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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सर्वमित्रा सुरजन॥

भाजपा को शायद इस बात से भी तकलीफ हुई होगी कि ओबामा ने ठीक नेहरूजी जैसे विचार व्यक्त किए। 1930 में ही नेहरूजी ने कह दिया था कि अगर अल्पसंख्यकों को उनकी पहचान के आधार पर सताया जाता रहा तो देश खतरे में पड़ जाएगा। दुनिया के बहुत से नेता बार-बार नेहरूजी को याद करते हैं। इससे भाजपा के लोगों को कितनी तकलीफ होती है, यह कोई उन्हीं से पूछे।

पता नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाइडेन प्रशासन के लोगों से यह कहा या नहीं कि अपने राष्ट्रपति से कहना मैं सही-सलामत दिल्ली लौट आया। कितने अरमानों से उन्होंने अमेरिका की यात्रा इस बार की थी। 2002 के बाद जिस अमेरिका ने मोदीजी को वीज़ा देने से इंकार कर दिया था, अब उसी अमेरिका ने राजकीय अतिथि बनाकर बुलाया तो मोदीजी और उनके भक्तों का खुश होना स्वाभाविक था। व्हाइट हाउस के सामने खड़े होकर फोटो खिंचाने से लेकर व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति का मेहमान बनकर रात्रिभोज पर पधारने तक का सफर मोदीजी ने राजनीति के जिन रास्तों पर चलकर तय किया, क्या वो आसान रास्ता था। कितने लोग रास्ते का कांटा बने, कितनों ने सच्चाई का आईना दिखाया, उन सबका मुकाबला करना आसान नहीं था। किसी को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया, किसी के आईने पर परदा डाल दिया, तमाम तरह के उपाय आजमाकर व्हाइट हाउस का आतिथ्य स्वीकारने मोदीजी गए थे। राजकीय आन बान शान में कोई कसर न रह जाए, तो इस बार अमेरिकी संसद में मोदी-मोदी के नारे मोदीप्रेमियों ने लगवा दिए। सब कुछ नियंत्रण में कर लिया गया, मगर स्वतंत्र मीडिया ने यहां बाजी मार ली। टू मच डेमोक्रेसी के नुकसान में अब मोदीजी के सिपहसालारों को मीडिया के सवाल पूछने की आजादी को भी शामिल कर लेना चाहिए। क्योंकि एक सवाल ने ही मोदीजी की पूरी अमेरिका यात्रा को खतरे में डाल दिया।

भाजपा सरकार को बाइडेन सरकार से कहना चाहिए कि एक सवाल की कीमत तुम क्या जानो डेमोक्रेटिक बाबू। डीएनए में लोकतंत्र होने का ये मतलब तो नहीं कि हर मौके पर उसका प्रदर्शन किया जाए। जब सवाल नहीं पसंद तो नहीं पसंद। 9 सालों में एक बार भी भारत में मीडिया को मोदीजी की इजाज़त नहीं मिली कि उनके अनुमोदन के बिना सवाल पूछा जाए और वहां वॉल स्ट्रीट जरनल ने अपनी पत्रकार सबरीना सिद्दीकी से ये हिमाकत करवा ली। प्रेस कांफ्रेंस, मोदीजी से सवाल, सवाल पूछने वाली मुसलमान और वो भी महिला, सवाल भी अल्पसंख्यकों और लोकतंत्र पर। ये सारी क्रोनोलॉजी भाजपा को याद कर लेना चाहिए और अमेरिका से अगली द्विपक्षीय वार्ता में इसका पूरा हिसाब बराबर कर लेना चाहिए। खैर, मोदीजी उस सवाल से तो बच कर आ गए। लोकतंत्र पर उन्होंने जो घुट्टी मुस्लिम महिला पत्रकार को पिलाई, उसे अब देश के विद्यार्थी याद कर लें। वंदे भारत और मेट्रो ट्रेन के अगले उद्घाटन पर कहीं मोदीजी के साथ विद्यार्थियों को यात्रा का मौका मिले तो वे उस जवाब को भाषण की तरह रट कर सुना सकते हैं। ट्रेन की शोभा, मोदीजी की प्रतिष्ठा और बढ़ जाएगी।

बहरहाल, सबरीना सिद्दीकी के सवाल के बदले जो जवाब मोदीजी ने दिया, उससे ढेर सारे और सवाल खड़े हो गए, अब मोदी सरकार के लिए और मुश्किल खड़ी हो रही है। इसलिए मोदीजी को पहला काम तो यही करना चाहिए कि बाइडेन सरकार को कड़ा संदेश भेज देना चाहिए कि वे सही सलामत लौट आए हैं। नाराजगी अधिक दिखानी हो तो संदेश के साथ लाल आंखों का इमोजी भी भेज ही देना चाहिए। चीन के साथ तो यह आजमाया हुआ फार्मूला है। यहां से लाल आंखें दिखाई जाती हैं, वहां से चीन भारत की सीमा पर लाल झंडे गाड़ देता है। दोनों ओर मुकाबला बराबरी पर छूटता है। मोदीजी को लगे कि कड़ा संदेश भेजने में कोई कमी रह रही हो तो राजनाथ सिंह का सहयोग लेना चाहिए। वे कड़ी निंदा करने के उस्ताद हैं। देश की सीमा पर जहां कहीं अतिक्रमण हो, आतंकी घुसपैठ हो, सैनिकों की जान ली जा रही हो, निर्दोषों को मारा जा रहा हो, वे कड़ी निंदा से पूरा काम चला लेते हैं। सरकार भी खुश, जनता भी खुश। हींग लगे न फिटकरी, फिर भी रंग चोखा। व्हाइट हाउस को कड़ा संदेश भेजने के बाद मोदीजी को अपने अमेरिकी दोस्तों की खबर भी ले ही लेनी चाहिए।

