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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के संस्थापक शरद पवार ने कुछ दिनों पहले कहा था कि रोटी पलटने का वक्त आ गया है। तब उनके इस वाक्य को कई तरह से डिकोड किया गया था। किसी ने इसे एनसीपी में अजित पवार की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर लगाम कसने का संकेत माना तो किसी ने भाजपा को सत्ता से विदा करने की तैयारी माना। राजनीति में रोटी पलटने का सही अर्थ क्या है, यह कोई समझ पाता, इससे पहले शरद पवार ने एक और धमाका कर दिया। मंगलवार को अपनी आत्मकथा के विमोचन के मौके पर भाषण देते हुए अचानक उन्होंने एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात कह दी। अमूमन राजनेता किसी बड़े पद से स्वेच्छा से हटने से पहले माहौल बनाते हैं। राजनीति से संन्यास, पार्टी में मतभेद, उम्र और स्वास्थगत कारण आदि का हवाला देकर फिर तामझाम के साथ विदाई लेते हैं। लेकिन शरद पवार ने तो इस तरह अपने इस्तीफे का ऐलान किया, मानो कोई ये बता रहा हो कि अभी दोपहर है और इसके बाद शाम होगी। शरद पवार अच्छे से जानते हैं कि उनकी कही छोटी सी छोटी बात का भी राजनैतिक वजन होता है, फिर उन्होंने किस लिए इतने बड़े फैसले को इस तरह से व्यक्त किया, यह अब भी पहेली है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल ये है कि शरद पवार ने आखिर एनसीपी के अध्यक्ष पद को क्यों छोड़ा और ऐसे वक्त में यह फैसला क्यों लिया, जब महाराष्ट्र से लेकर राष्ट्र की राजनीति तक उथल-पुथल मची हुई है।
अभी कुछ दिनों पहले शरद पवार ने दिल्ली में राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात कर विपक्षी एकता की कोशिशों की नयी शुरुआत की थी। कांग्रेस और राहुल गांधी से शरद पवार कई बातों पर असहमत होने के बावजूद विपक्ष को एक साथ करने की कोशिशों में जुटे तो यह माना गया कि इस बार भाजपा की जड़ें हिलाने के लिए श्री पवार दृढ़प्रतिज्ञ हैं। लेकिन इस मुलाकात के चंद दिनों बाद कारोबारी गौतम अडानी से शरद पवार ने बंद कमरे में दो घंटे मुलाकात की। इस मुलाकात की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई है और इसकी उम्मीद कम ही है कि कभी इस मुलाकात का कोई खुलासा होगा। शरद पवार हमेशा से उद्योगपतियों के मित्र राजनेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं, ये और बात है कि अब मित्रता साबित करने की नयी मिसालें देश में आ गई हैं। गौतम अडानी के कारोबार पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर देश में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने सवाल उठाए। राहुल गांधी ने संसद में प्रधानमंत्री और गौतम अडानी के संबंधों पर बयान दिया। संसद सत्र इस मामले की जेपीसी जांच की मांग पर बाधित होता रहा और तब शरद पवार ने विपक्ष की राय से अलग हटकर जेपीसी जांच के औचित्य पर सवाल उठाए थे। शरद पवार के इस रवैये से भी हैरानी हुई थी। हालांकि विपक्षी एकता में इससे कोई दरार नहीं पड़ेगी, यह दावा भी किया गया था। अब तक कोई औपचारिक मोर्चा भाजपा के खिलाफ गठित तो नहीं हुआ है, इसलिए दरार पड़ी या नहीं, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन शरद पवार के इस्तीफे की घोषणा के बाद अब विपक्षी मोर्चा किस राह पर आगे बढ़ेगा, इस पर कयास शुरु हो गए हैं।
