-सुनील कुमार॥
अमरीका प्रवास पर गए भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने वहां के राष्ट्रपति की डेमोक्रेटिक पार्टी के 75 नेताओं की लिखी एक चिट्ठी भी थी जिसमें उन्होंने अपने राष्ट्रपति जो बाइडन से यह अपील की थी कि मोदी के साथ बातचीत में उन्हें भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर जुल्म की बात भी उठानी चाहिए। यह बात और कई लोगों ने भी उठाई थी, और भारत में अल्पसंख्यकों के हिमायती एक अमरीकी तबके ने मोदी के स्वागत में वहां की सडक़ों पर ऐसी इलेक्ट्रॉनिक वैन भी दौड़ाई थीं जिनमें तीनों तरफ बड़े-बड़े पर्दों पर भारत के कई धार्मिक अल्पसंख्यक सवाल लिखे हुए थे। इनमें मोदी के लिए शर्मिंदगी पैदा करने वाले कुछ नारे भी थे, और यह अमरीकी लोकतंत्र में एक आम व्यवस्था है जिसे भारत की तरह रोका नहीं जा सकता। लेकिन यह एक बड़ा संयोग था कि एक पिछले डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इसी मौके पर मोदी के लिए भारत में अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर कुछ बातें कहीं। यह एक अधिक बड़ा संयोग इसलिए था कि ओबामा से अमरीका के एक प्रमुख टीवी समाचार चैनल सीएनएन पर उसकी एक सबसे सीनियर रिपोर्टर-एंकर इंटरव्यू कर रही थी, और उसने ओबामा से पूछा- दुनिया में लोकतंत्र खतरे में हैं, इसे तानाशाहों और तानाशाही से चुनौती मिल रही है, बाइडन इस वक्त अमरीका में मोदी का स्वागत कर रहे हैं जिन्हें ऑटोक्रेटिक या फिर अनुदान डेमोक्रेट माना जाता है, किसी राष्ट्रपति को ऐसे नेताओं से किस तरह पेश आना चाहिए? इस सवाल के जवाब में बराक ओबामा ने कहा कि अगर वह मोदी से बात कर रहे होते तो आज हिन्दू बहुसंख्यक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की हिफाजत चर्चा के लायक है, मेरा तर्क होता कि अगर आप अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं करते हैं तो मुमकिन है कि भविष्य में भारत में विभाजन बढ़े, ये भारत के हितों के विपरीत होगा।
उल्लेखनीय है कि 2015 में ओबामा ने कहा था कि भारत तब तक सफलता की सीढिय़ां चढ़ता रहेगा जब तक वह एक देश के रूप में एकजुट रहे, और धार्मिकता या किसी अन्य आधार पर अलग-थलग न हो। ओबामा ने दिल्ली में एक भाषण में कहा था कि एक अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की कामयाबी उसकी एकता पर निर्भर करती है, और दुनिया में हम जिस शांति की उम्मीद करते हैं, वह लोगों के दिलों से शुरू होती है, और हिन्दुस्तान से अधिक महत्वपूर्ण यह और कहीं नहीं है। भारत तब तक कामयाब रहेगा जब तक यह धार्मिक आस्था के आधार पर विभाजित न बंटे। यह बात भी याद रखी जानी चाहिए कि ओबामा के राष्ट्रपति रहते मोदी तीन बार अमरीका गए थे, और एक बार ओबामा को भारतीय गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनाया गया था। मोदी परंपरागत कूटनीति के तौर-तरीकों से अलग हटकर ओबामा को अपना दोस्त बराक बताते रहे हैं, इसलिए आज उस बराक की कही हुई बात चर्चा के लायक है।
अमरीका के एक और सबसे प्रमुख डेमोक्रेट नेता बर्नी सेंडर्स अमरीकी राष्ट्रपति की दौड़ में एक बार शामिल हो चुके हैं, उन्हें अमरीका में बड़ी गंभीरता से सुना जाता है, उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि मोदी के साथ बैठक के दौरान बाइडन को धार्मिक अल्पसंख्यकों के बारे में बात करनी चाहिए। उन्होंने लिखा कि मोदी सरकार ने प्रेस और सिविल सोसाइटी पर कड़ा प्रहार किया है, राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया है, और आक्रामक हिन्दू राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया है जिसकी वजह से भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बहुत कम जगह बची है। उन्होंने लिखा कि राष्ट्रपति को मोदी के साथ बैठक में ये तथ्य रखने चाहिए।
