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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सर्वमित्रा सुरजन॥

यशपाल बेनाम राजनीति में हैं, उन्हें अभी सार्वजनिक जीवन में ही रहना है और संभवत: चुनाव भी लड़ने हों। इसलिए उन्होंने पब्लिक यानी जनता के विचारों को अहमियत दी। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये जनता के विचार हैं, या मुठ्ठीभर गुंडों-मवाली जैसे तत्वों के, जो धर्म की रक्षा के नाम पर आतंक कायम करना चाहते हैं। किसी की निजी जिंदगी में दखल देकर, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करते हैं।

देश में कानून की जगह नफरत का राज कायम होता जा रहा है, इसके ढेरों उदाहरण हर दिन देखने मिलते हैं। आम तौर पर इसमें सामान्य तबके के लोग शिकार बनते हैं। लेकिन आग की तरह नफरत भी सबको अपनी चपेट में ले लेती है। आग भड़काने वाला यह गारंटी नहीं दे सकता कि उसे आग जलाएगी नहीं। वही हाल नफरत फैलाने वालों का है। इसकी ताजा मिसाल उत्तराखंड से सामने आई है। जहां एक भाजपा नेता को अपनी बेटी की शादी कुछ हिंदूवादी संगठनों के दबाव में आकर रद्द करनी पड़ी। याद रहे कि लव जिहाद जैसे शब्दों से समाज में तनाव का माहौल बनाना। प्यार को नफरती खेल का सबब बना देना। द केरला स्टोरी जैसी फिल्मों के फैलाए भ्रम को समाज की असलियत बनाने का काम बीजेपी, संघ, विहिप और बजरंग दल जैसे संगठनों से जुड़े लोग करते रहे हैं। अंतरधार्मिक विवाहों पर किसी तरह रोक लगाना इनका मकसद रहा है, फिर चाहे इसमें दो लोगों या दो परिवारों का भविष्य दांव पर क्यों न लग जाए।

वैसे तो शादी जिंदगी या मौत का सवाल नहीं है, जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ही है। लेकिन भारतीय समाज में लड़की की शादी को लेकर कुछ अधिक भावनात्मक माहौल बना हुआ है। बहुत से घरों में बेटी के जन्म के साथ ही उसे विदा करने की तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं। कई लोग अब भी बेटियों को पराए धन वाली मानसिकता से पालते हैं। उनके जीवन का एक ही लक्ष्य होता है कि किसी अच्छे घर में, धूमधाम से बेटी की शादी हो जाए और फिर उसका जीवन सुखमय बीते। जहां बेटी की डोली उतरे, वहीं से अर्थी उठे, यह सोच समाज का बड़ा वर्ग रखता है। अगर बेटी की शादी में देर हो, तो मां-बाप को सवालों का सामना करना पड़ता है कि क्या लड़की में कोई खोट है। और अगर तय शादी ऐन मौके पर रद्द हो जाए, तो फिर यह मां-बाप के लिए गहरा सदमा होता है। खुद लड़की पर क्या बीतती है, उस अनुभव को तो कोई बयां ही नहीं कर सकता। धार्मिक रूढ़ियों को जीवन से बड़ा मानने और पुरातन विचारों को गर्व से ढोने वाले लोग बेटी की शादी को सबसे बड़ी जिम्मेदारी मानते हैं। कन्यादान को सबसे बड़ा दान। मगर ऐसे ही कुछ लोगों की वजह से उत्तराखंड में पूर्व विधायक और पौड़ी गढ़वाल नगरपालिका के अध्यक्ष यशपाल बेनाम की बेटी की शादी रद्द हो गई।

