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शीशे के घरों में सेलोफिन का तौलिया लपेटे विवेक अग्निहोत्री को तगड़ा जवाब..

-सुनील कुमार।।

सोशल मीडिया के आने के पहले जिंदगी इतनी दिलचस्प कभी नहीं थी। मीडिया के नाम पर एक वक्त सिर्फ अखबार थे, फिर रेडियो-टीवी जुड़ गए, और कई दशक बाद इंटरनेट पर डिजिटल मीडिया विकसित हुआ। लेकिन इंटरनेट पर सोशल मीडिया के आते ही जिस तरह से आम लोगों को एक लोकतांत्रिक अधिकार मिला, आवाज मिली, उससे दुनिया की पूरी तस्वीर बदल गई। एक वक्त किसी शहर के चार अखबारों को काबू में करके, इश्तहार या रिश्वत देकर वहां की किसी भी खबर को दबाया जा सकता था। आज हिन्दुस्तान जैसे देश में भी हर शहर-कस्बे में सोशल मीडिया पर दसियों हजार या लाखों लोग हैं, और किसी भी बात को छुपाना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं रह गया। आज तो अगर दर्जन भर किस्म के अलग-अलग धर्मों के ईश्वर भी मिलकर चाहें कि किसी बात को दबवा लें, तो सोशल मीडिया पर लाखों नास्तिक भी मौजूद हैं जो कि ईश्वरों के दबाव का जिक्र करते हुए भी उनकी अनचाही खबरों को पल भर में चारों तरफ फैला देंगे। लेकिन इस सोशल मीडिया से उन लोगों के लिए खासी दिक्कत खड़ी हो गई है जो कि कुछ अरसा पहले किसी और संदर्भ में अलग किस्म की बात करते आए हैं, और आज अपने मतलब से या बदले हुए माहौल को देखते हुए उससे ठीक उल्टी बात कर रहे हैं। लोग उनकी पुरानी उल्टी को सोशल मीडिया पर ढूंढकर आज उनके मुंह पर मल दे रहे हैं।

ऐसा ताजा हादसा कश्मीर फाईल्स नाम की फिल्म के निर्माता-निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री के साथ हुआ जिन्होंने फिल्म पठान के विरोध में एक वीडियो पोस्ट किया था। उनकी यह पोस्ट भारत के हिन्दुत्ववादियों के अभियान का हिस्सा थी जो कि अभिनेता शाहरूख खान की वजह से उनकी बांहों में दिख रही अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की भगवा-केसरिया बिकिनी को हिन्दू धर्म का अपमान करार दे रहे हैं। विवेक अग्निहोत्री सोशल मीडिया पर रात-दिन हिन्दुत्ववादी-राष्ट्रवादी आंदोलनकारी की तरह लगे रहते हैं, और उनकी इस पोस्ट के बाद लोगों ने आनन-फानन सोशल मीडिया से ही विवेक अग्निहोत्री की बेटी मल्लिका की अपनी पोस्ट की हुई तस्वीरें निकालकर लगा दीं जिनमें वे भगवा कलर के बिकिनी टॉप में समंदर के किनारे अपनी तस्वीरें खिंचवाकर पोस्ट कर रही हैं। विवेक अग्निहोत्री के पोस्ट किए हुए वीडियो में दीपिका का बिकिनी-डांस देखकर एक बच्ची रोते हुए कह रही है कि इतनी अश्लीलता आप लोग लाते कहां से हो। यह सवाल दिलचस्प हो सकता था लेकिन लोगों ने विवेक अग्निहोत्री का एक पुराना वीडियो निकालकर पोस्ट किया जिसमें उन्होंने हेट-स्टोरी नामक फिल्म बनाते समय फिल्मों में महिला के बदन को दिखाने के महत्व का लंबा-चौड़ा बखान किया था, और ऐसे मादक नजारों का जश्न मनाने के लिए कहा था। उनका यह लंबा वीडियो माइक पर उनकी कही हुई बातें हैं जिसमें उन्होंने महिला के बदन को खूबसूरत बताते हुए उसे पर्दे पर दिखाने की लंबी-चौड़ी हिमायत की थी। अब आज जब वे एक, दर्जनों दूसरे रंगों सहित भगवा-केसरिया बिकिनी में दिखने वाली दीपिका के बहाने शाहरूख का नाम लिए उन पर हमला कर रहे हैं, तो यह सोशल मीडिया की ही ताकत है कि वह पल भर में विवेक अग्निहोत्री की दोगली बातों का भांडाफोड़ कर रहा है। और मजे की बात यह है कि टीवी से लेकर अखबारों तक और डिजिटल से लेकर दूसरे किस्म के मीडिया तक, ये सब सोशल मीडिया की ऐसी पोस्ट को अपनी खास खबरें बना रहे हैं। मीडिया मालिकों और मीडिया के लिए काम करने वाले तथाकथित पत्रकारों को काबू में करने वाली ताकतों के लिए सोशल मीडिया एक बुरे ख्वाब की तरह है जिस पर कोई काबू नहीं पाया जा सकता। फेसबुक जैसे कुछ बिकाऊ माध्यमों से ऐसे काबू के सौदे जरूर हो सकते हैं, लेकिन उसके बावजूद कई दूसरे सोशल मीडिया हमेशा ही लोगों के लिए मौजूद रहेंगे, और लोग उनका लोकतांत्रिक इस्तेमाल करते ही रहेंगे। सोशल मीडिया की इस ताकत को कम नहीं आंकना चाहिए कि वह पहाड़ से निकलने वाली एक नदी की तरह है जिसके पानी का बहाव बेकाबू रहता है। और यही बेकाबूपन उसे कुछ हद तक अराजक और बहुत हद तक लोकतांत्रिक बनाकर चलता है।

पिछले कुछ महीनों में कई ऐसे मौके सामने आए हैं जब भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकतों ने दूसरों पर हमले किए, और कुछ घंटों के भीतर उन ताकतों की पुरानी बातों की कतरनें, उनके वीडियो निकालकर लोगों ने पोस्ट करना शुरू कर दिया। आज तो सार्वजनिक जीवन में रहने वाले लोग सचमुच ही शीशे के घरों में रह रहे हैं, और उन्हें दूसरों पर पत्थर चलाने के पहले यह याद रखना चाहिए कि जो लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं वे मानो पारदर्शी सेलोफिन का तौलिया लपेटे रहते हैं, और लोगों की पहुंच के भीतर रहते हैं। एक मामूली डांस को अश्लील बताने वाले विवेक अग्निहोत्री का महिला-देह की नग्नता की बड़ी लंबी वकालत देखने लायक है, और सोशल मीडिया पर लोगों को ढूंढकर इसे देखना चाहिए कि तिलक लगाया हुआ यह पाखंड किस दर्जे का है। हम सोशल मीडिया की इस अराजक ताकत के लोकतांत्रिक महत्व को गिनाना चाहते हैं कि जब संगठित कारोबार की तरह चलने वाले मीडिया घराने बिक जाते हैं, बड़े-बड़े नामी-गिरामी तथाकथित पत्रकार हर महीने कुछ राजनीतिक ट्वीट करने का लाखों रूपया भुगतान पाते हैं, तब अराजक सही, लोकतांत्रिक सोशल मीडिया यह साबित करता है कि ये तो पब्लिक है, ये सब जानती है…।

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