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-सुनील कुमार॥

हॉलीवुड में फिल्म और टीवी लेखकों की हड़ताल को ढाई महीने हो रहे हैं, और अब फिल्म-टीवी एक्टर्स की यूनियन भी इसमें शामिल हो गई है। निर्माता कंपनियों की शर्तों का विरोध करते हुए यह हड़ताल चल रही है जिसमें बाकी कुछ पहलुओं के साथ-साथ एक पहलू यह भी है लेखक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के इस्तेमाल का विरोध कर रहे हैं जिससे उनकी जरूरत ही घट जाएगी। इस नई टेक्नालॉजी की अभी शुरुआत ही हुई है, और यह लेखकों जैसे कामगारों को जिस रफ्तार से बेरोजगार करने का खतरा लेकर आई है, उससे हॉलीवुड के लेखक हिले हुए हैं। इसके साथ-साथ कुछ अलग टेक्नालॉजी की वजह से भी कंपनियों की कमाई में इजाफा हुआ है, लेकिन उसका हिस्सा लेखकों तक नहीं आ रहा है, वह भी हड़ताल की एक वजह है। अब सिनेमाघरों और टीवी के अलावा ओटीटी प्लेटफॉर्म कारोबार और कमाई का एक बड़ा जरिया बने हैं, और ऐसे फैलते हुए कारोबार की कमाई में लेखकों और एक्टरों को हिस्सा नहीं दिया जा रहा है। इसलिए यह हड़ताल 1960 के बाद की अकेली ऐसी हड़ताल है जिसमें ये दोनों बड़ी यूनियनें शामिल हुई हैं, और हड़ताल इस कड़ाई से शुरू की गई है कि हॉलीवुड की एक फिल्म का लंदन प्रीमियर अपने तय समय से एक घंटे पहले किया गया ताकि उसके कलाकार शामिल हो सकें, और घड़ी का कांटा देखकर वे प्रीमियर छोडक़र चले गए। वहां यूनियन इतनी तगड़ी है, उसके नियम इतनी कड़ाई से माने जा रहे हैं कि उनके खिलाफ जाकर कोई फिल्म-टीवी इंडस्ट्री में काम नहीं कर सकते। हड़ताल के आकार का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि एक्टरों की यूनियन में 65 हजार लोगों ने इसके पक्ष में वोट डाला था, और यह हड़ताल शुरू हुई। अब हॉलीवुड और न्यूयॉर्क के स्टूडियो के सामने फुटपाथों पर इन दोनों यूनियनों के लोग पोस्टर लिए हुए प्रदर्शन कर रहे हैं, और आवाजाही के सामने बाधा सरीखे बन रहे हैं।

