राहुल गांधी के राजनैतिक विचारों से कोई सहमत या असहमत हो सकता है। एक राजनेता के तौर पर उन्हें पसंद या नापसंद किया जा सकता है। लेकिन उनकी राजनीति के तौर-तरीकों पर हैरान हुए बिना नहीं रहा जाता। राहुल गांधी अचानक कोई ऐसा काम कर जाते हैं, जिसे देखकर सवाल उठता है कि आज के दौर में क्या इस तरह से भी राजनीति हो सकती है। राहुल गांधी का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है, जिसमें वे ट्रक पर चढ़ते, ट्रक की सवारी करते दिख रहे हैं और उसके बाद ट्रक वालों से बातचीत करते नजर आ रहे हैं।
दरअसल राहुल गांधी अपने परिवार के पास शिमला जा रहे थे। लेकिन इसके लिए सीधे कार से न जाकर, उन्होंने अंबाला से चंडीगढ़ तक का सफर ट्रक से तय किया। अभी कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी ने लोकल बस में सवारी की थी, जिसमें आम महिलाओं से बातचीत कर उनकी वास्तविक स्थिति के बारे में जाना था। कर्नाटक में उन्होंने डिलीवरी करने वाले शख्स के साथ स्कूटी की सवारी की थी।
चुनाव से पहले श्री गांधी जब दिल्ली में थे, तो वे एक दिन मुखर्जी नगर इलाके में पहुंच गए, जहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी बड़ी संख्या में रहते हैं। राहुल गांधी ने उन लोगों के बीच बैठकर उनसे बातें कीं। इसके कुछ दिन बाद वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हॉस्टल पहुंच गए, और वहां छात्रों के साथ दोपहर का भोजन करते हुए उनकी समस्याओं और भावी तैयारियों के बारे में जानकारी ली।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस पर राहुल गांधी को नोटिस भेजकर अपनी आपत्ति भी जतलाई और इसे अनाधिकार प्रवेश करार दिया। कर्नाटक की बस यात्रा में भी कुछ लोगों ने इस बात पर ही आपत्ति जतलाई थी कि राहुल गांधी महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर क्यों बैठे। अच्छा है कि महिलाओं के हक के बारे में इतना सोचने वाले लोग हैं, अन्यथा कभी बस पर, कभी सड़क पर, कभी घर या दफ्तर पर रोजाना महिलाओं के सम्मान और अधिकारों पर चोट होती है और कहीं कोई उफ् भी नहीं निकलती। दिल्ली के जंतर-मंतर पर ही महिला पहलवान न्याय के लिए महीने भर से बैठी हैं, मगर उनके समर्थन में ऐसी तत्परता नजर नहीं आई।
बहरहाल, राहुल गांधी ने इस बार ट्रक की सवारी कर फिर से नए सियासी रास्ते खोल दिए हैं। देश के लोग राजनेताओं को लालबत्ती वाली गाड़ियों, प्राइवेट विमानों, हेलीकॉप्टरों में देखने के आदी हो चुके हैं। कोई राजनेता वीआईपी संस्कृति दूर करने का ऐलान करता भी है, तो उसमें पूरा तामझाम नजर आ जाता है। प्रधानमंत्री के रोड शो ही याद कर लें, जिसमें करोड़ों रुपए फूंक दिए जाते हैं, सिर्फ इसलिए कि एक व्यक्ति की जय-जयकार होती रही, उस पर फूलों की बौछार होती रहे। कई बार भ्रम हो जाता है कि हम लोकतंत्र में जी रहे हैं या राजशाही में। अभी श्री मोदी विदेश दौरे पर हैं, तो वहां भी उनके कार्यक्रमों को भव्य बनाने के लिए बेतहाशा खर्च हो रहा है। अब वो खर्च चाहे जिसकी जेब से हो, उसकी वसूली का इंतजाम सत्ता के जरिए ही कराया जाता है।