अगर सब कुछ ठीक चलता रहता, यानी अगर उत्तराखंड सरकार कानून का राज कायम कर पाती, ताकि हरेक नागरिक अपने जीवन को स्वतंत्रता के साथ जी पाए, तो इस 28 मई को मोनिका और मोनिस परिणय सूत्र में बंध रहे होते। मोनिका के पिता यशपाल बेनाम के घर शादी की गहमागहमी रहती। शादी के लिए छपे निमंत्रण पत्र के मुताबिक 28 तारीख को रात आठ बजे से बारात का स्वागत और प्रीतिभोज का कार्यक्रम रखा गया था। मगर अब यह निमंत्रण पत्र बेकार हो चुका है, क्योंकि संविधान की शपथ लेकर चलने वाली सरकार में इतना साहस नहीं है कि वह इस निमंत्रण का मान रख सके। दो बालिगों के अपने मर्जी से जीवनसाथी चुनने के अधिकार की रक्षा कर सके। इस बेकार हो चुके निमंत्रण पत्र को सहेज कर रखना चाहिए, ताकि भावी पीढ़ियां यह देख सकें कि किस तरह देश को 21वीं में भी मध्यकाल की ओर धकेलने की साजिशें की जा रही थीं। श्री बेनाम की बेटी और अमेठी के रहने वाले मोनिस ख़ान, साथ में पढ़ते थे, दोनों ने एक-दूसरे को पसंद किया, उनके घरवालों ने दोनों के विवाह की रजामंदी दी और दोनों परिवारों की सहमति से विवाह के कार्यक्रम तय हुए। लेकिन इस बीच शादी का निमंत्रण पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। जिसमें कट्टरपंथियों को यह बात खटक गई कि एक हिंदू लड़की की शादी एक मुस्लिम लड़के से हो रही है। इस बात को लेकर आपत्ति जतलाई गई तो यशपाल बेनाम ने एक जिम्मेदार पिता की तरह जवाब दिया कि यह 21वीं सदी है और बच्चे अपने फ़ैसले खुद कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अपनी बेटी की खुशी को देखते हुए परिवार ने यह शादी करने का निर्णय लिया है। लेकिन उन्हें इस बात का अंदाज नहीं होगा कि 21वीं सदी में कुछ कट्टरपंथियों के समाज में हावी होने के कारण अब अपने फैसले लेने का अधिकार बच्चों से छीना जा रहा है। ये वही कट्टरपंथी लोग हैं, जो भाजपा के 9 सालों के शासन में नफरत और हिंसा का खाद-पानी पाकर खूब फले-फूले हैं। यशपाल बेनाम भी 2018 से भाजपा से जुड़े हैं, और पौड़ी के इलाके में उनका राजनैतिक रसूख काफी पहले से है। मगर यह रसूख भी उनकी बेटी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाया।

यशपाल बेनाम को इस शादी को लेकर धमकियां मिलीं। बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ताओं ने पौड़ी के जिलाधिकारी को इस शादी को रुकवाने के लिए ज्ञापन सौंपा। कुछ जगहों पर विरोध-प्रदर्शन किया गया। इसके बाद बेटी की पसंद को सबसे ऊपर रखने वाले श्री बेनाम ऐसे असामाजिक तत्वों के दबाव में आ गए। उन्होंने शादी रद्द कर दी और कहा कि हमारे परिवार ने यह फ़ैसला किया,सौहार्द्रपूर्ण माहौल नहीं बन पा रहा है इसलिए यह वैवाहिक कार्यक्रम न किए जाएं। पब्लिक बहुत बड़ी है और अलग-अलग तरह के लोगों के विचार होते हैं इसलिए मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है लेकिन माहौल ऐसा नहीं बन पा रहा था कि शादी करवाई जा सके। यशपाल बेनाम राजनीति में हैं, उन्हें अभी सार्वजनिक जीवन में ही रहना है और संभवत: चुनाव भी लड़ने हों। इसलिए उन्होंने पब्लिक यानी जनता के विचारों को अहमियत दी। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये जनता के विचार हैं, या मुठ्ठीभर गुंडों-मवाली जैसे तत्वों के, जो धर्म की रक्षा के नाम पर आतंक कायम करना चाहते हैं। किसी की निजी जिंदगी में दखल देकर, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करते हैं।
यशपाल बेनाम की बेटी और उनके मंगेतर को कुछ असामाजिक तत्वों के कारण अपनी खुशियां त्यागनी पड़ीं। दो परिवारों को उस तनाव से गुजरना पड़ा, जिसके वे हकदार नहीं थे। इस जोड़े का भविष्य क्या होगा, इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। हो सकता है उन्हें अब अकारण डर के साए में रहना पड़े। विडंबना देखिए यह सब उस उत्तराखंड में हुआ, जहां की धरती शिव और पार्वती के प्रेम की गवाह रही है। यहां कनखल सती का मायका है, जिन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा अपने पति शिव के अपमान से दुखी होकर जान दे दी। फिर अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लेकर फिर से शिव को वरण करने के लिए कठिन तपस्या की। अज्ञात कुल के शिव से विवाह न करने की सलाह मां ने दी, तो देवी पार्वती ने जवाब दिया कि ‘मां! मैंने मन, वाणी और क्रिया द्वारा स्वयं हर का वरण किया है, हर का ही वरण किया है। मैं किसी और का वरण नहीं करूंगी।’ प्रेम की ऐसी कई कहानियां हमारे पौराणिक ग्रंथों में मिल जाएंगी, जो धर्म के साथ-साथ मानवीय गुणों, अधिकारों और कर्तव्यों की उत्तम सीख देते हैं। एक कहानी भस्मासुर की भी है, उसका पाठ भी भाजपा के लोगों को कर लेना चाहिए।

इस पूरे प्रकरण में दो प्रेम करने वालों की हार पहली नजर में दिख रही है, लेकिन असल में ये भाजपा सरकार की हार है, जो कानून का राज बनाए रखने में बुरी तरह असफल हो गई। जो उस जनता के सामने अपना इकबाल नहीं दिखा पाई, जिसने अपने भविष्य की कमान भाजपा पर भरोसा कर उसे सौंपी।

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