डेमोक्रेटिक पार्टी के 75 नेताओं ने भारत में मोदी के कार्यकाल में हुए मानवाधिकार उल्लंघनों को विस्तार से बताते हुए राष्ट्रपति बाइडन को लिखा है- हम चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच दोस्ती सिर्फ साझा हितों पर न टिकी हो, बल्कि साझा मूल्यों पर भी टिकी हो। इनमें से कुछ नेताओं ने अमरीकी संसद में मोदी के भाषण के बहिष्कार की घोषणा भी की है। कुछ नेताओं ने लिखा है कि मोदी सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों का दमन किया है, और आक्रामक हिन्दू राष्ट्रवादी समूहों का मनोबल बढ़ाया है। एक नेता ने लिखा कि मोदी सरकार ने पत्रकारों और मानवाधिकार के बात करने वालों को बिना किसी परवाह के निशाना बनाया है, और वे मोदी का भाषण सुनने नहीं जाएंगे। दूसरी तरफ पिछले अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी की अगली राष्ट्रपति-उम्मीदवारी की दावेदार निकी हेली ने मोदी के प्रवास का स्वागत किया।
मोदी से अमरीकी राष्ट्रपति भवन में हुई प्रेस कांफ्रेंस में भारत में मुस्लिमों के हक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में एक प्रतिष्ठित अखबार की पत्रकार ने सवाल किया। इस पर मोदी ने कहा- लोकतंत्र हमारी स्पिरिट है, लोकतंत्र हमारी रगों में है, लोकतंत्र को हमारे पूर्वजों ने शब्दों में ढाला है, संविधान के रूप में। हमारी सरकार लोकतंत्र के मूलभूत मूल्यों को आधार बनाकर बने हुए संविधान के आधार पर चलती है। यहां जाति, पंथ, धर्म, या लैंगिक स्तर पर किसी भेदभाव की जगह नहीं होती। उन्होंने कहा जब हम डेमोक्रेसी को लेकर जीते हैं, तो भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत में सरकार की ओर से मिलने वाले फायदे सबको हासिल हैं, यहां लोकतांत्रिक मूल्यों में कोई भेदभाव नहीं है, न धर्म के आधार पर, न जाति के आधार पर। अमरीकी पत्रकार के इस सवाल को भारत में बहुत से लोग, खासकर पत्रकार ट्विटर पर पोस्ट कर रहे हैं कि सवाल ऐसे पूछे जाते हैं।
कुल मिलाकर इस बात को समझने की जरूरत है कि भारत में आज अल्पसंख्यकों के साथ जो सुलूक किया जा रहा है, वह लोगों की नजरों में हैं, और दुनिया भर में लोकतांत्रिक लोग इसे इतिहास में अपने बयानों से अच्छी तरह दर्ज कर रहे हैं। यह एक अलग बात है कि अमरीकी राष्ट्रपति के सामने अपने देश के कारोबार की मजबूरियां हैं, और अमरीकी सामान हिन्दुस्तान को बेचने के चक्कर में बाइडन को एक लोकतांत्रिक राष्ट्रपति के बजाय एक काबिल सेल्समैन की तरह बर्ताव अधिक करना पड़ रहा है। लेकिन उससे फर्क नहीं पड़ता, जब उनकी पार्टी के 75 सांसद और बड़े नेता इस मुद्दे को सार्वजनिक रूप से उठा रहे हैं, तो वह अमरीकी लोकतंत्र में तो ठीक तरह से दर्ज हो ही रहा है। हम पहले भी इस बात को लिख चुके हैं कि आज की दुनिया में कोई भी देश अपने आपको बाहरी टिप्पणियों से परे का एक फौलादी कैप्सूल साबित नहीं कर सकता, आज पूरी दुनिया एक गांव है, और इसके लोगों की एक-दूसरे के मामलों में दखल रहेगी ही। इसलिए भारत अपने ऐसे मामलों को घरेलू मुद्दा और निजी मामला नहीं बता सकता जिसे पूरी दुनिया एक लोकतांत्रिक दिलचस्पी और जिम्मेदारी का मामला मानती है। आज विश्व की जिम्मेदारी देशों की सरहद के भी आरपार है, और कोई भी देश अपने ऐसे मामलों को लेकर बाहरी प्रतिक्रिया को अपने घरेलू मामलों में दखल नहीं बता सकता।