Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सर्वमित्रा सुरजन॥

जगदीशपुर और सलोन दोनों को अलग-अलग बताना ही उन्हें जनता का अपमान लग गया। भाजपा के शब्दकोष में अपमान शब्द के मायने क्या हैं, इस पर भी शोध हो ही जाना चाहिए। राहुल गांधी मोदी सरनेम को जोड़ते हुए कोई टिप्पणी कर दें, तो उसे सारे मोदी सरनेम वालों का और ओबीसी का अपमान बता दिया जाता है। इस मानहानि में उन्हें सजा होती है, उनकी संसद सदस्यता चली जाती है।

मगध कविता में श्रीकांत वर्मा लिखते हैं-

कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए

मगध है, तो शांति है
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए

मगध में न रही
तो कहां रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
क हीं नहीं रूकता हस्तक्षेप-

वैसे तो मगध निवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है?

ये पंक्तियां आज की कड़वी सच्चाई बन चुकी हैं। न्यू इंडिया हस्तक्षेप से कतराता है, चिढ़ता है। इतना नाराज होता है कि किसी की नौकरी लेने की सरेआम धमकी देता है और फिर उसे सच करके भी दिखाता है। अमेठी में पिछले दिनों यही तो हुआ है। महिला एवं बाल विकास मंत्री और अमेठी की सांसद स्मृति ईरानी से दो स्थानीय पत्रकारों ने बाइट लेनी चाही। यह तो हस्तक्षेप भी नहीं था। टोकना नहीं था, चीखना नहीं था। न्यू इंडिया के शासकों को मुर्दा शांति पसंद है, ये बात अब बहुत से लोग समझ चुके हैं। इसलिए अमेठी के दोनों पत्रकार न चीख कर ये सवाल पूछ रहे थे कि महिला पहलवानों के मुद्दे पर महिला एवं बाल विकास मंत्री की क्या राय है। न वे टोक रहे थे कि सिलेंडर के दाम महंगे होने पर अब आप सड़कों पर क्यों नहीं उतरतीं। वे दो पत्रकार तो आग्रह कर रहे थे कि दीदी बाइट दे दीजिए।

तो क्या न्यू इंडिया में अब शासकों से आग्रह करने का हक भी नहीं है। अमेठी के पत्रकार विपिन यादव ने न्यूज लॉन्ड्री से चर्चा में बताया कि ‘स्मृति ईरानी सलोन विधानसभा से जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र के कृष्णा नगर चौराहे पर ‘चाय पर चर्चा’ कार्यक्रम में हिस्सा लेने आई थीं। इस कार्यक्रम के बाद जब वह जाने लगीं तो मेरे जैसे कई पत्रकारों ने उनकी बाइट लेनी चाही। जिस पर वह भड़क गईं।’ स्मृति ईऱानी ने पत्रकारों को मना करते हुए कहा, ‘मैंने सलोन में बाइट दी है तो अब यहां क्या बाइट दूं?’ इस पर पत्रकारों ने कहा,’जब आपने सलोन में बाइट दी है तो दीदी ये जगदीशपुर विधानसभा है, आप यहां भी दे दीजिए।’ इतने में वह भड़क गईं कि आपने सलोन को कैसे अलग कर दिया, आप जनता का अपमान कर रहे हैं।

पता नहीं ये अलगाववाद का भय भाजपा में इतने गहरे कैसे पैठा हुआ है। सोनिया गांधी ने कर्नाटक के लोगों के आत्मसम्मान और अस्मिता की बात की थी, तो भाजपा ने इसे देश की संप्रभुता के साथ जोड़ते हुए कांग्रेस पर अलगाववाद का इल्जाम लगा दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि कांग्रेस कर्नाटक को भारत से अलग करने की वकालत कर रही है। टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसे शब्द भाजपा शासन में देश के सियासी शब्दकोष में शामिल कर दिए गए हैं। अमेठी में स्मृति ईरानी ने पत्रकारों को टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा नहीं बताया, यही गनीमत रही। जगदीशपुर और सलोन दोनों को अलग-अलग बताना ही उन्हें जनता का अपमान लग गया। भाजपा के शब्दकोष में अपमान शब्द के मायने क्या हैं, इस पर भी शोध हो ही जाना चाहिए। राहुल गांधी मोदी सरनेम को जोड़ते हुए कोई टिप्पणी कर दें, तो उसे सारे मोदी सरनेम वालों का और ओबीसी का अपमान बता दिया जाता है। इस मानहानि में उन्हें सजा होती है, उनकी संसद सदस्यता चली जाती है।