शरद पवार ने अभी केवल एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान किया है, सक्रिय राजनीति से नहीं। यानी ये हो सकता है कि अब एनसीपी के दायित्वों से आगे बढ़कर वे राष्ट्रीय राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभाने की तैयारी में हों या फिर किंग बनने की अपनी पुरानी महत्वाकांक्षा को पूरा करने की योजना बनाएं। अगले साल ही आम चुनाव है और महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव होंगे। दोनों ही जगह महाअघाड़ी के घटक दलों यानी एनसीपी, शिवसेना उद्धव गुट और कांग्रेस को जीत की तैयारी रखनी होगी, अन्यथा अस्तित्व दांव पर लग जाएगा। क्योंकि अब देश का माहौल 2019 से काफी बदल गया है। शरद पवार ने इस बदलते समय की नब्ज को टटोल लिया है और शायद इसलिए इस्तीफे का ऐलान किया है। भाजपा ने शिवसेना की कमजोरी कड़ी तोड़कर महाराष्ट्र की सत्ता हथिया ली, और एनसीपी की कमजोर कड़ी यानी अजित पवार से बगावत करवाने में उसने 2019 में आंशिक सफलता हासिल कर ही ली थी। तब शरद पवार ने बड़ी सूझबूझ से न केवल इस बगावत को खत्म करवाया, बल्कि भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था। लेकिन अब फिर से अजित पवार अलग राह पकड़ने के संकेत दे रहे थे। वे कोई ऐसा कदम उठाते, जिससे एनसीपी को नुकसान होता, उससे पहले ही शरद पवार ने इस्तीफे की बात छेड़ दी, जिससे माहौल ही पलट गया। उनके समर्थक भावुक होकर उनसे इस्तीफा वापस लेने का आग्रह करने लगे। अजित पवार के सामने शरद पवार ने बता दिया कि राज्य की राजनीति और पार्टी में उनका रसूख क्या है। बुधवार को एनसीपी की बैठक में शरद पवार ने अपने इस्तीफे पर कायम रहने की बात कही है, हालांकि एनसीपी नेता उनसे अब भी अपने फैसले को खारिज करने की अपील कर रहे हैं। लेकिन अब यह नजर आ रहा है कि शरद पवार पार्टी की कमान अपनी बेटी सुप्रिया सुले को सौंप सकते हैं ताकि वे दिल्ली की राजनीति पर फोकस कर सकें। अजित पवार अगर उनके फैसले को स्वीकार करेंगे तो पार्टी में एकता बनी रहेगी और अगर अलग होंगे, तो बागी होने का ठप्पा लग जाएगा और जनता अक्सर परिवार के खिलाफ जाने वाले नेताओं से बिदक जाती है। वैसे शरद पवार से पहले बाल ठाकरे ने इसी तरह शिवसेना की कमान अपने भतीजे राज ठाकरे को न सौंप कर बेटे उद्धव ठाकरे को सौंपी थी। मुलायम सिंह यादव ने भी भाई शिवपाल सिंह यादव की जगह बेटे अखिलेश यादव के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी तैयार की थी। भारतीय राजनीति में यह सब परिवारवाद के उदाहरण हैं, लेकिन उंगली उठाने की बारी आए तो सारी उंगलियां गांधी परिवार पर ही उठती हैं। कांग्रेस में तो चुनाव के जरिए अध्यक्ष निर्वाचित हुए, जबकि बाकी दलों में कब कौन अध्यक्ष बन जाए, पता नहीं चलता। फिर भी कांग्रेस के लोकतांत्रिक मिज़ाज पर सवाल उठाए जाते हैं।
बहरहाल, शरद पवार के अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे से एनसीपी महाराष्ट्र और देश की राजनीति पर क्या असर होगा, यह आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। वैसे सुप्रिया सुले ने 15 दिन पहले दो राजनीतिक धमाकों की बता कही थी, एक दिल्ली और एक मुंबई में। मुंबई में तो धमाका हो गया अब क्या दिल्ली की बारी है।

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