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-नारायण बारेठ॥

दो बेटियां, दोनों का मुख्तलिफ संसार
एक मेक्सिको में, दूसरी का राजस्थान में सरहद के उस पर रेगिस्तान में बसेरा
दोनों के पिता अपनी अपनी जालिम हुकूमतों से लड़ते रहे.. ये इत्तेफाक है दोनों ने अपनी अपनी दुलारी बेटियों का नाम इंदिरा रखा।

गेब्रियल गार्सिया मार्केज लैटिन अमेरिकी देश कोलंबिया में पैदा हुए, उन्हें 1982 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार मिला। दूसरे अब्दुल वाहिद अरिसर है। वे कवि ,लेखक और राजनीतिक अभियानी थे। ये दोनों कभी एक दूसरे से नहीं मिले। मगर दोनों ही इंदिरा गाँधी से प्रभावित थे। मार्केज ने अपनी बेटी का नाम इंदिरा रखा/ अब्दुल वाहिद अरिसार ने भी अपनी इकलौती बिटिया का नाम इंदिरा रखा।

ये दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं है।मार्केज का उपन्यास ‘एकांतवास के एक सौ साल’ One Hundred Years of Solitude प्रकाशित होकर मंजरे आम पर आया तो धूम मच गई। किताब की हफ्ते भर में सारी प्रतियां बिक गई। फिर कोई दो करोड़ प्रतिया बिकी। तीस भाषाओ में अनुबाद हुआ। मार्केज ने पत्रकारिता भी की। पर उन्हें लम्बा जीवन अपने वतन से दूर निर्वासन में बिताना पड़ा। मेक्सिको में जीवन गुजरा।

अपनी लेखकीय कामयाबी के लिए मार्केज अपनी जीवन साथी मर्सेडीज का आभार व्यक्त करते थे। कहते थे जब वे ये उपन्यास लिख रहे थे ,जिंदगी बहुत कठिन थी। पत्नी ने कैसे घर चलाया ,उन्हें पता नहीं चलने दिया। जब 1300 पन्नो का उपन्यास छप कर आया ,उन पर 12 हजार डॉलर का कर्ज था। मार्केज की जिंदगी में मोड़ आया जब सुसाना से उनकी निकटता बढ़ी। मार्केज और सुसाना के बेटी हुई तो मार्केज ने बेटी का नाम इंदिरा रखा।लेकिन इस राज को दोनों परिवारों ने गोपनीय रखा। मार्केज के निधन के आठ साल बाद इसका खुलासा हुआ। इंदिरा अब 30 साल की है। फिल्मे -डाक्यूमेंट्री बनाती है।



मार्केज को जब नोबेल पुरस्कार मिला,इंदिरा गाँधी ने सबसे पहले उन्हें बधाई दी। अब्दुल वाहिद  आरिसर का पूरा जीवन पाकिस्तान में फौजी हुक्मरानों से लड़ते गुजरा। वे कोई पांच साल जेल में रहे।  मुजीब जब ढाका में मोर्चा खोले हुए थे ,आरिसर ने सिंध विवि में मुजीब के पक्ष में प्रभावशाली तकरीर की और नतीजे में उन्हें तीन साल जेल में गुजारने पड़े। वे बंटवारे को नहीं मानते थे। आरिसर सिंध की संस्कृति ,जबान और सिंधी लोगो के हको हुकूक की आवाज उठाते रहे। वे  धर्म आस्था और समुदायों  में परस्पर सद्भाव के पैरोकार  थे।     

आरिसर जब बेटी के पिता बने ,नाम रखा इंदिरा। इस पर वहां हंगामा हो गया। आरिसर ने तब कहा हुक्मरान सिंध के लोगो को गुलाम समझते है/ यही वजह है कि एक सिंधी को अपनी इच्छा के मुताबिक बेटी का नाम रखने पर भी ऐतराज किया जा रहा है। आरिसर ने 22 किताबें लिखी। इसमें जेल डायरी ,मुजीब और भुट्टो और उम्मीद का कत्ल भी शामिल है।  बाड़मेर के उस पार अमरकोट है। उसी जिले  में थार रेगिस्तान के एक गांव में वे पैदा हुए। फिर सात साल पहले निधन हुआ तो उसी मिट्टी में सुपुर्दे खाक हो गए। 

मार्केज और आरिसर दोनों ही अदब साहित्य के सिपाही थे। दुनिया में तानाशाही जहाँ भी है ,उसे कवि -साहित्यकार ,लेखक -पत्रकार और शिक्षक अच्छे नहीं लगते।इसीलिए उनके जेल कारागार आबाद रहते है।

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