Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

कर्नाटक चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के घोषणापत्र आ गए हैं। कल पहले भाजपा का घोषणापत्र आया जिसमें गरीबी रेखा के नीचे के सभी परिवारों को साल में तीन मुफ्त रसोई गैस सिलेंडर देने का वायदा किया गया है। इसके अलावा पड़ोस के तमिलनाडु से जयललिता के शुरू किए हुए अम्मा किचन की तर्ज पर हर नगर निगम के हर वार्ड में सस्ते गुणवत्तापूर्ण, और स्वास्थ्यवर्धक भोजन उपलब्ध कराने के लिए अटल आहार केन्द्र स्थापित किए जाएंगे। पोषण आहार योजना के तहत हर बीपीएल परिवार को पांच किलो गेहूं, और पांच किलो मोटे अनाज मिलेंगे, और हर दिन आधा लीटर दूध मिलेगा। कांग्रेस का घोषणापत्र इसके बाद आया, और उसमें हर परिवार को दो सौ यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया गया है, इस तरह की व्यवस्था छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पहले से कर चुकी है, और आम आदमी पार्टी की सरकार ने पंजाब में इसे किया है। कर्नाटक के घोषणापत्र में कांग्रेस ने हर परिवार की महिला मुखिया को दो हजार रूपए महीने देने की घोषणा की है, हर बेरोजगार ग्रेजुएट को दो साल तक तीन हजार रूपए महीने, और डिप्लोमा होल्डर बेरोजगार को दो साल तक पन्द्रह सौ रूपए महीने दिए जाएंगे। कांग्रेस ने कहा है कि उसकी सरकार आने पर दस किलो अनाज मुफ्त दिया जाएगा, और सरकारी बसों में महिलाएं मुफ्त सफर कर सकेंगी।

इन दोनों घोषणापत्रों को इस बात को याद रखते हुए देखना चाहिए कि पिछले कुछ बरसों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों को मुफ्त या रियायती सामान देने के खिलाफ कई बार कहा है, और पिछले बरस उन्होंने इसे रेवड़ी कल्चर करार दिया था, तब केजरीवाल सरीखे कई नेताओं ने उनकी सोच और उनके बयान की खासी आलोचना की थी। अभी पांच दिन पहले इसी कर्नाटक में चुनाव प्रचार की आमसभा में मोदी ने फिर देश के कई राजनीतिक दलों के ‘रेवड़ी कल्चर’ पर हमला किया था, और कहा था कि देश के विकास के लिए लोगों को मुफ्त रेवड़ी बांटना बंद करना होगा। अब सवाल यह है कि चुनावी घोषणापत्र में भाजपा भी जगह-जगह कई तरह की मुफ्त चीजों की घोषणा करती है, अब फर्क यही रह जाता है कि किस तरह किस रंग की रेवडिय़ां मोदी को नहीं खटकती हैं, और किस रंग की खटकती हैं। जनता को जो कुछ भी मुफ्त या रियायती देने की घोषणा होती है, उसे देखने का अपना-अपना नजरिया होता है, और कोई भी उसे रेवड़ी करार दे सकते हैं। चुनावी मुकाबलों में तेरी रेवड़ी मेरी रेवड़ी से अधिक जायज कैसे, यह सवाल तो खड़े ही रहता है। धीरे-धीरे जनता हर छूट या रियायत की आदी हो जाती है, और उसे अगले चुनावों में कुछ और नया देने की जरूरत पड़ती है। और यह सिलसिला बढ़ते-बढ़ते आबादी के एक बड़े हिस्से को फायदा देने लगता है, लेकिन इससे आबादी का कोई स्थाई भला नहीं होता, केवल रोज की जिंदगी बेहतर होती है, खानपान मिलने से कुपोषण खत्म होता है, लेकिन इससे रोजगार नहीं बनता।

भारत जैसे देश में यह एक मुश्किल फैसला होता है कि रियायतों को कहां रोका जाए, और लोगों को काम करने के लिए कब आगे बढ़ाया जाए। बहुत सी पार्टियों ने समय-समय पर गरीबों के खानपान की सहूलियत के लिए बहुत रियायती इंतजाम अलग-अलग राज्यों में किए, इनमें शायद तमिलनाडु सबसे पहला भी रहा, और सबसे कामयाब भी रहा। स्कूलों में दोपहर का भोजन, फिर सुबह का नाश्ता, यह सब इंतजाम करने में भी तमिलनाडु ने ही बाकी हिन्दुस्तान को राह दिखाई है। और अब वहां पर हालत यह हो गई है कि जनता इसे अपना हक मानने लगी है, और कोई भी सरकार इसे खत्म नहीं कर सकती। जिस देश में आधी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे हो, उस देश में रियायतें, और जिंदा रहने के लिए मुफ्त की कुछ चीजें रोकी नहीं जा सकतीं। इसलिए पूरे देश में केन्द्र और राज्य सरकारें तरह-तरह की योजनाओं के तहत गरीब लोगों को अनाज तकरीबन मुफ्त देती हैं। कुछ राज्यों में एक दिन की मजदूरी से परिवार का एक महीने का राशन आ सकता है। इन्हीं बातों से हिन्दुस्तान में अब भुखमरी से मौत जैसी खबरें आना बंद हो गई हैं। और कुछ भी हो जाए, लोगों के पास खाने का इंतजाम अब रहने लगा है। लेकिन यह इंतजाम तो जंगलों या शहरों में रहने वाले जानवरों के पास भी रहता है, इंसानों को इससे ऊपर उठने की जरूरत है।

जिस तरह बेरोजगारी भत्ता कुछ सीमित बरसों के लिए देने की योजना छत्तीसगढ़ ने शुरू की है, कुछ और राज्यों में है, और कर्नाटक में अभी इसकी घोषणा हो रही है, उसी तरह बहुत सी रियायतें सीमित बरसों के लिए होनी चाहिए, और रोजगार की योजनाएं इस तरह लागू की जानी चाहिए कि लोग खुद कमाना शुरू कर सकें, और मुफ्त का सामान लेने की उनकी जरूरत न रहे। यह बात कहना आसान है, करना तकरीबन नामुमकिन है, क्योंकि जिस देश में सबसे बड़े खरबपति भी कोई टैक्स रियायत छोडऩा नहीं चाहते हैं, हर तरह की छूट को पाने के लिए अपने खाते-बही बदलते रहते हैं, उस देश में गरीबी की रेखा से जरा से ऊपर आए किसी को ईमानदारी से रियायतें छोड़ देने को कहना इस देश की संस्कृति के खिलाफ भी जाएगा। फिर भी एक सोच तो विकसित होनी ही चाहिए, फिर चाहे वह तुरंत अमल के लायक न भी हो। हिन्दुस्तान ने राजनीतिक दलों और सरकारों को रोजगार के मौके बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए जिससे लोग रियायतें अगर पाते भी रहें, तो भी उनके परिवार की दूसरी जरूरतें रोजगार से पूरी हों, और जिंदगी हमेशा गरीबी की रेखा के नीचे न रहे। आज हिन्दुस्तान में इंसानी सहूलियतें किसी भी विकसित देश के मुकाबले बहुत कमजोर हैं, और हिन्दुस्तान अपने आपको अब विकासशील देश नहीं गिनता है, विकसित देश गिनता है। जबकि विकसित के साथ जो तस्वीर दिमाग में उभरती है, वह हिन्दुस्तान की आम जिंदगी में कहीं नहीं है। चुनावी जीतने के लिए राजनीतिक दल घोषणापत्रों में चाहे जो लिखें, असल रोजगार पैदा करने वाली सरकार अलग ही दिखेगी, और आंकड़ों का वायदा करने वाली पार्टियां भी उजागर हो रही हैं। छह महीने बाद कुछ राज्यों में चुनाव हैं, और साल भर बाद देश में संसद के आम चुनाव। देखते हैं इन चुनावों में और कैसे-कैसे वायदे किए जाते हैं, और पिछले घोषणापत्रों के वायदों पर अब तक क्या हुआ ह

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *