विवादास्पद धर्मगुरु और डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने एक साल में पांचवी बार पैरोल हासिल कर एक बार फिर से बता दिया है कि रसूखदारों के समक्ष कानून की कोई बिसात नहीं है। गुरमीत राम रहीम इंसान के नाम से जाना जाने वाला यह धर्मगुरु एक रेप मामले में रोहतक की सुनारिया जेल में बंद था। उसे 21 दिनों की पैरोल मिली है।
चार दिन पहले उसकी ओर से पैरोल की अपील की गई थी तथा वह मंगलवार की दोपहर जेल से निकलकर उत्तरप्रदेश के बागपत के बरनावा आश्रम में पैरोल के दिन काटने के लिये रवाना हो गया। उसे डीएसपी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बाकायदा बरनावा आश्रम तक सुरक्षित छोड़कर आयेगी। राम रहीम को जेल में लेने के लिये उसके कुछ शिष्य आये थे जो उनके साथ ही रहेंगे। स्वाभाविक है कि फरलो मंजूर होने के बाद राम रहीम के अनुयायियों और समर्थकों में खुशी की लहर है। यह भी बताया जाता है कि बरनावा आश्रम में उसके आने की भव्य तैयारियां कर ली गई हैं।
उल्लेखनीय है कि राम रहीम को अपनी दो शिष्याओं के साथ बलात्कार कवं एक पूर्व डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या के आरोप में 20 वर्ष की सुनाई गई है। अगस्त 2017 में पंचकूला की एक विशेष सीबीआई अदालत ने उसे दोषी करार दिया था। उनके आश्रम को लेकर अनेक तरह की बातें कही जाती हैं लेकिन कहते हैं कि सारी बातें उसके प्रभाव व भय से कभी सामने नहीं आ पाईं।
वैसे राम रहीम को फरलो पर बाहर आने के मसले को हरियाणा 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ भी जोड़ा जा रहा है। राम रहीम का एक बड़े वर्ग पर अच्छा-खासा प्रभाव है जो उसके अपराधी साबित होने के बाद भी कम नहीं हुआ है। कहते हैं कि हरियाणा की सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी पहले भी उसकी मदद अपने प्रचार के लिये अप्रत्यक्ष रूप से लेती रही है। इसके एवज में ही राम रहीम पर यह मेहरबानी होती है। उसे सबसे पहले 30 दिनों की पैरोल 17 जून 2022 को मिली थी। उस दौरान भी वह बरनावा आश्रम में रहा था। फिर 15 अक्टूबर को उसे दूसरी बार पैरोल मिली थी। 21 जनवरी, 2023 को तीसरी बार उसे 40 दिनों के लिये फरलो मिली। पैरोल पूरी कर वह तीन मार्च को वापस सुनारिया जेल चला गया था। चौथी बार फिर 20 जुलाई को 30 दिनों की पैरोल प्राप्त कर वह फिर अपने बरनावा आश्रम पहुंचा था।
यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि ऐसे जघन्य अपराधों के लिये सजा काट रहा एक व्यक्ति कैसे मनमर्जी से पैरोल पा लेता है जबकि देश की जेलों में सजा काट रहे लाखों लोगों को एक दिन की छुट्टी पाना तक मुहाल हो जाता है- चाहे किसी के घर में मौत हुई हो या किसी का नज़दीकी सख्त बीमार पड़ा हो जो उसका मुंह आखिरी बार देखने के लिये तरस रहा हो। जेलों में बन्द बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें सज़ा तक नहीं सुनाई गई होती और वे विचाराधीन यानी अंडर ट्रायल कैदी होते हैं। इतना ही नहीं, नियमों के अनुसार उनके परिजन या मित्र उनसे दो-चार मिनटों के लिये मिलने के लिये अवसर तक नहीं पा सकते क्योंकि मुलाकात कराने की प्रक्रिया बेहद दुरुह है। इसके अलावा सम्पूर्ण न्यायालयीन व कानूनी प्रक्रिया में फैला भयानक भ्रष्टाचार गरीबों व अभावग्रस्त लोगों को अपने अधिकार का लाभ उठाने से तक रोक देता है।
भारत की किसी भी जेल के बाहर यह दृश्य आम होता है कि हजारों की संख्या में लोग जेलों में बन्द अपने किसी नज़दीकी से मिलने के लिये घंटों इंतज़ार करते रहते हैं। या तो उनकी मुलाकात हो ही नहीं पाती या फिर उन्हें बार-बार जेल के दरवाजों पर आना पड़ता है। केवल मुलाकात करने का आदेश पाना या फिर उसका क्रियान्वयन करा लेना अपने आप में एक बड़ी कठिन चुनौती होती है। इतना ही नहीं, बहुत छोटी सी जमानत राशि के अभाव में लाखों गरीब, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, निरक्षर, एकाकी लोग बगैर सजा मिले कई-कई साल जेलों की कोठरियों में गुजार देते हैं।
ऐसे में राम रहीम जैसों को चाहे जब पैरोल मिल जाना आश्चर्यकारी से अधिक दुखद ही कहा जा सकता है। जिस गति से उनकी अस्थायी मुक्ति के दस्तावेज़ एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय और एक टेबल से दूसरी टेबल की यात्रा करते हैं, वह बतलाता है कि देश में कुछ लोगों के लिये एक कानून है तो अन्य लोगों के लिये दूसरा कानून। कानून के समक्ष समानता का अधिकार यहां पानी मांगता नज़र आता है। हालांकि इसका बचाव करने वाले कहते हैं कि जो भी हो रहा है वह विधिसम्मत ही होता है। सवाल तो यह है कि सुविधाहीन एवं सामान्यजनों के लिये विधिप्रदत्त अधिकार कहां हवा हो जाते हैं। व्यवस्था वास्तविक रूप से ज़रूरतमंदों को ऐसी राहत कभी नहीं दे पाती।
सबसे दुखद तो यह है कि ऐसे अपराधियों का उपयोग राजनैतिक दल चुनाव जीतने के लिये करते हैं। पिछले कुछ समय से देश की जो हवा बदली है उसमें भाजपा को कांग्रेस व अन्य कई दलों द्वारा बनाये गये विपक्षी गठबन्धन इंडिया की ओर से गम्भीर चुनौतियां मिल रही हैं। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में मिली हार के बाद जिस प्रकार से भाजपा के सिर पर जारी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी खतरा मंडरा रहा है, भाजपा को हर ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जो उसके वोट बैंक में इज़ाफ़ा कर सके। अपराधियों को यूं खुली छूट घातक है।