Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सर्वमित्रा सुरजन॥

विवादों की एक लंबी सूची में अब एक और प्रसंग जुड़ गया है। इस बार भी उन्हें गिरफ्तार करने की मांग हो रही है, लेकिन पिछले अनुभव देखकर लगता नहीं कि कोई सख्ती बरती जाएगी। राहत की बात यही है कि तमाम तरह के अंधविश्वासों के बीच अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति जैसी संस्थाएं हैं, जो ऐसे ढोंगियों के नकाब उतारने की कोशिश में लगी हुई हैं। इन कोशिशों को समाज के शिक्षित और जागरुक तबके का साथ मिलना जरूरी है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 311 के अनुसार, जो भी कोई ठगी करेगा, उसे आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। ऐसे ही धारा 420 के तहत ठगी, बेईमानी और धोखाधड़ी करने वाले को गिरफ्तार किया जा सकता है। भारतीय संविधान की धारा 51-ए, मानवीयता और वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने में सरकार के प्रतिबद्ध रहने की बात करती है। कानून और संविधान की इन धाराओं को याद करने और दिलाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि देश में धर्म के नाम पर केवल नफरत का कारोबार नहीं चलाया जा रहा है, ठगी भी बदस्तूर जारी है। वैसे तो चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा न करना या जनसभाओं में अच्छे दिनों की डींगें हांकने के बाद लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, अमन-चैन सब के लिए मोहताज कर देना भी ठगी ही कहलाएगी।

लेकिन लोकतंत्र में इस ठगी को जुमला कहकर नकार देने की सुविधा है, साथ ही जनता के पास यह ताकत भी है कि वह चुनावों में ऐसे ठगों को सत्ता में आने से रोक दे। लेकिन धार्मिक भावनाओं और आस्था के नाम पर अगर श्रद्धालुओं को मानसिक तौर पर प्रभावित किया जाए। अवैज्ञानिक तरीकों से शारीरिक, मानसिक कष्टों से मुक्ति का दावा कर उन्हें धोखे में रखा जाए, चमत्कारों के नाम पर उनके साथ हाथ की सफाई की जाए, तो क्या यह सब भी ठगी के दायरे में नहीं आता है।

33 करोड़ देवी-देवताओं के साथ करोड़ों संतों-महात्माओं के आसरे इस देश की धर्मभीरू जनता जिंदगी काटती है। देवी-देवता तो देवलोक में ही होते होंगे, लेकिन जो इहलोक है, वहां इन संतों-महात्माओं को ही देवता सरीखे इनके श्रद्धालु पूजते रहे हैं। मौजूदा वक्त में अनेक स्वयंभू बाबाओं ने धर्म के कारोबार पर अपना कब्जा जमा लिया है। ये लोग अपनी वाकपटुता, अजीबोगरीब वेशभूषा, भव्य दरबारों और सबसे बढ़कर लोगों के मन में बैठे अनिष्ट के डर को भुनाते हुए धार्मिक उद्योग से भरपूर मुनाफा कमाते हैं। दुख की बात ये है कि अपने मुनाफे के लिए ये ढोंगी लोग सरेआम ठगी करते रहते हैं और सरकार, प्रशासन इन सबको धर्म के नाम पर चलने देती है।

कभी आसाराम या गुरमीत राम रहीम जैसे लोगों पर कानूनी शिकंजा कसता भी है, तो उन्हें जेल तक पहुंचाने में कितनी मशक्कत पुलिस को करनी पड़ती है, ये पिछले कुछ सालों में पूरे देश ने देखा है। इन लोगों की राजनैतिक सांठ-गांठ भी जाहिर है, कई राजनेता इन बाबाओं के जरिए अपने वोटबैंक को मजबूत करते हैं। सरकारों का अघोषित संरक्षण इन्हें प्राप्त होता है। इसलिए धार्मिक कथावाचन आयोजनों में ये बाबा जी भर के नफरत फैलाते हैं, धर्म के बारे में अनर्गल बातें करते हैं और कोई इन्हें चुनौती दे, तो उसे धर्म का विरोधी बताते हैं।

ठगी का ऐसा ही एक सिलसिला पिछले दिनों नागपुर में चल रहा था। मध्यप्रदेश के छतरपुर के बागेश्वर धाम के पुजारी धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की रामकथा नागपुर में 13 जनवरी तक चलनी थी। धीरेन्द्र शास्त्री दिव्य दरबार और मन की बात पढ़ने के लिए काफी चर्चित हैं। सोशल मीडिया में उनके अनेक चमत्कारों को बताया गया है। कई टीवी चैनल भी रहस्यमय और अविश्वसनीय खबरों के सहारे टीआरपी बढ़ाने के लिए धीरेन्द्र शास्त्री के दिव्य दरबारों पर कार्यक्रम कर चुके हैं कि किस तरह कथा कहते हुए वे कैसे किसी भी अनजान व्यक्ति को भक्तों की भीड़ से बुला लेते हैं और उसके मंच तक पहुंचने से पहले उसके मन की बात एक पर्चे में लिख देते हैं। उसकी समस्याओं को बिना बोले बता देते हैं। एक चैनल में ये भी दिखाया गया कि कैसे धीरेन्द्र शास्त्री माइक पर एक फूंक से लोगों को प्रेत बाधा से मुक्ति दिला देते हैं।

