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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

प्रवर्तन निदेशालय ने (ईडी) तमिलनाडु के बिजली मंत्री सेंथिल बालाजी को मंगलवार की देर रात कथित मनी लॉंड्रिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया है। उनके दफ्तर और भाई के घर पर भी छापे पड़े। काफी देर तक बालाजी से ईडी ने पूछताछ की, जिसके बाद उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की। चेन्नई के एक अस्पताल में उनका इलाज हो रहा है। संयोग ही है कि तमिलनाडु में डीएमके सरकार में मंत्री की यह गिरफ्तारी केन्द्रीय मंत्री अमित शाह के तमिलनाडु दौरे के दो दिन बाद ही हुई है। अमित शाह का तमिलनाडु दौरा रविवार को हुआ था और इस दौरान मुख्यमंत्री स्टालिन ने उन पर तीखे वार किए थे। दरअसल अमित शाह ने अपनी सभा में गिनाया था कि 9 सालों में मोदी सरकार ने तमिलनाडु के लिए क्या-क्या किया है। किसान सम्मान निधि, 84 लाख पेयजल कनेक्शन, आयुष योजना के तहत 2 करोड़ लोगों का इलाज, गरीबों के लिए 62.5 लाख शौचालय और राज्य के लिए दो वंदे भारत ट्रेनें चलाने का एहसान अमित शाह ने तमिलनाडु को जताया तो पलटकर मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन ने कहा कि यह सभी राज्यों के लिए केंद्र सरकार का एक संवैधानिक कर्तव्य है। मेरा सवाल ये है कि आपने तमिलनाडु के लिए अलग से क्या किया।

मोदी सरकार के 9 वर्ष की उपलब्धियों का जश्न मनाने अमित शाह तमिलनाडु पहुंचे थे, लेकिन वहां उन्हें सियासी वार सहने पड़े। भाजपा इस दक्षिण प्रदेश में चाह कर भी अपना जनाधार नहीं बढ़ा पा रही है। आने वाले आम चुनावों से पहले तमिलनाडु में भाजपा मजबूत हो, तो उसे विपक्षियों का मुकाबला करने में आसानी होगी, यह सोच भाजपा की है। मगर अमित शाह के दौरे के बाद डीएमके के मंत्री की गिरफ्तारी से सियासत गर्म हो गई है। डीएमके के साथ तमाम विपक्षी दल एक बार फिर भाजपा पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहे हैं।

गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय(ईडी), केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण(एनआईए), खुफिया विभाग और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ऐसी तमाम जांच एजेंसियों की स्थापना आजादी के बाद अलग-अलग वर्षों में की गई। बदलती वैश्विक परिस्थितियों के अनुरूप जांच और खुफिया तंत्र के दायरे को विस्तार देने की जिस तरह जरूरत पड़ती गई, उस अनुरूप केंद्र पर काबिज सरकारों ने फैसले लिए और इन एजेंसियों को अधिक सक्षम और समर्थ बनाने की कोशिश की गई। देश के होनहार, बुद्धिमान अफसर इन एजेंसियों के प्रमुख पदों पर नियुक्त किए जाते हैं, जो अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और कौशल से जटिल मामलों को पहचानें, उन्हें सुलझाएं और देश के आम जनता के लिए सुरक्षित माहौल बनाएं। हमारी फिल्मों में ऐसी एजेंसियों में काम करने वाले देशभक्त, जांबाजों की कहानियां कई बार दिखाई जा चुकी हैं, जो निस्वार्थ भाव से देश और जनता की सेवा करते हैं। लेकिन अब इनमें से कई एजेंसियों की कार्यशैली, निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। सीबीआई को लेकर 2013 में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि ‘सीबीआई पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है जो अपने मालिक की बोली बोलता है। यह ऐसी अनैतिक कहानी है जिसमें एक तोते के कई मालिक हैं।’ 10 साल बाद इस टिप्पणी में सीबीआई के साथ ईडी को भी जोड़ा जा सकता है। क्योंकि सीबीआई और ईडी की दस्तक जिन दरवाजों पर पड़ रही है, उनमें से अधिकतर सरकार के विरोध करने वालों लोगों के हैं।

सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी पर कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना उद्धव गुट, टीएमसी, बीआरएस, आम आदमी पार्टी ऐसे तमाम दलों ने फिर से भाजपा सरकार पर विपक्ष को परेशान करने के लिए जांच एजेंसियों के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया है। यह आरोप कितना सच है, इस बारे में तो भाजपा ही जवाब दे सकती है। लेकिन क्या यह संयोग है कि कार्रवाई से एक दिन पहले ही प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को ईडी ने शिक्षक भर्ती घोटाले में पूछताछ के लिए तलब किया था। इससे पहले भी टीएमसी के अन्य नेताओं से जांच एजेंसी पूछताछ कर चुकी है। साथ ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्षों सोनिया गांधी और राहुल गांधी से कई घंटों की पूछताछ नेशनल हेराल्ड मामले में हुई। राहुल गांधी को सामान्य पासपोर्ट हासिल करने में भी मुश्किलें हुईं, क्योंकि जांच का हवाला देते हुए उनके खिलाफ अदालत में शिकायत की गई। इसके अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आप नेता मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, मीसा भारती, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी, उद्धव खेमे वाली शिवसेना के नेता संजय राउत जैसे नेता केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर रहे हैं। कई लोगों को जेल भेजा गया, कई पर गिरफ्तारी की तलवार लटकती रही। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सरकार पर कुछ गंभीर आरोप लगाए, तो सीबीआई उनसे पूछताछ के लिए भी पहुंच गई। यह अलग ही दौर चल रहा है, जब आरोप लगाने वालों को कटघरे में खड़ा किया जाता है और जिन पर इल्जाम होता है, वे तय करते हैं कि इंसाफ किस तरह से होना है।

बता दें कि पिछले साल सितंबर में आई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि यूपीए सरकार के 10 साल के शासन में यानी 2004 से 2014 तक अलग-अलग राजनीतिक दलों के 72 नेताओं पर सीबीआई का शिकंजा कसा। इसमें से 43 नेता विपक्षी दलों के थे। यानी 60 प्रतिशत विपक्ष के नेताओं पर जांच एजेंसी ने कार्रवाई की और उस दौरान उसे पिंजड़े का तोता कहा गया। अब भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के 2014 से पिछले साल सितंबर तक यानी 8 साल के शासन में ही 124 नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने कार्रवाई की थी। इसमें से 118 नेता विपक्षी राजनीतिक दलों के थे और यह आंकड़ा 95 प्रतिशत है, तो क्या अब जांच एजेंसियों को सरकार की कठपुतली कहा जाए।

इस साल मार्च में कांग्रेस के नेतृत्व में चौदह विपक्षी दल अपने नेताओं के खिलाफ सीबीआई और ईडी के कथित मनमाने इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे और आरोप लगाया था कि सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा दर्ज किए गए 95 प्रतिशत मामले विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ थे। उन्होंने यह भी कहा था कि भाजपा में शामिल होने के बाद नेताओं के खिलाफ मामलों को अक्सर हटा दिया जाता है या ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। हालांकि भाजपा इन आरोपों का खंडन करते हुए कहती रही है कि एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम करती हैं। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया था। लेकिन अब जांच एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल का मसला फिर खड़ा हो गया है। वो भी तब जब विपक्षी दल एकजुट होने की तैयारी में हैं। सेंथिल बालाजी पर कार्रवाई से इस तैयारी को और गति मिली है।

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