2020 से शुरु हुई कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को बंधक बनाकर रख लिया था। दो साल तक इस महामारी का कहर दुनिया के कई देशों में बुरी तरह टूटा। लाखों-करोड़ों जिंदगियां कोरोना की वजह से बर्बाद हो गईं। दुनिया ऐसे मोड़ पर पहुंच गई, जहां पूर्व कोरोना काल और उत्तर कोरोना काल की चर्चा होने लगी। क्योंकि बीमारी का असर केवल शरीर पर नहीं हुआ, अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवहार, नीतियां, राजनैतिक फैसले सब इसकी जद में आए। दुनिया में महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा पाले बैठे चीन पर कोविड-19 के प्रसार का ठीकरा कई देशों ने फोड़ा। आरोप लगे कि चीन ने इस वायरस की जानकारी वक्त रहते दुनिया को नहीं दी, इसका प्रसार होने की खबरों को दबाया गया और जब इसका विस्फोट दुनिया में हुआ तब भी चीन अपने बचाव में लगा रहा। गौरतलब है कि चीन में साम्यवादी सरकार है, लेकिन यह साम्यवाद कई मायनों में तानाशाही जैसा लगता है। क्योंकि इसमें जनता की भलाई और हितों के बारे में सोचने से अधिक कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता को बचाए रखने की कोशिश दिखाई देती है। कोरोना का मुकाबला करने के लिए चीन की सरकार ने ‘डायनमिक ज़ीरो-कोविड’ नाम के साथ लॉकडाउन की नीतियां लागू कीं। सत्ता तंत्र ने मान लिया था कि कुछ हफ्ते या महीने लोग अपने-अपने घरों में कैद रहेंगे, तो कोविड का प्रसार नहीं होगा और बीमारी खत्म हो जाएगी। चीन की इस नीति का अनुसरण बाद में कई और देशों ने किया। लोग कहने को आजाद रहे, लेकिन देश बड़ी जेलों में तब्दील हो गए। एक गंभीर बीमारी का सरलीकरण कर उसे अचूक उपाय की तरह पेश करने का नतीजा यह हुआ कि दुनिया में लोकतांत्रिक बुनियादें हिल गईं और पुलिस शासन को अघोषित मंजूरी मिल गई। कोविड के कड़े नियमों के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता पर गहरा आघात किया गया। संपन्न, समृद्ध लोगों के लिए घर में रहने का विलासितापूर्ण विचार कठिन नहीं था, लेकिन गरीबों और मध्यमवर्गीय लोगों पर यह उपाय महामारी से भी घातक साबित हुआ।
कोरोना और लॉकडाउन के अविचारित उपायों के बीच दो वर्षों का कठिन समय किसी तरह बीता और अब दुनिया फिर से पटरी पर आती दिख रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंदी के बादल मंडरा रहे हैं, लेकिन पहले जैसी घबराहट नहीं है, क्योंकि लोग अब काम पर जा रहे हैं, उद्योगधंधे, व्यापार फिर से शुरु हो गए हैं। कोरोना अब भी खत्म नहीं हुआ है, मगर उसका असर कम हुआ है। लेकिन चीन में कोरोना अब भी एक गंभीर चुनौती बना हुआ है, क्योंकि यहां संक्रमित व्यक्तियों की संख्या रोज हजारों में हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक बीते सात दिनों में चीन में 418 लोगों की कोरोना के संक्रमण के कारण मौत हुई है। दुनिया के बाकी देशों में तो वैक्सीन के लिए एक-दूसरे के शोध पर भरोसा किया जा रहा है, मगर चीन अपनी ही बनाई वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहा है, जबकि उनके परिणाम बहुत संतोषजनक नहीं है। लेकिन चीन की सरकार इसे राष्ट्र के गौरव के साथ जोड़ रही है।
उग्रराष्ट्रवाद के ऐसे उदाहरण भविष्य में ऐतिहासिक गलतियों की तरह पेश किए जाएंगे, मगर चीन की सरकार को इसकी परवाह शायद नहीं है। कोरोना से लड़ाई में सफलता न मिलने पर चीन अब भी लॉकडाउन वाली नीति पर जोर दे रहा है। पिछले महीने अक्टूबर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में कहा था कि, ‘ज़ीरो-कोविड पॉलिसी वायरस के खिलाफ़ लोगों की लड़ाई है।’ सरकार की जबरदस्ती को बड़ी चालाकी से लोगों की लड़ाई बता दिया गया है, हालांकि इसमें लोग ही पिस रहे हैं, अकाल मौत मर रहे हैं। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक फास्ट ट्रेन के चालक दल का एक सदस्य संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ गया था और इसके बाद इस ट्रेन में सारे लोगों का कोविड टेस्ट हुआ और उन्हें क्वारंटीन में रखा गया। इसी तरह पिछले सप्ताह शिनजियांग के उरूमची में एक बिल्डिंग ब्लॉक में आग लगने से कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई, क्योंकि बिल्डिंग के सुरक्षाकर्मियों ने लॉकडाउन के नियम की वजह से लोगों को बाहर निकलने नहीं दिया। अंधेर नगरी-चौपट राजा का यह ताजा उदाहरण है। शिनजिंयाग प्रांत की इस घटना के बाद अब चीन के लोगों में सरकार की सख्ती के खिलाफ नाराजगी इतनी बढ़ गई है कि अब वो सरकार के खिलाफ खुलकर सड़कों पर उतर आए हैं।
हालांकि चीन की सरकार ने लॉकडाउन के नियम पहले से थोड़े लचीले किए हैं। अब क्वांरटाइन का वक्त घटा दिया गया है और इसके अलावा मार्च से विदेशी यात्रियों को आने की भी इजाज़त है। मगर लोग अब किसी भी तरह की सख्ती बर्दाश्त करने तैयार नहीं दिख रहे हैं। बीजिंग, शंघाई और शिनजियांग समेत कई शहरों में लोग बड़ी संख्या में सरकार के कोविड नियमों की मुखालफत के लिए उतर आए हैं। और वे खुलकर शी जिनपिंग से सत्ता छोड़ने की मांग कर रहे हैं। चीन की सरकार अपने विरोधियों का सख्ती से दमन करती है। मानवाधिकारों की परवाह किए बगैर विरोधियों को जेल में ठूंसने और कई मौकों पर गायब तक कर देने के उदाहरण दुनिया ने देखे हैं। लेकिन इन तमाम खतरों के बावजूद चीन की जनता सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। नारे लगा रही है हमें लोकतंत्र, क़ानून का शासन और बोलने की आज़ादी चाहिए।
अपने अधिकारों और लोकतंत्र के लिए उठती ये आवाज़ कम्युनिस्ट पार्टी और शी जिनपिंग के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। शी जिनपिंग का कहना है कि वे अपनी नीतियों से पीछे नहीं हटेंगे, लेकिन जनता की आवाज़ बड़ी-बड़ी हुकूमतों की नींव हिला देती है, इसके सबक इतिहास में दर्ज हैं।