कैसे रिश्ते थे? भारत भर के बच्चे हो या युवा, अधेड़ हो या बूढ़े या फिर स्त्री हो या पुरुष, सबके जेहन में यह सवाल तूफान मचाए पसरा पड़ा है! सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले इसे जहां लव जेहाद करार देकर अपनी बाटी सेकने में लगे हैं वहीं दूसरी तरफ इसे बतौर लिव इन रिलेशनशिप बताया जा रहा है! दैनिक छत्तीसगढ के संपादक सुनील कुमार ने इस पूरी घटना का जिस तरह विश्लेषण किया है, उससे साबित हो जाता है कि यह मामला लव जिहाद का तो कत्तई नहीं.. पढ़िए इस मामले की पूरी चीड़फाड़..

-सुनील कुमार।।

दिल्ली में लिव इन रिलेशनशिप में साथ रह रहे एक हिन्दू-मुस्लिम जोड़े के बीच की हिंसा ने देश का दिल दहला दिया है। मुस्लिम नौजवान ने हिन्दू लडक़ी के साथ किसी विवाद या मतभेद के बाद उसे मार डाला, उसके 35 टुकड़े कर दिए, नया फ्रिज खरीदकर उसमें भरकर रखा, और दिल्ली के एक जंगल में जाकर रोज दो टुकड़े फेंके। महीनों बाद जाकर किसी तरह से यह मामला सामने आया, तो पुलिस जांच शुरू हुई, और यह मुस्लिम नौजवान गिरफ्तार हुआ। इसके बाद से जैसा कि होना था, मुस्लिम नौजवानों पर लव-जेहाद की तोहमत लगाते हुए सोशल मीडिया पर इस समुदाय पर भारी हमले चल रहे हैं, और जिन लोगों को आमतौर पर समझदार माना जा सकता है, वैसे लोग भी घोर साम्प्रदायिक बातें लिख रहे हैं, बिना यह याद रखे कि पिछले बरसों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें हिन्दू जोड़ों में ही पति या प्रेमी ने साथी के टुकड़े कर दिए, और ऐसे एक मामले में तो सुशील शर्मा नाम के नौजवान ने अपनी पत्नी की हत्या करके उसे जलाने के लिए एक तंदूर में झोंक दिया था। यह कत्ल तंदूर हत्याकांड के नाम से खबरों में बरसों तक रहा। इसलिए कत्ल के ये तरीके धर्मों से परे हैं, और कई धर्मों के लोग साथी का कत्ल करके उसके टुकड़े कर देते हैं। इसलिए हम आज इस मुद्दे पर लिखते हुए हिन्दू-मुस्लिम नजरिये से नहीं लिख रहे हैं, बल्कि लिव इन रिलेशनशिप पर लिखना चाह रहे हैं।

हिन्दुस्तान में जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ा, पढ़ाई और रोजगार के लिए लडक़े-लड़कियों का दूसरे शहरों में जाकर रहना शुरू हुआ, हमउम्र लोगों से मुलाकात शुरू हुई, मोहब्बत या देह-संबंध बने, और कई मामलों में लडक़े-लड़कियों ने साथ रहना भी शुरू किया। कई लोग इसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक से अधिक मामलों में लिव इन रिलेशनशिप पर टिप्पणी की है, और फैसला दिया है, उसने यह साफ किया है कि बालिग लोगों के बीच इस तरह से रहना पूरी तरह उनका कानूनी हक है, और उन्हें इससे कोई नहीं रोक सकते। लेकिन ऐसा भी नहीं कि ऐसे रहने के खिलाफ कोई कानूनी मामले चल रहे थे, इसका विरोध मोटेतौर पर परिवार और समाज की तरफ से होता है, और वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से थमने वाला नहीं है। अब यहां पर सवाल यह उठता है कि एक मुस्लिम नौजवान के हाथ टुकड़े होने वाली हिन्दू युवती की मिसाल देकर लोग लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ बहुत कुछ कह सकते हैं। केन्द्रीय मंत्री कौशल किशोर ने कल यह बयान दिया है कि शिक्षित लड़कियां अपने मां-बाप को छोडक़र लिव इन रिलेशनशिप में रहने की गलती की जिम्मेदार हैं। इस पर शिवसेना की राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने इस मंत्री को कैबिनेट से हटाने की मांग प्रधानमंत्री से की है। इस एक वारदात से इस देश में साथ रहने वाले लडक़े-लड़कियों पर समाज का कहर कुछ अधिक हद तक टूटना तय है क्योंकि यह मिसाल इतनी हिंसक और तकलीफदेह है कि यह लोगों को बाकी पहलुओं के बारे में सोचने का मौका नहीं देगी। यह याद करने का मौका भी नहीं देगी कि बहुत से शादीशुदा जोड़ों के बीच ठीक ऐसी ही हिंसा पहले हो चुकी है, एक ही धर्म के जोड़ों के बीच ऐसी हिंसा हो चुकी है, और कई परिवारों में तो लडक़ी के प्रेमप्रसंग या प्रेमविवाह से खफा परिवारों ने भी उनके टुकड़े किए हुए हैं। अब अगर एक लडक़ी के टुकड़े होने से लिव इन रिलेशनशिप इतनी खराब मानी जा रही है, तो घर के भीतर लडक़ी के टुकड़े होने की मिसाल से क्या पूरे परिवार ही तोड़ दिए जाएं, और मां-बाप, बच्चे सब अलग-अलग रहें?

