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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सत्य पारीक॥
राजस्थान भाजपा में भावी मुख्यमंत्री की दौड़ में फ़्यूज बल्ब टाईप अनेक स्वंयभू उम्मीदवार हैं लेकिन जयपुर की राजकुमारी व सांसद दिया के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी-गृह मंत्री अमित शाह की मोहर लगना तय माना जा रहा है । उच्च स्तरीय सूत्रों के अनुसार राजकुमारी का नाम घोषित नहीं किया जाएगा बल्कि विधानसभा चुनाव के बाद सामने लाया जाएगा । क्योंकि पार्टी में विघ्नसन्तोषीयों की लम्बी कतार है इस कारण शीर्ष नेतृत्व नहीं चाहता कि उनके नाम पर कोई विवाद शुरू हो जाए । इसीलिए शिर्ष नेतृत्व फूंक फूंक कर कदम रख रहा है लेकिन मीडिया में तो किसी ना किसी सूत्र से खबर पहुंच ही जाती है ।
उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राजकुमारी ने अपनी दादी व राजमाता गायत्री देवी के परम्परागत निर्वाचन क्षेत्र जयपुर शहर से पार्टी की उम्मीदवारी चाही थी । उस समय वे सवाईमाधोपुर से विधायक थी लेकिन वसुंधरा राजे के विरोध के कारण उन्हें जयपुर की बजाय राजसमंद से आखिरकार टिकिट दी गई थी । जयपुर से राजे गुट के खास माने जाने वाले रामचरण बोहरा चुनाव लड़ते हैं इस कारण अगर उनकी टिकट काटी जाती तो जयपुर ग्रामीण क्षेत्र से भी राजे के दूसरे ख़ास माने जाने वाले कर्नल राज्यवर्धन सिंह की भी राजपूत होने के कारण टिकट कट जाती । क्योंकि राजकुमारी व कर्नल दोनों राजपूतों को एक ही जिले से टिकट देना सम्भव नहीं है ।
ज्यों ज्यों विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं त्यों त्यों भाजपा में भावी मुख्यमंत्री के दावेदार उछल उछल कर बाहर आ रहे हैं । नया नाम उछला है प्रतिपक्ष के नेता घोषित होते ही राजेन्द्र सिंह राठौड़ का , हकीकत में राठौड़ को काम चलाऊ नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है । ऐसे ही नाम उछाला गया था ओम माथुर का , जबकि उनके प्रदेशाध्यक्ष कार्यकाल में हुए विधानसभा चुनाव में उस समय की सत्तारूढ़ भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी । उसी दौरान माथुर को संघ ने अपने प्रचारकों की सूची से हटा दिया था , उसके बाद माथुर को पार्टी का उपाध्यक्ष बना कर कोने लगा दिया गया ।
भावी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला भी खुद को मान रहे हैं जिसका प्रचार उनके समर्थक भी कर रहें हैं । लेकिन बिडला के गृह नगर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में इनकी करतूतों का भंडाफोड़ होता रहता है वैसे भी लोकसभा अध्यक्ष आज तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बना है । इसी श्रंखला में कभी प्रदेशाध्यक्ष का तो कभी मुख्यमंत्री के लिए उछाला जाता है केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का । जो एकबार मुख्यमंत्री बनने की असफल कोशिश पहले कर चुकें हैं जब उन्होंने कांग्रेस के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट बागी बनाकर अपनी योजना को कामयाब करना चाहा था जिसमें इनके इलावा सतीश पूनियां व राजेन्द्र सिंह राठौड़ भी राजनीतिक रूप से बदनाम हुए थे ।
शेखावत पर संजीवनी घोटाले का आरोप भी संगीन है ।

इसी तरह से केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का भी नाम भावी मुख्यमंत्री के लिये उछल रहा है लेकिन इनका राजनीतिक जीवन भी बहुत छोटा रहा है और ना ही राजनीतिक अनुभव है । इस कारण ये भावी मुख्यमंत्री की दौड़ में कहीं नहीं टिकते हैं । इनके बाद बचती है पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे , जिन पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व का भरोसा नहीं है क्योंकि एक तो राजे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से राजनीतिक मित्रता है दूसरा पायलट ने इन पर करप्शन के आरोप लगा कर कटघरे में खड़ा कर दिया है ।
राजे राजनीतिक दबाव बनाने में अभी तक असफल रही है ज्यों ज्यों चुनाव नजदीक आ रहे हैं इनका दावा भी ठंडा पड़ता जा रहा है वैसे शीर्ष नेतृत्व तय कर चुका है कि राज्य विधानसभा का चुनाव मोदी के नाम पर लड़ेंगे ।

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