अवैज्ञानिक सोच या अंधविश्वास के कारण प्रेत बाधा जैसी भ्रामक बातों पर लोग यकीन करते हैं, लेकिन उन्हें चमत्कार से दूर करने की बात कहने वाले और उसे चैनल पर दिखाने वाले दोनों ही अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री अपनी कथाओं में यह सब धड़ल्ले से करते हैं, वो भूत-प्रेत दरबार भी लगाते हैं। नागपुर के इस कथा आयोजन में नितिन गडकरी और देवेन्द्र फड़नवीस भी धीरेन्द्र शास्त्री के साथ नजर आए थे। जब अपने नेताओं को जनता ऐसे बाबाओं के करीब देखती है तो उसकी अंधश्रद्धा कुछ और पुख्ता हो जाती है।

बहरहाल नागपुर में धीरेन्द्र शास्त्री का भूत-प्रेत दरबार कुछ और चलता, इससे पहले अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के श्याम मानव ने उन्हें चुनौती दी कि वे उनके सामने ऐसे चमत्कार करके दिखाएं और अगर वे सही साबित हुए तो समिति उन्हें 30 लाख रूपए देगी। दोनों हाथों में लड्डू जैसे इस प्रस्ताव को धीरेन्द्र शास्त्री ने स्वीकार नहीं किया, बल्कि 13 तारीख से दो दिन पहले 11 तारीख को ही कथा आयोजन समाप्त कर दिया। जबकि मंच पर लगे बैनर में आयोजन 13 जनवरी तक ही बताया गया था। चुनौती से भाग जाने के इल्जाम पर बेहद अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि मैं 7 दिनों तक वहां झंडा गाड़कर था, तब क्या उनका बाप मर गया था, क्या उन्होंने हाथों में चूड़ियां पहन रखी थीं।

जिस मुंह से राम की कथा सुनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु रोज जुटते हैं, उस मुंह से इस तरह की अमर्यादित भाषा जब निकले तो इसे ठगी ही कहा जाएगा। ये पहली बार नहीं है जब धीरेन्द्र शास्त्री ने अपने भाषा ज्ञान का ऐसा परिचय दिया है। इससे पहले भी हिंदुत्व की रक्षा के लिए अपने कथा कार्यक्रम में उन्होंने सभी हिंदुओं को एक होकर बुलडोजर चलाने का आह्वान किया था। एक बार मंदिरों में साईं बाबा की मूर्ति की पूजा का विरोध करते हुए उन्होंने कहा था कि जब सनातनियों के पास पूजा करने के लिए 33 कोटि देवी-देवता हैं तो चांद मियां को पूजने की जरूरत क्या है। इसी तरह अपनी कथा के दौरान एक आदमी को पैर छूने से रोकने हुए धीरेन्द्र शास्त्री ने कहा था छूना नहीं हमें, अछूत आदमी हैं।

इसके बाद उन्हें गिरफ्तार करने की मांग जोर पकड़ने लगी थी। जिस पर सफाई आई कि उन्होंने खुद के लिए अछूत शब्द का इस्तेमाल किया था। मान लें ये सच है, तब भी वे किसी न किसी तरह छुआछूत को ही बढ़ावा दे रहे थे, जो संज्ञेय अपराध है। लेकिन धीरेन्द्र शास्त्री पर कानून का जोर नहीं चला। उन पर कुछ लोगों ने जमीन हड़पने का आरोप भी लगाया, उनके गांव का ही एक परिवार इसके खिलाफ छतरपुर कलेक्ट्रेट में धरने पर बैठ गया था। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि बार-बार शिकायतों के बावजूद पंडित धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ जिला प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं करता।

विवादों की एक लंबी सूची में अब एक और प्रसंग जुड़ गया है। इस बार भी उन्हें गिरफ्तार करने की मांग हो रही है, लेकिन पिछले अनुभव देखकर लगता नहीं कि कोई सख्ती बरती जाएगी। राहत की बात यही है कि तमाम तरह के अंधविश्वासों के बीच अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति जैसी संस्थाएं हैं, जो ऐसे ढोंगियों के नकाब उतारने की कोशिश में लगी हुई हैं। इन कोशिशों को समाज के शिक्षित और जागरुक तबके का साथ मिलना जरूरी है। सरकार से इस दिशा में उम्मीद रखना बेकार है, क्योंकि राजनेताओं के लिए वोट सबसे बड़ी चीज है, इसलिए वे ऐसे किसी व्यक्ति को हाथ लगाने से बचेंगी, जिसके तथाकथित चमत्कारों को देखने-सुनने के लिए हजारों की भीड़ इकठ्ठा हो जाती है।

स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में चमत्कार दिखाने के एक सवाल पर कहा था कि कुछ घटनाएं हमारी इंद्रियों को चकरा देती हैं, जबकि वे भी प्राकृतिक नियमों के अनुसार घटित होती हैं। लेकिन मन वशीभूत होकर उन्हें सच मान बैठता है। इसका धर्म से कुछ लेना देना नहीं है। भारत में की जाने वाली अजीब चीजें, जिन्हें फॉरेन मीडिया रिपोर्ट करता है, महज हाथ की सफाई और सम्मोहन है। बुद्धिमान पुरुष कभी भी इस तरह की मूर्खता में शामिल नहीं होते।
अगर किसी भगवाधारी की बात ही सुनना अच्छा लगता है, तो फिर स्वामी विवेकानंद को ही भक्तगण सुनें और खुद को ठगी का शिकार होने से बचाएं।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *