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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सर्वमित्रा सुरजन॥

राहुल गांधी केवल अपने नेता होने का फर्ज अदा कर रहे हैं। उनकी जी भर के तारीफ करना है तो इसके लिए जनता को उनकी राजनीति के मर्म को समझना होगा। श्री गांधी आम लोगों के बीच जाकर उन्हें उनकी ताकत, उनके खास होने का अहसास करा रहे हैं। याद दिला रहे हैं कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है, अपनी उद्धारक वह खुद है।

राहुल गांधी ने खेतों में धान क्या बो दी, भाजपा को अपनी सत्ता की फसल की चिंता होने लगी। आनन-फानन में बिजूके तैयार कर खड़े कर दिए गए, और राहुल गांधी पर हमलों का सिलसिला फिर शुरु हो गया, ताकि जो बची हुई फसल है, वो सुरक्षित रहे। किसी ने उन्हें ताने दिए कि 45 डिग्री में एक दिन किसान के साथ खेत में काम करके देखें तो पता चलेगा, तो किसी ने उनके खेतों में काम करने को फोटोशूट करार दे दिया।

जबकि ऐसे हमले करने वाले भी जानते हैं कि राहुल गांधी मौसम से डर कर घर पर नहीं बैठते। ऐसा करना होता तो 4 हजार किमी पैदल भारत को एक कोने से दूसरे कोने तक नहीं नाप लेते। और मौजूदा राजनीति में फोटो खिंचवाने वाला ख्यातिलब्ध नेता कौन है, उस का नाम बताना भी जरूरी नहीं, सभी जानते हैं कि तस्वीरों में सबसे अधिक कौन नजर आता है। लेकिन बिजूके ऐसे हमलों के अलावा और कुछ कर भी नहीं सकते। हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक की उपज से भाजपा वंचित हो चुकी है। अब सामने राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम हैं। सभी राज्यों में कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है। कहां तो देश को कांग्रेसमुक्त करने का ख्वाब लेकर भाजपा ने सत्ता का इस बार का सफर शुरु किया था और कहां कांग्रेस ही अब भी उसके लिए सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी बनी हुई है।

राहुल गांधी को संसदीय-असंसदीय, शिष्ट-अशिष्ट, नैतिक-अनैतिक की परवाह किए बगैर नौसिखिया, युवराज, बाबा, शहजादा, पप्पू सब कुछ कह दिया गया, ताकि किसी भी तरीके से हतोत्साहित होकर वे चुपचाप बैठ जाएं। शुरुआती दौर में लगा कि इसमें भाजपा को सफलता मिल रही है, क्योंकि जनता ऐसे हमलों पर कई बार ताली बजाती नजर आई। लेकिन फिर जनता के बड़े हिस्से को समझ आने लगा कि वह किसी के अपमान पर ताली बजाती रह जाएगी और उसकी समस्याएं विकराल होकर उसे बर्बाद करने लगेंगी।

इधर सियासी और निजी तौर पर मान-अपमान से ऊपर उठते हुए राहुल गांधी ने जनता की आवाज को सुनना, समझना और आगे तक बढ़ाना शुरु किया। राहुल गांधी भट्टा परसौल भी गए और मंदसौर भी, हाथरस भी गए और कठुआ कांड के बाद दिल्ली की सड़कों पर भी उतरे और मणिपुर के राहत शिविरों तक हो आए। नोटबंदी के बाद भी उन्होंने जनता की तकलीफ पर सवाल पूछे और लॉकडाउन में खुद सड़क पर आकर जनता से उसकी तकलीफों को समझा। कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए वैज्ञानिक तरीकों पर उन्होंने विशेषज्ञों से चर्चा की, इसके आर्थिक दुष्प्रभावों पर अर्थशास्त्रियों से विमर्श किया।

किसान आंदोलन हुआ तो वे किसानों का साथ देने आगे आए, शाहीन बाग आंदोलन में अल्पसंख्यकों की चिंताओं को समझा। पुलवामा हमले पर उन्होंने सवाल किए और गलवान में देश की सीमाओं की सुरक्षा पर सवाल उठाया। गरज यह कि जहां, जिस तरीके से संभव हो सकता था राहुल गांधी जनता का साथ देने के लिए पहुंचते रहे। भारत जोड़ो यात्रा भले ही 2022 में शुरु हुई, लेकिन राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखने के साथ ही भारत की खोज करने का काम शुरु कर दिया था और भारत को जोड़ने का भी।

कांग्रेस को जड़ों से उखाड़ फेंकने की भाजपा और तमाम कांग्रेस विरोधी दलों की कोशिशें इसलिए ही कामयाब नहीं हो पाईं, क्योंकि राहुल गांधी बिना किसी ऐलान के उनके सामने चट्टान बनकर खड़े रहे। बड़ी-बड़ी लहरें चट्टानों पर जिस तरह अपना सिर पटक कर चली जाती हैं, कुछ ऐसा ही हश्र मोदी लहर का हो चुका है। भारतीय राजनीति के समंदर में 2014 के बाद श्री मोदी के नाम को लहर और सुनामी सब कह दिया गया। प्रपंची मीडिया ने ऐसी अवधारणा को पेश किया, बाकियों ने उसे लपका और आगे बढ़ाते चले गए। बिना इस बात पर विचार किए कि लोकतंत्र की नाव ऐसी लहरों पर सवार नहीं हो सकती। किसी एक व्यक्ति का नाम तानाशाही में स्वीकार्य होता है, लोकतंत्र में जनता की लहर ही कबूल होती है।