इससे हिन्दुस्तान का सीधे-सीधे तो कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन एक बात जरूर है कि किसी इंडस्ट्री में यूनियन की ताकत क्या होती है, इसे आज दुनिया का सबसे पूंजीवादी देश देख रहा है। और यह यूनियन मजदूरों की नहीं हैं, बड़े-बड़े स्टार लेखकों, और स्टार कलाकारों वाली यूनियन है। इससे यह समझने की जरूरत है कि तरह-तरह के कानूनी अनुबंधों में बांधे गए हॉलीवुड के फिल्मकारों को भी हड़ताल से नहीं रोका जा सका। कंपनियां कह रही हैं कि कोरोना और लॉकडाउन के बाद जब कारोबार बेहतरी की ओर बढ़ रहा था तब यह हड़ताल बहुत बेमौके की है, लेकिन हड़ताल पर जाने वाले लोगों का कहना है कि वे कंपनियों के साथ नए अनुबंधों में पडऩे के बजाय अब नई शर्तों को तय कर लेना चाहते हैं। यह इस मौके पर जरूरी इसलिए भी है कि हॉलीवुड की कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल बढ़ाते चल रही हैं, और उससे बेरोजगारी भी होना तय है, और लेखकों के मौलिक लेखन का आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से अधिक हद तक इस्तेमाल करना भी लेखक के मौलिक काम का नाजायज इस्तेमाल है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस किसी कहानी को आगे बढ़ा सकता है, और लेखक की जरूरत को खत्म कर सकता है। हड़ताली लेखकों का यह मानना है कि उनके लिखे हुए के बाद उसका जिस-जिस तरह भी इस्तेमाल होता है, उस पर उन्हें भी मुनाफे में हिस्सा मिलना चाहिए।
हिन्दुस्तान में भी यह लोगों के सोचने की बात हो सकती है कि एक अखबार के कार्टूनिस्ट अपने कार्टून के उसी कंपनी के दूसरी प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल पर अलग से भुगतान की उम्मीद कर सकते हैं क्या? या लेखक, स्तंभकार, और रिपोर्टर ऐसे हक के बारे में सोच सकते हैं। आज हालत खराब है और इस तरह की बात करने वाले लोगों को नौकरी से निकालने में देर नहीं लगेगी, लेकिन दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं को देखकर हिन्दुस्तान जैसे देश के कामगार-तबकों को यह तो सोचना ही चाहिए कि कल जब बाजार ठीक होगा, कारोबारों में मुकाबला रहेगा, तब कामगार अपने किस-किस काम के लिए अतिरिक्त भुगतान की उम्मीद कर सकते हैं। इसके अलावा हॉलीवुड से यह भी सबक लेने की जरूरत है कि एक खालिस पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के बीच भी किस तरह से महीनों तक इतनी बड़ी हड़ताल चल सकती है। यह भी सबक लेने की जरूरत है कि यूनियनें किस तरह इतनी मजबूत हो सकती हैं कि खरबपति कंपनियां भी उनमें से कुछ लोगों को भी नहीं तोड़ पा रही हैं, काम शुरू नहीं कर पा रही हैं, और लोग घड़ी के कांटे देखकर हड़ताल पर चले जा रहे हैं। यह भी समझने की जरूरत है कि यह सिर्फ कामगारों की हड़ताल नहीं है, इसमें बड़े-बड़े दिग्गज लेखक, और इंडस्ट्री के सबसे बड़े कलाकार भी शामिल हैं, क्योंकि यूनियन के खिलाफ जाकर वे बाद में भी कोई काम नहीं कर सकेंगे।
इससे एक चीज और समझने की जरूरत है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बिना विनाशकारी हद तक आगे बढ़े हुए भी, आज भी किस तरह से रोजगार खा रही है। दो-चार दिन पहले ही हिन्दुस्तान की एक कंपनी की रिपोर्ट थी कि उसने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित ग्राहकों के जवाब देने वाले चैटबोट के इस्तेमाल के बाद इस काम में लगे अपने 90 फीसदी लोगों को निकाल दिया है। उसका कहना है कि चैटबोट इंसानी जवाब देने वालों के मुकाबले बेहतर काम कर रहा है, और वह बिल्कुल भी खर्चीला नहीं है। इसलिए ग्राहकों की बेहतर संतुष्टि के साथ-साथ खर्च की कटौती के लिए भी उन्होंने यह फैसला लिया है। अब अगर ग्राहकों के पूछताछ केन्द्रों या शिकायत केन्द्रों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस चैटबोट बात करने लगेंगे, कंप्यूटर पर जवाब टाईप करने लगेंगे, शिकायतों को दर्ज करने लगेंगे, बुकिंग करने लगेंगे, तो इंसानों की नौकरियां बहुत जल्द ही दसियों लाख की संख्या में खत्म होने लगेंगी। यह खतरा अब किसी विज्ञान कथा का नहीं है, यह एक असल खतरा है, जो कि आ चुका है, दरवाजा खटखटा रहा है, और इसकी किफायत की वजह से, इसके तेज रफ्तार और बेहतर कामकाज की वजह से कंपनियां इसे गले लगाने जा रही हैं।

ऐसे बहुत से पहलुओं पर हिन्दुस्तान और बाकी दुनिया के कामगारों को समझने की जरूरत है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस किसी हमाल के बोझ ढोने के काम को तो नहीं कर सकेगा, लेकिन सैकड़ों दूसरे कामों को इंसानों से बेहतर और तेज रफ्तार से करके उन्हें बेदखल जरूर कर देगा। अब यह हॉलीवुड फिल्म की कहानी नहीं है, यह हॉलीवुड के फुटपाथों पर चल रही हड़ताल के पोस्टरों पर लिखी गई बात है।

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