दोस्त, दोस्त न रहा, इस गाने को अब मोदीजी से बेहतर कौन समझ सकता है। उनके मित्र बराक को क्या जरूरत थी अल्पसंख्यकों पर नसीहत देने की। अब तो वे सत्ता में नहीं हैं, न ही उन्हें मोदीजी से अबकी बार ओबामा सरकार का नारा लगवाना है। उन्हें अपने नोबेल शांति पुरस्कार के साथ आराम से रिटायर्ड राजनेता की भूमिका निभानी चाहिए। लेकिन जैसे घर के बड़े-बुजुर्ग कई बार बिन मांगे बेहतरी के लिए सलाह देते हैं, वैसे ही बराक ओबामा ने भी मोदीजी को सलाह दे दी कि अल्पसंख्यकों के हितों का ख्याल रखें, वर्ना देश में बंटने का खतरा शुरु हो जाएगा। उनका यह बयान आते ही भाजपा की मोदी रक्षा ब्रिगेड ने मोर्चा संभाल लिया और बराक ओबामा को खूब खरी-खोटी सुनाई। भाजपा को शायद इस बात से भी तकलीफ हुई होगी कि ओबामा ने ठीक नेहरूजी जैसे विचार व्यक्त किए। 1930 में ही नेहरूजी ने कह दिया था कि अगर अल्पसंख्यकों को उनकी पहचान के आधार पर सताया जाता रहा तो देश खतरे में पड़ जाएगा। दुनिया के बहुत से नेता बार-बार नेहरूजी को याद करते हैं। इससे भाजपा के लोगों को कितनी तकलीफ होती है, यह कोई उन्हीं से पूछे। इस तकलीफ को और बढ़ाने का काम बराक ओबामा ने किया है। मोदीजी ने उन्हें दोस्त कहा और दोस्ती का ये सिला उन्होंने दिया। मोदीजी को उनके दूसरे दोस्त डोनाल्ड ट्रंप से भी मदद की कोई उम्मीद नहीं है। अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा बेकार चला गया, ट्रंप के समर्थकों ने हार के बाद कैपिटल हिल पर जो हिंसा की, उसके बाद भी उन्हें सत्ता नहीं मिली और अब तो बात सजा तक चली गई है। ट्रंप अपने ही देश में अलोकतांत्रिक, धोखेबाज करार दिए गए हैं। सो उनसे दोस्ती भी मोदीजी के काम नहीं आ पाएगी। अब रह गए जो बाइडेन। जिन्होंने राजकीय अतिथि बुलाकर अपनी दोस्ती दिखाना चाही, मगर प्रेस कांफ्रेंस में मोदीजी को फंसा दिया।

अमेरिका के तीनों दोस्त मोदीजी को फले नहीं। भारत के साथ वैसे भी अमेरिका का इतिहास कुछ खास अच्छा नहीं रहा है। भारत की मुसीबत में उसे और तोड़ने की कोशिश अमेरिका ने की, ये तो ऐतिहासिक तथ्य है। लेकिन फिर भी दुनियादारी की खातिर, देश की जरूरतों के मुताबिक भारत ने अमेरिका से संबंध बनाए रखे और एक निश्चित दूरी पर रखते हुए संबंध निभाए। मोदीजी उस दूरी को खत्म करने के लिए थोड़ा आगे निकल गए, मगर अब उन्हें भी अहसास हो रहा होगा कि हर पुरानी चीज को गलत ठहराने के लिए अपने तरह से काम करना कई बार कैसे गलत नतीजे दे जाता है। मोदीजी अमेरिका में जिस तरह एक सवाल पर फंसते-फंसते बच गए, उसे जल्द ही भुला दिया जाता। मगर मोदीजी की तरह ही उनके उत्साहित समर्थकों ने अंधभक्ति में मामले को और उलझा दिया। ट्रोलर्स की फौज ने अमेरिका को कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया। उन्होंने सोचा कि जैसे यहां मोदीजी से सवाल पूछने वालों को देशविरोधी ठहरा दिया जाता है, वैसा ही सबरीना सिद्दीकी के साथ किया जाए। उनकी टूलकिट का पर्दाफाश किया जाए और इस कोशिश में ट्रोलर्स ने मोदीजी की परेशानी और बढ़ा दी। व्हाइट हाउस ने साफ-साफ कह दिया कि पत्रकार पर इस तरह के हमले बर्दाश्त अस्वीकार्य हैं और प्रेस की आजादी महत्वपूर्ण है।

अब इससे पहले कि मोदीजी की ढाल बनकर खड़े लोग उन्हें और परेशानी में डालें उन्हें व्हाइट हाउस तक अपनी सलामती का संदेश पहुंचाकर बात को यहीं खत्म कर देना चाहिए। वर्ना बात निकली और दूर तलक चली गई, तो कहीं मोदीजी के लिए तकलीफ और न बढ़ जाए।

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