जनता ने 2014 और फिर 2019 में भाजपा को बहुमत दिया और भाजपा ने अपने प्रधानमंत्री का चेहरा नरेन्द्र मोदी को बनाया, यह प्राथमिक तथ्य है। इसके आगे की विवेचना अपने-अपने तरीकों से की जा सकती है कि आखिर किस तरह नरेन्द्र मोदी एकदम से भारतीय राजनैतिक परिदृश्य में छा गए। उनके गुजरात के मुख्यमंत्रित्व काल में शुरु हुए वाइब्रेंट गुजरात जैसे आयोजनों का क्या इस घटना से कोई सीधा संबंध है। आखिर किस तरह उद्योगजगत को कांग्रेस के नेताओं से अधिक मोदीजी प्रिय होते गए। क्या देश की बदलती औद्योगिक नीतियों, मोदी सरकार में लिए गए बड़े आर्थिक फैसलों और बदले टैक्स कानूनों का इससे कोई वास्ता है।

भारत के पड़ोसी देशों से संबंध, विदेश नीति में अघोषित बदलाव, अमेरिका, इजरायल, चीन से बढ़ते व्यापारिक संबंध क्या इसमें कहीं कोई कारक हैं। राजनीति में अखंड भारत और हिंदू राष्ट्र के लिए बढ़ता आग्रह और अल्पसंख्यकों के लिए सामाजिक तौर पर कम होती जगह, ऐसे बदलाव एक दिन में नहीं हुए हैं। इनके कारणों को समझने के लिए मोदी-मोदी के शोर के पीछे चल रही आवाज़ों को भी सुनना होगा। भारतीय समाज व्यक्तिपूजक रहा है। हमेशा अपने उद्धार के लिए हम किसी नायक की तलाश में रहते हैं। कंस से मुकाबला करना हो तो कृष्ण को ले आओ, रावण का खात्मा करना हो तो राम को ले आओ।

लेकिन राम और कृष्ण भी अकेले कहां रहे। राम को वानर सेना का साथ मिला और कृष्ण ने खुद मैदान में न उतरकर पांडवों का मार्गदर्शन किया, अर्जुन का साथ दिया। हमारी पौराणिक कथाएं भी यही समझाती रही हैं कि एक अकेला सब पर भारी नहीं हो सकता। लेकिन इस संदेश को समझे बिना समाज किसी एक को नायक बनाता रहा। मोदीजी ऐसे ही नायक बन गए। उन्हें अच्छे दिनों के वाहक के तौर पर भाजपा ने प्रस्तुत किया, मगर जनता को ये याद रखना चाहिए कि भाजपा को जिताने वाली वही है।
जनता ने मोदीजी के नायक बनने का दौर देखा, अब वो देख रही है कि राहुल गांधी किस तरह तमाम हमलों के बावजूद अविचलित अपने पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। मानहानि मामले में मिली सजा और संसद से अयोग्य करार दिए जाने के बावजूद वे जनता की आवाज उठाना नहीं छोड़ रहे हैं। लगातार उसके बीच पहुंच रहे हैं। कभी ट्रक में, कभी स्कूटी पर सवार होकर आम लोगों की बात सुनने पहुंच रहे हैं।

देश ने हाल-फिलहाल में शायद ही किसी नेता को इतने कम वक्त में इतनी सारी जगहों पर पहुंचते देखा हो। बाइक मैकेनिकों से जिस सहजता से राहुल गांधी मोटरसाइकिल के पुर्जे कसने की तकनीक सीखते दिखे, वैसे ही छात्रों के साथ खाना खाते, उनके भविष्य पर चर्चा करते दिखे। वे चाट और शरबत की दुकान पर खड़े नजर आए और खेतों में धान बोते भी दिख गए। कभी वे पीड़ित शरणार्थियों के आंसू पोंछते हैं, तो कभी किसी सैनिक से हाथ मिलाते दिखते हैं। राहुल गांधी की राजनीति पर राहुल तेरे कितने रूप जैसे शीर्षक से किताब लिखी जा सकती है। लेकिन असल बात तो ये है कि राहुल गांधी केवल अपने नेता होने का फर्ज अदा कर रहे हैं। उनकी जी भर के तारीफ करना है तो इसके लिए जनता को उनकी राजनीति के मर्म को समझना होगा।

श्री गांधी आम लोगों के बीच जाकर उन्हें उनकी ताकत, उनके खास होने का अहसास करा रहे हैं। याद दिला रहे हैं कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है, अपनी उद्धारक वह खुद है। भारत की और अपनी भाग्यविधाता जनता है, यह बात राहुल गांधी अलग-अलग तरीकों से संप्रेषित कर रहे हैं। जनता उसे सुने और अपनी जय खुद करे।

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