मोदीजी पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं, जो विदेश यात्राओं पर जाते हैं। उनके पहले भी तमाम प्रधानमंत्री कूटनीतिक यात्राएं करते थे। पं.नेहरू की लोकप्रियता का आलम तो ये था कि वे जिस देश में जाते, वहां लोग उन्हें देखने और उनके भाषण को सुनने के लिए उमड़ पड़ते। हिरोशिमा में नेहरूजी की सभा में कितनी भीड़ एकत्र हुई, या जॉन एफ केनेडी किस तरह प्रोटोकॉल तोड़कर विमान के दरवाजे पर नेहरूजी के स्वागत के लिए आ गए, ऐसी तमाम तस्वीरें इतिहास के पन्नों पर अंकित हैं। लेकिन श्री मोदी की हर विदेश यात्रा को इसी तरह पेश किया जाता है, मानो उनसे पहले किसी का कोई स्वागत हुआ ही नहीं। राजनैतिक प्रचार के इस दौर में राहुल गांधी अब जनता के बीच सीधे पहुंचकर एक नयी और लंबी लकीर खींच रहे हैं।
भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने साढ़े तीन हजार किमी का सफर पैदल तय किया और इस दौरान वे लगातार देश के आम लोगों के बीच ही रहे। इस यात्रा से राहुल गांधी को एक नेता से पहले एक सामान्य व्यक्ति के तौर पर लोगों ने पहचाना, जिसमें अदम्य इच्छाशक्ति और मानवीय गुण है। हालांकि राहुल गांधी पहले भी इसी तरह लोगों के बीच जाया करते थे। भट्टा परसौल से लेकर हाथरस तक, कठुआ कांड को लेकर दिल्ली में मार्च निकालने से लेकर लॉकडाउन के दौरान सड़क पर मजदूरों से बात करने तक वे कई मौकों पर जनता के बीच आए। लेकिन तब भाजपा के प्रचार तंत्र की बदौलत राहुल गांधी की छवि शहजादा और नौसिखिए राजनेता की बनी हुई थी, इसलिए जननेता के तौर पर निभाई जाने वाले उनकी ईमानदारी जिम्मेदारियों को भी सस्ते मजाक का सबब बना दिया गया। मगर राहुल गांधी इन सबसे अविचलित रहकर अपने काम में लगे रहे। फिर भारत जोड़ो यात्रा में जब वे इस प्रचार तंत्र की उम्मीदों के विपरीत डटे रहे और हर तरह की मुसीबत का सामना करते हुए यात्रा पूरी कर ली, तो फिर उनकी छवि बिगाड़ना आसान नहीं रहा, क्योंकि अब जनता ने असली राहुल गांधी को देख लिया है। अब श्री गांधी कुछ भी करते हैं तो उस पर जनता का ध्यान जाता है और मीडिया अगर उसे जानबूझकर दबाने की कोशिश करे, तो वह भी नजर आ ही जाता है।
भारतीय समाज में ट्रकों का विशिष्ट स्थान है। ट्रकों के पीछे लिखी लाइनें हमेशा से अनोखे अंदाज में जीवन के फलसफे सामने लाती रही हैं। इन्हें लिखने वाले गुमनाम लेखक जीवन की वास्तविकताओं को गहराई से समझते हैं और बड़ी सहजता से उन्हें बयां कर देते हैं। राहुल गांधी भी इसी शैली में राजनीति कर रहे हैं। वे विशिष्टता के भाव को पीछे छोड़ते हुए सहज तरीके से आम लोगों से घुल मिल रहे हैं, ताकि राजनीति में फिर आम जनता को केंद्र में लाया जा सके। उसे ध्यान में रखकर नीतियां और कानून बनें। नाव, बस, ट्रक, साइकिल, स्कूटी आम लोगों के ये वाहन उनकी जिंदगी की धुरी भी हैं। अब राहुल गांधी की इन वाहनों की सवारी से आम भारतीयों से उनका और करीब का रिश्ता बन रहा है। इसका चुनावी राजनीति पर क्या असर होगा, ये तो बाद की बात है, फिलहाल ये देखना सुखद है कि इस दौर का कोई नेता गांधीजी की तरह राजनीति को आम लोगों से जोड़ रहा है।