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15 जून का दिन पिछले डेढ़ महीनों से आंदोलन कर रहे पहलवानों के लिए महत्वपूर्ण था। इसी तारीख को दिल्ली पुलिस को यौन शोषण के आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करना था। दिल्ली पुलिस ने ऐसा किया भी। राउज़ एवेन्यू कोर्ट में आरोपपत्र दिल्ली पुलिस ने फ़ाइल किया, जिसमें आईपीसी की धारा 354 (महिला का शील भंग करने के इरादे से उस पर हमला), 354-ए (यौन टिप्पणी) और 354 डी (महिला का पीछा करना) जैसी धाराएं आरोपी पर लगाई गई है। इसके साथ ही दिल्ली पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में पॉक्सो प्रकरण रद्द करने की सिफ़ारिश वाली रिपोर्ट दाखिल की है जिस पर कोर्ट विचार करेगा।

दिल्ली पुलिस के मुताबिक पॉक्सो एक्ट रद्द करने की सिफ़ारिश नाबालिग और उनके पिता के बयान के आधार पर की गई है। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि गहन जांच के बाद नाबालिग के आरोपों पर ‘कोई पुख़्ता सबूत नहीं मिले हैं। यानी एक तरह से दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण शरण सिंह को क्लीन चिट दे दी है। इसमें कुछ आश्चर्य भी नहीं है। जब बृजभूषण शरण सिंह पर एफआईआर दर्ज करने में पुलिस जरूरत से अधिक वक्त ले सकती है, तो उसके खिलाफ मजबूत सबूत न होने की बात भी कह सकती है। दिल्ली पुलिस ने तो यौन प्रताड़ना की शिकायत करने वाली महिलाओं से फोटो, वीडियो जैसे साक्ष्य देने की मांग भी की थी। ऐसी गजब की तफ्तीश देखकर हैरानी होती है। मानो महिलाओं, बच्चियों को पहले से पता होता है कि उनके साथ गलत होने वाला है और वे अपने साथ स्टिंग ऑपरेशन का सारा इंतजाम लेकर चलें।

सीधे-सीधे हाथ में कैमरा रहेगा तो कोई भी किसी महिला से बदतमीजी क्यों करेगा। बदसलूकी, अनाचार तो अक्सर तभी होता है जब पीड़िता असहाय अवस्था में हो और उसकी मजबूरी का फायदा उठाया जाए। इसलिए छिपे हुए कैमरा से स्टिंग आपरेशन तो दूर की बात, कोई पीड़िता अपने साथ हुई यौन प्रताड़ना को बयां करने की हिम्मत भी मुश्किल से जुटा पाती है। लेकिन दिल्ली पुलिस उनसे ऐसी घटनाओं के साक्ष्य मांग रही है।

बहरहाल, राउज़ एवेन्यू कोर्ट में अब मामले में सुनवाई की अगली तारीख़ 22 जून तय की गई है और पटियाला हाउस कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई चार जुलाई को होगी। इन सुनवाइयों का क्या नतीजा निकलता है, ये तो बाद में पता चलेगा, फिलहाल आरोपपत्र दाखिल होने के बाद बृजभूषण शरण सिंह के वकील एपी सिंह ने उनका पक्ष रखते हुए कहा है कि वे पूरी तरह से बेकसूर हैं और उन्हें राजनीतिक साज़िश में फंसाया जा रहा है। इस बात का यही अर्थ निकलता है कि जिन पहलवानों को कुछ महीनों पहले तक स्टार खिलाड़ी, देश की शान, गौरव बढ़ाने वाली बेटियां कहा जा रहा था, अब उन्हें राजनैतिक विरोधी माना जा रहा है। उनके आरोपों की निष्पक्ष जांच के बिना ही आरोपी की ओर से बेकसूर होने का दावा किया जा रहा है।

आरोपी के वकील का कहना है कि हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। सच सामने आएगा और हम इस केस में बेकसूर साबित होंगे। क्या न्यायपालिका पर अपना भरोसा साबित करने के लिए उन्हें 4 जुलाई तक का इंतजार नहीं करना चाहिए, ताकि फैसला अदालत की ओऱ से आए, खुद की ओर से नहीं। अगर अपने बेगुनाह होने का इतना यकीन है तो न्यायपालिका में सुनवाई का इंतजार करना चाहिए। इससे पहले ही राजनैतिक साजिश का रोना क्यों रोया जा रहा है।

बृजभूषण शरण सिंह भी अपने कई भाषणों में खुद को निर्दोष बताते रहे हैं। पिछले रविवार को उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी रैली से शक्ति प्रदर्शन किया था और यहां शेरो-शायरी से अपनी बेगुनाही की बात कही थी। इसके साथ ही उन्होंने ये भी बता दिया था कि वह 2024 का लोकसभा चुनाव एक बार फिर अपने कैसरगंज निर्वाचन क्षेत्र से लड़ेंगे। बृजभूषण शरण सिंह ने इस रैली के जरिए बता दिया कि यौन शोषण के गंभीर आरोपों से वे कितने बेखौफ हैं। यह जज्बा किस राजनैतिक व्यवस्था के तहत उन्हें हासिल हुआ, यह सोचने की बात है। क्योंकि राहुल गांधी को तो एक टिप्पणी के कारण अपनी संसद सदस्यता से हटना पड़ा, और यही तय नहीं है कि वे अगला चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं। जबकि बृजभूषण शरण सिंह अभी से ऐलान कर रहे हैं कि वे अगला चुनाव कहां से लड़ने वाले हैं। क्या वे इस बात को लेकर निश्चिंत हैं कि अदालत उन्हें पाक साफ करार देगी।

यह निश्चिंतता आंदोलनरत पहलवानों को क्यों नसीब नहीं हो रही। क्यों उनके चेहरों पर निराशा और हताशा के भाव दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। पिछले दिनों आंदोलनकारी पहलवानों से देश के गृहमंत्री अमित शाह ने काफी देर मुलाकात की। इस में क्या बातचीत हुई, इसका कोई ब्यौरा सामने नहीं आया है। ऐसी गोपनीयता की जरूरत क्यों पड़ रही है। अमित शाह से भेंट के बाद पहलवानों ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से भी मुलाकात की थी, जिसमें सरकार ने पहलवानों से 15 जून तक बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ़ जांच पूरी करने का समय मांगा था। तो क्या अब सरकार बता सकती है कि क्या उसने जांच पूरी कर ली और उस जांच में क्या हासिल हुआ है?

पहलवान साक्षी मलिक ने इस शनिवार को बड़ा ऐलान करते हुए कहा था कि जब तक यह मामला पूरी तरह से नहीं सुलझ जाता, वे एशियाई खेलों में भाग नहीं लेंगी। जबकि बृजभूषण शरण सिंह को पता है कि वो अगला चुनाव कहां से लड़ रहे हैं और खिलाड़ियों को पता ही नहीं कि वे अगला टूर्नामेंट खेल पाएंगे या नहीं। यह स्थिति देश में टूटते भरोसे की गवाह है। वैसे इस समूचे प्रकरण पर तूफान और दीया फिल्म में भरत व्यास का लिखा गीत याद आता है- निर्बल से लड़ाई बलवान की, यह कहानी है दीये और तूफ़ान की।

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