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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

रूस और यूक्रेन में चल रही जंग आज दुनिया की सबसे बड़ी खबर है। आज जब नाटो देशों की बैठक हो रही है, और उसमें यूक्रेन अपनी सदस्यता के लिए बड़े कड़े शब्दों में फैसला लेने वाले तमाम देशों को याद दिला रहा है कि अगर उसे रूस के हाथों और अधिक बर्बाद होने दिया गया, तो उससे रूस के आतंकी हौसले बढ़ते जाएंगे। नाटो की अपनी मजबूरी यह है कि वह सारे सदस्यों की सहमति के बिना तेजी से ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकता, और उसके कुछ वजनदार और ताकतवर सदस्य ऐसे भी हैं जो कि तेज रफ्तार से यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने के इसलिए खिलाफ हैं कि यह रफ्तार रूस को भडक़ा सकती है, और वह एक परमाणु हथियार संपन्न देश होने की वजह से कई और देशों पर खतरा बन सकता है। आज यूक्रेन का साथ दे रहे नाटो देश और खासकर अमरीका जैसी ताकतें बहुत संभल-संभलकर आगे बढ़ रही हैं, और यूक्रेन की फौजी मदद भी उन हथियारों से ही की जा रही है जिन्हें आत्मरक्षा के लिए जरूरी साबित किया जा सके। यूक्रेन को ऐसे हथियार नहीं दिए जा रहे जो कि रूस पर हमला करने के लिए की गई मदद करार दिए जा सकें।

ऐसे माहौल में एक दूसरी खबर रूस की तरफ ध्यान खींचती है कि पिछले पखवाड़े रूस के भीतर उसकी भाड़े की फौज के बगावत करने की जो खबरें आई थीं, उनकी हकीकत क्या थी? यह सवाल ऊपर लिखे गए नाटो की दुविधा के मुद्दे से कुछ परे का भी दिख सकता है, लेकिन यह उससे जुड़ा हुआ भी है क्योंकि यूक्रेन की इस जंग में जो भी हालत होती है, वह नाटो देशों के लिए एक गंभीर फौजी नौबत भी रहेगी। अब रूस के भीतर की ताजा खबर यह है कि रूस में भाड़े की जो फौज वाग्नर ग्रुप के नाम से काम करती है, और रूसी सरकार की मर्जी के मुताबिक वह दुनिया के कई देशों में जाकर फौजी कार्रवाई करती है, उसके बगावत करने वाले नेता प्रिगोझिन रूस में ही है, और उसकी रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाकात भी हुई है। इस बात को खुद रूसी सरकार ने बताया है और कहा है कि वाग्नर की उस कार्रवाई के हफ्ते भर बाद इन दोनों में तीन घंटे बैठक हुई। वाग्नर ग्रुप यूक्रेन में रूसी सेना की ओर से फौजी कार्रवाई भी कर रहा था, लेकिन वाग्नर के मुखिया प्रिगोझिन का रूसी फौजी जनरलों के साथ लगातार टकराव भी चल रहा था जो कि बताया जाता है कि बगावत की नौबत तक पहुंचा था। अब रूसी सरकार ने जितने खुलासे से इस बैठक की जानकारी दी है, वह भी बड़ी अटपटी लग रही है।
जंग के ऐसे माहौल में किसी भी सरकार के भीतर बहुत सी बातें गोपनीय रहती हैं, और ऐसे में वाग्नर मुखिया के साथ राष्ट्रपति की दूसरे फौजी अफसरों को बिठाकर की गई यह बैठक क्यों प्रचार के लायक समझी गई, इसे भी समझना मुश्किल है। साथ-साथ यह समझना भी मुश्किल है कि वाग्नर ग्रुप ने जिस तरह से रूसी सरकार के खिलाफ बगावत शुरू की, और कुछ घंटों या एक दिन के भीतर ही जिस तरह से वह झाग के बुलबुलों सरीखे शांत हो गई, उसके पीछे मकसद क्या था? यही वह मुद्दा है जिस पर हम आज आगे लिखना चाहते हैं। दरअसल बहुत सी चीजें जो जाहिर तौर पर कुछ दिखती हैं, वे हकीकत में कुछ और भी रहती हैं। और रूस जैसी महाशक्ति एक जंग के बीच में कई तरह के झूठ भी फैला सकती है। वाग्नर की रूस के खिलाफ बगावत जिस तरह रॉकेट की तरह उठी, और बीयर के झाग की तरह बैठ गई, उससे लोगों की यह अटकल तेजी से ठंडी पड़ गई कि अमरीका सहित कुछ पश्चिमी ताकतों ने वाग्नर को पुतिन के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए तैयार किया था। अगर ऐसा होता तो वाग्नर एक दिन में ही शांत न हो गया होता, और इस एक दिन में भी उसने रूस का कोई असल नुकसान नहीं किया था। दूसरी बात यह भी मानी जा रही है कि वाग्नर से एक नकली बगावत पुतिन ने ही करवाई, ताकि पुतिन को यह पता चल सके कि रूसी फौजी जनरलों में कौन उनके खिलाफ हैं। यह कुछ उस किस्म की बात हो सकती है कि भारत में आज चुनावों के कुछ महीने पहले कोई पार्टी या नेता अपने किसी समर्थक को बागी बताते हुए दूसरी पार्टी में भेजने का नाटक करवाए, और फिर चुनाव तक वहां की खबर लेते रहे। बहुत से लोगों का यह मानना था कि पुतिन ने वाग्नर के मुखिया से बगावत का यह नाटक इसीलिए करवाया था कि उस वक्त कोई और रूसी नेता या फौजी जनरल पुतिन के खिलाफ हो, तो उसकी नीयत भी उजागर हो सके।

इस पूरी बात को इतने खुलासे से लिखने का मकसद रूस के भीतर की बारीकियों को लिखना नहीं है, बल्कि दुनिया में कहीं भी इस किस्म की साजिश से सावधान रखना है। किसी भी देश में, किसी भी पार्टी में कोई ऐसा झूठा बागी खड़ा किया जा सकता है जो दूसरे खेमे में, दूसरी पार्टी में जाकर पहले तो वहां की हमदर्दी हासिल करे, और फिर यह पता लगाए कि वहां के कौन-कौन से नेता उसके अपने पुराने नेता के खिलाफ हैं, और उनकी क्या तैयारियां हैं। आज किसी पार्टी में शामिल होने वाले लोगों को लेकर यह सावधानी बरतनी चाहिए कि वे एक जासूस की तरह भी भेजे जा रहे हो सकते हैं, और वे कुछ अरसा नई पार्टी में काम करने के बाद फिर कोई बहाना बनाकर पुरानी पार्टी मेें लौट जाएं, जैसा कि बहुत से नेता करते हैं। इसलिए लोगों को सावधान भी रहना चाहिए कि ताजा-ताजा आए हुए लोग राजदार न बना लिए जाएं। इस बात को लिखना इसलिए भी जरूरी है कि हिन्दुस्तान जैसे देश में वामपंथियों को छोडक़र तमाम पार्टियां किसी भी गंदगी को वापिस लेने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती हैं, और फिर अगर कोई जासूसी के ऐसे मकसद से दूसरी पार्टी में भेजे जाएं, तो उनकी घरवापिसी का रास्ता तो हमेशा ही खुले रहता है। इसलिए नए-नए आने वाले लोगों को उनका सम्मान करने के नाम पर इस तरह भीतर तक नहीं ले जाना चाहिए कि वे तबाही का सामान बन सकें।
बात शुरू तो हुई थी यूक्रेन से, फिर वह रूस चली गई, और वहां से हिन्दुस्तान के लिए एक सबक लेकर पहुंची है। जिनको इससे सावधानी सीखनी हो वे सीख सकते हैं, बाकी धोखा खाना तो हर किसी का जन्मसिद्ध अधिकार रहता ही है।

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