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पाकिस्तान इस वक्त गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 4.3 अरब डॉलर रह गया है और सिर्फ 3-4 सप्ताह के आयात का ही फंड बचा है।

पाकिस्तान को अगले दो साल तक प्रति वर्ष 20 अरब डॉलर का क़र्ज भी चुकाना है। पिछले साल आई बाढ़ के कारण पाकिस्तान को काफी आर्थिक नुकसान हुआ था, इसके अलावा लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता से हटाना और तहरीके तालिबान का फिर से सिर उठाना पाकिस्तान के लिए बड़ा संकट साबित हुए हैं।

आर्थिक, राजनैतिक संकट में फंसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अब दूसरे देशों से मदद की आस लगाए बैठे हैं। कर्ज लेने के सिलसिले में वे पिछले दिनों सऊदी अरब गए थे, जहां अरबी टीवी चैनल अल अरबिया के साथ एक बातचीत में शहबाज़ शरीफ़ ने भारत के साथ रिश्तों को सुधारने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं। हालांकि उन्होंने जो कुछ कहा, उसे बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय से लगभग नकार ही दिया गया।

शहबाज शरीफ के भाई नवाज़ शरीफ जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, तब भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की पहल हुई थी। वाजपेयीजी ने फरवरी 1999 में अमृतसर से लाहौर तक बस यात्रा की थी, जिसका स्वागत नवाज शरीफ ने किया था। उस वक्त वाजपेयीजी ने कहा था कि मित्र बदले जा सकते हैं, पड़ोसी नहीं। अब शहबाज शरीफ ने लगभग ऐसी ही बात अल अरबिया से साक्षात्कार में कही। उन्होंने कहा कि भारत हमारा पड़ोसी है और बहुत साफ कहूं तो हम मर्जी से पड़ोसी नहीं हैं।

लेकिन हमें रहना हमेशा साथ में ही है। पाक प्रधानमंत्री शरीफ ने कहा कि वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ‘ईमानदार बातचीत’ चाहते हैं। कश्मीर समेत अन्य मसलों पर बातचीत के लिए संयुक्त अरब अमीरात भारत और पाकिस्तान को बातचीत के टेबल पर लाने पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, ऐसा श्री शरीफ का मानना है। उन्होंने शांति पर जोर देते हुए कहा कि ये हम पर है कि हम शांति के साथ रहते हैं और प्रगति करते हैं या फिर एक दूसरे से लड़ाई में समय और संसाधनों की बर्बादी करते हैं। भारत के साथ हमने तीन युद्ध किया है और इससे ग़रीबी, बेरोज़गारी और दुर्गति ही आई है। हमने सबक सीख लिया है। हम ग़रीबी ख़त्म करना चाहते हैं, लोगों को रोज़गार, स्वास्थ्य सुविधाएँ और शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं। हम अपने संसाधान बम और हथियारों पर नष्ट नहीं करना चाहते हैं। ये संदेश मैं प्रधानमंत्री मोदी को देना चाहता हूँ।

पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच शांति का यह प्रस्ताव काफी सुखकर था, लेकिन उनके इस बयान के बाद पाकिस्तान प्रधानमंत्री कार्यालय से स्पष्टीकरण जैसा बयान भी आ गया कि प्रधानमंत्री शरीफ ने साक्षात्कार के दौरान ये स्पष्ट रूप से कहा है कि कश्मीर विवाद का हल संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावना के अनुसार होना चाहिए।

गौरतलब है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति पर पाकिस्तान ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और वह अब तक इस बात पर कायम है कि भारत के साथ बातचीत तभी हो सकती है, जब वो कश्मीर पर अपना पाँच अगस्त 2019 वाला फ़ैसला वापस ले। एक ओर शहबाज शरीफ ये भी कह रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं और अगर दोनों देशों में युद्ध छिड़ गया, तो कोई बताने के लिए भी नहीं रहेगा कि क्या हुआ था और दूसरी ओऱ जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर हठपूर्ण रवैया भी दिखाया जा रहा है। यह तब हो रहा है जब पाकिस्तान के लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं। आटे के लिए वहां किस कदर मारामारी मची है, इसकी तस्वीरें पिछले दिनों सोशल मीडिया पर आई थीं। ऊर्जा का संकट ऐसा है कि सरकार को बाज़ारों और मॉल को समय से पहले बंद करने का आदेश देना पड़ा है। सरकारी कार्यालयों और विभागों को भी बिजली खपत 30 प्रतिशत कम करने का आदेश दिया गया है।

ये आर्थिक संकट केवल प्राकृतिक आपदाओं के कारण नहीं आया है, बल्कि पाकिस्तान में लोकतंत्र पर जिस तरह सेना की मर्जी हावी रही, और बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देने की जगह ऐसे मुद्दों को तरजीह दी गई, जिनसे राजनैतिक लाभ मिलता हो, उस वजह से देश परेशानी में घिरता चला गया। अब पानी सिर के ऊपर आया है तो शहबाज शरीफ युद्ध की जगह विकास के महत्व पर बातें कर रहे हैं।

लोकोक्ति है कि सुबह का भूला शाम को घर आए, तो उसे भूला नहीं कहते। लेकिन सवाल ये है कि क्या शरीफ अपनी यानी पाकिस्तान की भूलों पर विचार करने के लिए ईमानदारी से तैयार हैं। यह तथ्य है कि पाकिस्तान में गरीबी और अशांति का संकट तभी खत्म होगा, जब इधऱ-उधर की लड़ाइय़ों में उलझने और विकसित देशों का पिछलग्गू बनने की आदत छोड़ी जाएगी। शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका और अभी चीन ने पाकिस्तान का अपने फायदे के लिए बखूबी इस्तेमाल किया और वहां के हुक्मरान ये सोचते रहे कि ये देश उसके मित्र हैं। अब वैश्विक समीकरण बदल चुके हैं, साथ ही लड़ाइयों के मैदान और तरीके भी। इसलिए वक्त के साथ पाकिस्तान को भी बदलना होगा।

धार्मिक कट्टरता, शैक्षणिक पिछड़ापन और नेतृत्व में प्रगतिशील सोच की कमी के पाकिस्तान ने अपने अस्तित्व को खतरे में डाला है। जबकि भारत ने आजादी के शुरुआती वर्षों में इन्हीं पर सबसे अधिक काम करके एक मजबूत स्थिति दुनिया में बनाई। हमारा संविधान हमारी सबसे बड़ी ताकत है। धर्मनिरपेक्षता, वैज्ञानिक सोच, अभिव्यक्ति की आजादी, सबके लिए बराबरी इन मूल्यों को साथ लेकर भारत आगे बढ़ा है। युद्ध का मूल्य भारत ने भी खूब चुकाया है, इसलिए नेहरूजी ने गुटनिरपेक्षता की नींव रखी, ताकि देश ही नहीं दुनिया में शांति हो। आज भारत हो या पाकिस्तान, नेहरू-गांधी की सोच के साथ अगर सरकारें काम करें, तो दोनों पक्षों की उन्नति होगी।

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