लोगों को किसी भयानक मिसाल की रौशनी में सोचते-विचारते अपनी तर्कशक्ति नहीं खोना चाहिए, और साथ-साथ न्यायसंगत भी बने रहना चाहिए। दुनिया के जिन देशों में लिव इन रिलेशनशिप एक पूरी तरह आम बात है, वहां पर ऐसे जोड़ों के बीच हिंसा कम होती है, और हिन्दुस्तान जैसे देश में जहां आज भी ऐसे रिश्ते बहुत कम हैं, वहां लड़कियों के साथ सडक़ों से लेकर दूसरी जगहों तक यौन-हिंसा और दूसरे किस्म की हिंसा बहुत होती है। दूसरी बात यह है कि लिव इन रिलेशनशिप के बाद जिन जोड़ों में शादी होती है, उनके बीच तालमेल बेहतर होता है क्योंकि प्रेम-प्रसंग के दिखावे से उबरकर ऐसे जोड़े साथ रहते हुए एक-दूसरे के सबसे अच्छे और सबसे बुरे पहलू देख चुके रहते हैं, और शादी के बाद उन्हें सदमा लगने के खतरे घट जाते हैं। इसलिए जिन लोगों को लिव इन जिंदगी बेहतर लगती है, उनके लिए शायद वह बेहतर रहती भी है। शादी के बाद कुछ नई बातें देखकर तलाक की नौबत आए, इससे बेहतर यह है कि साथ रहने के बाद ठीक न लगे तो अलग हो जाएं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला एकदम सही था, और हिन्दुस्तान की आज की सामाजिक नौबत के हिसाब से सही समय पर आया था, क्योंकि देश की पुलिस किसी नौजवान जोड़े के साथ रहने पर उनके खिलाफ वेश्यावृत्ति जैसे कई कानून लागू करते आई है, और अब जाकर पुलिस के हाथ से शोषण और जुल्म का यह हथियार निकला है।

इस ताजा वारदात ने दो धर्मों के बीच का मामला होने से हिंसक सोच का एक सैलाब सा खड़ा कर दिया है। जिन लोगों के मन में मुस्लिमों से नफरत है, उन्हें अपनी हिंसा निकालने के लिए एक सुनहरा मौका हाथ लगा है, और वे उस काम में जुट गए हैं। लेकिन साम्प्रदायिकता से परे लोगों को यह सोचना होगा कि लिव इन रिलेशनशिप के मामले में हिन्दू-मुस्लिम से परे सोचने की जरूरत है, जिन लोगों को जीने का यह तरीका पसंद नहीं है, वे इसे सामाजिक रूप से नापसंद करते रहें, जिन्हें यह तरीका पसंद है, वे साथ-साथ रहते रहें, लेकिन इस वारदात के बहाने जो लोग अपनी साम्प्रदायिकता की भड़ास निकालना चाहते हैं, वे खुद उजागर हो रहे हैं, और वे यह याद भी करने का मौका जुटाकर दे रहे हैं कि इसके पहले किन-किन हिन्दुओं ने अपने साथी के साथ ऐसी ही हिंसा की थी। एक नाजायज मिसाल दूसरी बहुत सी मिसालों को खड़ा करती है, और वही आज हो रहा है।

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