अगले साल लोकसभा के लिये होने वाले बेहद अहम चुनावों को लेकर जहां केन्द्र में अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिये भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में 38 सियासी दलों को जोड़कर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एनजीए) को पुनर्जागृत किया गया है, तो वहीं दूसरी ओर उसे चुनौती देने के लिये 26 विपक्षी दल कांग्रेस की अगुवाई में लामबन्द हो चुके हैं। इससे यह उम्मीद बन्ध चली थी कि अगला चुनाव 2014 व 2019 की तरह भावनात्मक मुद्दों पर नहीं वरन ठोस व जन सरोकार के मुद्दों पर लड़ा जायेगा।
साम्प्रदायिकता बनाम सशक्तिकरण का फार्मूला सामने आया था और ऐसा लग रहा है कि नवनिर्मित विपक्षी गठबन्धन ‘इंडिया’ (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूज़िव एलाएंस) पुनर्गठित एनडीए को तगड़ी चुनौती दे सकेगा। इसी के मद्देनज़र इंडिया दो बैठकें (पटना व बेंगलुरु में) कर चुका है। अब न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने तथा सीटों के बंटवारे को लेकर मुम्बई में बैठक होगी। दूसरी तरफ़ लगता है कि भाजपा व उसके सहयोगी दल फिर से राम जी की शरण में चले गये हैं और 2024 का चुनाव राम मंदिर के बल पर सत्ता पक्ष द्वारा लड़ा जा सकता है।
ऐसा सोचने का कारण है भाजपा व उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा हाथ में लिये गये नये कार्यक्रम। जिसके अंतर्गत जनवरी, 2024 में देशव्यापी ‘राम महोत्सव’ आयोजित होगा तथा ‘स्मार्ट टेम्पल मिशन’ के अंतर्गत देश भर के मंदिरों को ‘टेम्पल कनेक्ट’ नामक कार्यक्रम के जरिये एक दूसरे से जोड़ा जायेगा। रविवार को अयोध्या में हुई श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की मंदिर निर्माण समिति की बैठक में तय किया गया कि अगले वर्ष 14 से 26 जनवरी के बीच मोदी अयोध्या के राम मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे।
नये वर्ष के आरम्भ में देश भर में राम महोत्सव मनाया जायेगा। इसके तहत भारत के मंदिरों में रामचरित मानस व हनुमान चालीसा का पाठ होगा। पूरे देश में प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर दीपावली की ही तरह हर घर के सामने कम से कम 5 दीपक जलाए जायेंगे। सभी बड़े मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों पर लाइव प्रसारण होगा। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास का तो कहना है कि ‘यह दूसरे स्वतंत्रता दिवस की तरह का अवसर है।’ अयोध्या में 32 हजार करोड़ रुपये के विकास कार्य जारी हैं जिनमें सड़कों का चौड़ीकरण, एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन में सुविधाओं का विस्तार, प्रसादालय का आधुनिकीकरण आदि शामिल है। प्रमुख धर्माचार्यों को इस कार्यक्रम में बुलाया जायेगा। श्रीराम की भव्य मूर्ति भी इस साल अक्टूबर तक पूरी हो जायेगी।
उधर वाराणसी में विश्व भर के मंदिरों के व्यवस्थापन को लेकर हुए अंतर्राष्ट्रीय मंदिर सम्मेलन में 32 देशों के मंदिरों के न्यास व्यवस्थापक शामिल हुए। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इसका उद्घाटन करते हुए मंदिरों को ‘राष्ट्रीय एकता का सूत्रधार’ बताया। उन्होंने मंदिरों को उपासना व कलाओं के केन्द्र बनाने की ज़रूरत बतलाई। सम्मेलन में मंदिरों को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करने की बात कही गयी। सभी मंदिरों की नेटवर्किंग का भी कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है।
‘स्मार्ट टेम्पल मिशन’ के तहत सभी मंदिरों को एक दूसरे से जोड़ा जायेगा। हर प्रमुख मंदिर को अन्य छोटे मंदिरों को मदद करने की जिम्मेदारी दी जायेगी। टेम्पल कनेक्ट के संस्थापक गिरीश कुलकर्णी के दिये प्रेज़ेंटेशन के मुताबिक दुनिया भर के मंदिरों की अर्थव्यवस्था करीब 3.28 लाख करोड़ रुपये है। इस सम्मेलन में जितने मंदिरों के व्यवस्थापक व न्यासी आये हैं उनकी सम्मिलित अर्थव्यवस्था का आकार 1.64 लाख करोड़ रु. के बराबर है। टेम्पल कनेक्ट द्वारा लगभग 60 देशों के 9000 से अधिक मंदिरों का डाटाबेस तैयार करने की बात भी कही गयी।
बेशक धर्म निजी आस्था के विषय हैं और धार्मिक आजादी के तहत हर कोई अपनी उपासना पद्धति चुनने के लिये स्वतंत्र है। भारत इस राह पर पहले से चलता आया है और इस तरह के कार्यक्रम करने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है। होनी भी नहीं चाहिये; पर प्रश्न तो यह है कि क्या अगले लोकसभा चुनाव का यह प्रमुख मुद्दा होगा? अगर ऐसा है तो करोड़ों लोगों के भौतिक जीवन से जुड़े मुद्दे तो कहीं आड़ में नहीं चले जायेंगे? पिछले कुछ वर्षों से देश के सामने जो आर्थिक मसले हैं और जिन मुश्किलात से नागरिक गुज़र रहे हैं, उन्हें लेकर सत्तारुढ़ दल व उनके नेताओं की ओर से शायद ही कोई ठोस बात कही जाती है।
गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं का गिरता स्तर, बिगड़ती कानून-व्यवस्था, परस्पर नफरत का माहौल आदि वे मुद्दे हैं जिन्हें लेकर सत्ता को जनता के सामने जाना चाहिये। हाल के महीनों में नरेन्द्र मोदी की छवि में जो गिरावट आई है तथा विपक्ष ताकतवर हो रहा है, क्या श्रीराम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, राम महोत्सव, टेम्पल कनेक्ट जैसे कार्यक्रम पीएम, भाजपा व एनडीए के उद्धारक साबित होंगे? वैसे तो कुछ समय पहले ही संघ के मुखपत्र ‘आर्गेनाइज़र’ ने चेतावनी दी थी कि ‘मोदी के चेहरे व हिन्दुत्व के नाम पर अगला चुनाव नहीं लड़ा जा सकता’, लेकिन लगता है कि उस सलाह को दरकिनार कर भाजपा अपने लोकप्रिय नैरेटिव के बूते लोकसभा-2024 को फ़तह करने की कोशिशों में अभी से जुट गयी है।