-सुनील कुमार॥
वैसे तो हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच एक-दूसरे को बुरा दिखाने का एक मुकाबला चलते ही रहता है जिसके तहत कई बार झूठी खबरें भी फैलाई जाती हैं। लेकिन अभी पाकिस्तान के बहावलपुर की इस्लामिया यूनिवर्सिटी का जो सेक्स और ड्रग स्कैंडल सामने आया है, उस पर सरकार की तरफ से जांच बैठाई गई है इसलिए उसे सच मानकर हम उस पर यहां लिख रहे हैं। अभी वहां यूनिवर्सिटी के एक बड़े अफसर को एक छात्रा के साथ संदिग्ध हालत में पकड़ा गया, और उसके पास से चरस भी बरामद हुई। पुलिस ने जब उसका मोबाइल फोन देखा तो उसमें छात्राओं के हजारों अश्लील वीडियो भरे हुए थे जिनका इस्तेमाल करके, ब्लैकमेल करके वह छात्राओं का शोषण कर रहा था। इस सिलसिले में अब तक तीन अफसर गिरफ्तार हो चुके हैं। पता लगा है कि गरीब लड़कियों को स्कॉलरशिप का लालच देकर फंसाया जाता था, और अब तक 55 सौ लड़कियों के अश्लील वीडियो बरामद हुए हैं। ऐसा भी कहा जा रहा है कि वहां लड़कियों को नशे का आदी भी बनाया जाता था। छात्राओं के इतने हजार अश्लील वीडियो मिलने से इसे दुनिया का सबसे बड़ा सेक्स-स्कैंडल कहा जा रहा है। पाकिस्तान की पुलिस से परे भी वहां के हायर एजुकेशन कमीशन ने तीन वाइस चांसलरों की एक जांच कमेटी बनाई है।
किसी संस्था में जब बरस-दर-बरस इस तरह का शोषण चलता है, तो वह इस बात का सुबूत भी होता है कि वहां संस्थागत लापरवाही ऊंचे दर्जे की हुई है, और बड़े पैमाने पर भी हुई है। विश्वविद्यालय में अगर वहीं के अफसर संगठित तरीके से छात्राओं का ऐसा शोषण कर रहे थे, तो वहां की कोई न कोई ऐसी निगरानी कमेटी होनी चाहिए थी जिसकी जानकारी में यह बात पहले आ जाती। ऐसी नौबत यह भी बताती है कि लड़कियों और महिलाओं को अपनी शिकायत करने के लिए कोई भरोसेमंद इंतजाम यूनिवर्सिटी ने मुहैया नहीं कराया था। और पाकिस्तान के एक विश्वविद्यालय को ही क्यों कोसा जाए, पाकिस्तान से कई गुना बड़े हिन्दुस्तान में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगता है तो वे खुद ही सुनवाई करने के लिए बेंच पर बैठ जाते हैं, ऐसे में शर्मनाक बात यह भी रहती है कि उनके साथी जज भी इसे गलत नहीं मानते, और वे भी इस बेंच में बैठते हैं। ऐसे में पाकिस्तान जैसे एक अपेक्षाकृत कमजोर लोकतंत्र में अगर यह मामला हुआ है, तो उससे बाकी देशों को भी यह सबक लेना चाहिए कि वे भी ऐसे हादसे से बहुत दूर नहीं हैं, और बाकी देशों के पास भी ऐसी नौबत से बचाव का कोई भरोसेमंद इंतजाम नहीं है। हिन्दुस्तान में कुछेक चर्चित मामलों को अगर छोड़ दें तो अधिकतर में बलात्कार की शिकार महिला के साथ थाने से लेकर अदालत तक नजरों और जुबान से और बलात्कार होते ही चलता है। लोगों को याद होगा कि 1992 में अजमेर में नवज्योति नाम के अखबार के रिपोर्टर ने एक सिलसिलेवार बलात्कार का मामला उजागर किया था जिसमें अजमेर शरीफ दरगाह का रख-रखाव देखने वाले खादिम परिवार के एक आदमी की अगुवाई में वहां के लोगों ने लड़कियों को ब्लैकमेल करके उससे बलात्कार करने का एक लंबा सिलसिला चलाया था, बाद में यह भी पता लगा कि इस समाचार के छपने के साल भर पहले से पुलिस को सब मालूम था, लेकिन उसने कोई कार्रवाई नहीं की थी। फिर इस रिपोर्ट के छपने पर शहर बंद रहा, लोगों ने भारी विरोध-प्रदर्शन किया, और 19 लोगों पर इसका मुकदमा चला, और 8 लोगों को उम्रकैद हुई जिसमें से 4 की सजा हाईकोर्ट में भी बरकरार रही। इस मामले में फोटो और वीडियो से लोगों को ब्लैकमेल किया जाता था लेकिन बलात्कार की शिकार 30 महिलाओं में से कई ने शिकायत नहीं की थी।
जब किसी संस्था या शहर में, किसी दफ्तर या संगठन में इस तरह से संगठित शोषण होता है, तो उसका एक ही मतलब निकलता है कि बहुत से जिम्मेदार लोग उसमें शामिल हैं। किसी स्कूल में कोई कर्मचारी किसी एक बच्ची से बलात्कार कर ले वह एक अलग मामला रहता है लेकिन जब जिम्मेदार कुर्सी पर बैठे हुए लोग सिलसिलेवार तरीके से शोषण का यह जुर्म आगे बढ़ाते हैं, तो उसका मतलब संस्थागत नाकामयाबी के अलावा कुछ नहीं होता। हमारा तो मानना है कि जहां कहीं ऐसे मामले सामने आते हैं, वहां संस्था के तमाम जिम्मेदार लोगों को हटा दिया जाना चाहिए। ऐसे जुर्म की एक सामूहिक सजा भी दी जानी चाहिए, और तमाम जिम्मेदार और जवाबदेह लोग ऐसी सजा के हकदार रहते हैं।
सरकारों में भी सत्ता की ताकत की मेहरबानी पाने वाले लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाती। हिन्दुस्तान जैसे देश में अधिकतर प्रदेशों की पुलिस एक कमाऊ पोस्ट पाने के लिए अपनी रीढ़ की हड्डी निकालकर नेताओं के चरणों में समर्पित कर देती है। और नेता तो होते ही हैं, तरह-तरह के मुजरिमों को बचाने वाले। इसलिए अपनी कमाऊ कुर्सी बचाने के लिए पुलिस मुजरिमों को बचाने में जुट जाती है। देश के अधिकतर प्रदेशों में पुलिस का यही हाल है, और एक बड़े जज की लिखी हुई बात सही साबित होती है कि पुलिस वर्दीधारी गुंडा है। इसलिए मुजरिमों पर आसानी से कोई कार्रवाई नहीं हो पाती है, उनकी राजनीतिक सत्ता तक पहुंच, या पुलिस को खरीदने की उनकी ताकत उन्हें किसी भी सजा से बचाकर रखती है। पाकिस्तान के इस मामले पर लिखने का मकसद यही है कि बाकी जगहों पर भी लोग लड़कियों और महिलाओं को शिकायत का हौसला देने के लिए एक भरोसेमंद तरीका लागू करें, ताकि बात इतने आगे तक न बढ़ सकें।