लेकिन भाजपा सांसद पर कुछ महिला खिलाड़ी सीधे-सीधे यौन शोषण का आरोप लगाती हैं, और पुलिस आरोपी को गिरफ्त में लेने की जगह शिकायतकर्ताओं से सबूत मांगती है, तब भाजपा के किसी नेता, किसी समर्थक को इसमें महिलाओं का अपमान, मानहानि नजर नहीं आती। बल्कि सांसद महोदय के समर्थन में कुछ महिलाएं कहती हैं कि हमारी शक्ल क्या बुरी है, हमें तो सांसद महोदय ने कभी नहीं बुलाया। एक पुरुष समर्थक यौन शोषण के आरोप लगाने वाली महिलाओं की शक्ल-सूरत को साधारण बताते हुए कहता है कि सांसद महोदय इनका शोषण क्यों करेंगे। यौन शोषण का मुद्दा शारीरिक सौंदर्य पर घसीट लाया गया और भाजपा में किसी को इस पर कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा। लेकिन दीदी से एक बाइट क्या मांग ली, क्षेत्र की जनता का अपमान हो गया। ऐसे मामले देखकर, खुद को हथियार की तरह इस्तेमाल होता देख कर क्या जनता को अपना अपमान महसूस नहीं होता, ये विचारणीय है। क्यों जनता को इस बात पर कष्ट नहीं होता कि उसके कंधे पर रखकर नेता बंदूक चलाते हैं।

स्मृति ईरानी ने केवल उन पत्रकारों को जवाब देने से इंकार ही नहीं किया, बल्कि जिस अखबार के कथित प्रतिनिधि के तौर पर वे वहां पहुंचे थे, उसके मालिक का नाम लेकर धमकाया भी कि मैं बात करूंगी। पूंजी के जोर से संचालित मीडिया के इस दौर में कई मीडिया उद्योगों के मालिकान इस बात पर गौरवान्वित महसूस करेंगे कि केन्द्रीय मंत्री ने सीधे उनसे बात करने कहा है, वो भी सबके सामने। यानी सब पर यह रौब तो जम ही गया कि मालिकान की पहुंच सीधे सत्ता तक है। आज के वक्तमें यही तो चाहिए। इसलिए बड़ी पूंजी से संचालित अखबारों और चैनलों के सभा-सम्मेलनों में केन्द्रीय मंत्रियों की फौज जुटाई जाती है। उनसे प्रायोजित सवाल-जवाब कर पत्रकारिता का धर्म निभाया जाता है। मौका मिले तो नौका पर सैर, मंच पर उछल-कूद ये सब करने से परहेज नहीं किया जाता। पत्रकार और मालिक सत्ता के ज्यादा दुलारे हुए तो इन सम्मेलनों में प्रधानमंत्री भी पहुंचते हैं और मालिक के भाषण में एक वाक्य में दस बार प्रधानमंत्री जी सुनकर गदगद होते हैं। न्यू इंडिया के शासकों के लिए ये समय गदगद होने का ही है।

9 साल हो गए देश पर राज करते और जिस सोच के साथ वे सत्ता पर काबिज हुए थे, उसे सफलता के साथ लागू कर चुके हैं। न्यूज चैनल अब खबर नहीं नफरत परोसते हैं। अब टीवी स्टूडियो में पहले की तरह पढ़े-लिखे, सभ्य, सुशील बुद्धिजीवियों को नहीं बुलाया जाता, जिनके ज्ञान से दर्शकों को कुछ लाभ होता। अब टीवी की बहसों में गालियां देने वाले और मौका मिले तो मार-पीट करने में सक्षम प्रतिभागियों को बुलाया जाता है। न्यू इंडिया में पुरानी सभी बातों को हटाया जा रहा है, तो फिर शालीनता, धीरज, संवेदनशीलता, परस्पर सम्मान जैसे गुणों का बोझ क्यों ढोया जाए। जिसकी बात से आपको हस्तक्षेप महसूस हो, उसे चीख-चिल्लाकर किनारे लगा दीजिए, बिल्कुल मध्ययुगीन सभ्यता के अनुरूप।

खैर बात हो रही थी स्मृति ईरानी के मालिक को फोन करने की, जो उन्होंने किया ही होगा, क्योंकि उसके बाद अखबार का स्पष्टीकरण भी आ गया कि विपिन यादव और राशिद हुसैन उनके संवाददाता नहीं हैं। इस पूरे घटनाक्रम में एक बात गौर करने लायक है कि सत्ता के कोप का शिकार विपिन और राशिद दोनों को बनना पड़ा। इससे बड़ा सबक हिंदुस्तान को और क्या सीखने मिलेगा। दो कौमों को अलग-अलग बताकर चाहे जितनी राजनैतिक रोटियां सेंकी जाएं, इन रोटियों को सेंकने वाले चूल्हे में हिंदू भी झोंके जाएंगे, मुसलमान भी। इसलिए औरंगजेब और शिवाजी की जंग को आज का विषय न बनाकर उस इतिहास से सीख लेना ही अच्छा होगा। मुर्दों को सवाल करने का मौका न देकर, खुद के जिंदा होने का सबूत देना चाहिए।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *