उत्तर पूर्व के संवेदनशील राज्य मणिपुर में पिछले तीन महीनों से जारी हिंसा के खिलाफ केन्द्र व राज्य दोनों ही सरकारों के द्वारा वक्त पर कार्रवाई न करने और बेहद लापरवाहीपूर्ण रवैये का परिणाम आज इस रूप में सामने आ गया है कि यह आग अब दावानल बन चुकी है।
मणिपुर में बिगड़े हालत पिछले सप्ताह जगजाहिर हुए जब एक वीभत्स वीडियो सामने आया था। भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने स्वत: संज्ञान लेकर केन्द्र सरकार से 8 दिनों में जवाब मांगा है। उस दिन संसद का सत्र प्रारम्भ होने के पहले पिछले 9 वर्षों से मीडिया से बचने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बयान देना पड़ा कि ‘वे इस मामले को लेकर क्रोध व पीड़ा से भर गये हैं और किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जायेगा।’ प्रधानमंत्री को बयान इसलिये देना पड़ा क्योंकि शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि ‘वीडियो परेशान करने वाले हैं। अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती तो वह कोर्ट कोई कदम उठायेगी।’ इतना बवाल कटने पर भी अब तक 4 लोग ही गिरफ्तार हुए हैं।
करीब 80 दिनों की चुप्पी के बाद श्री मोदी ने संसद के भीतर विस्तृत वक्तव्य देने की बजाय संसद भवन के बाहर मामले पर केवल 36 सेकंड का बयान देकर बतला दिया कि पूरे विश्व के सामने देश को शर्मसार करने वाली घटनाओं के प्रति वे न तो संजीदा हैं और न ही इसका सियासी लाभ लेने में चूकेंगे। अपनी जिम्मेदारियों से बचते हुए मोदी ने इसे ‘140 करोड़ जनता के लिये शर्मनाक’ बताया। पद की प्रतिष्ठा व गरिमा के एकदम प्रतिकूल प्रधानमंत्री ने बड़े हल्केपन से यह भी कहा कि ‘छत्तीसगढ़ हो या राजस्थान अथवा मणिपुर, कहीं भी ऐसी हिंसा ठीक नहीं है।’ यह दुखद है क्योंकि इन दोनों प्रदेशों (छग-राज.) के हालात ऐसे बिलकुल नहीं है जिनकी मणिपुर से तुलना हो। दरअसल इन दोनों कांग्रेस शासित राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं जहां भाजपा कमजोर स्थिति में है। अपनी नाकामी को ढंकने के साथ हिंसक घटनाओं का दोनों राज्यों में चुनावी लाभ लेने का यह कुटिल प्रयास है।
मणिपुर की सीमा म्यांमार से भी लगती है जहां सैन्य शासन है और वह चीन के प्रभाव में जा रहा है। इस राज्य के रणनीतिक महत्व और मामले की संजीदगी को समझे बिना संसद के बाहर मोदी की ट्रोल आर्मी के सदस्यगण, पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, मंत्री द्वय स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर आदि विपक्ष व खासकर कांग्रेस पर टूट पड़े। वैसे भाजपा की नेता उमा भारती ने समझदारी दिखलाते हुए कहा है कि ‘दो गलत काम मिलकर एक सही नहीं हो सकते।’
पिछले कुछ समय से नरेन्द्र मोदी व भारतीय जनता पार्टी का तेज़ी से गिरता ग्राफ तथा सतत मजबूत होती विपक्षी एकता इस झल्लाहट का राज है। यूरोपियन यूनियन (ईयू) की संसद में तो यह मामला उठा ही था, अब ब्रिटिश पार्लियामेंट ने भी चिंता जताई है कि मणिपुर में सैकड़ों चर्च जलाये गये हैं व हिंसा हो रही है। देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और लोगों की धार्मिक आजादी को बाधित करने को लेकर पश्चिमी देशों में भारत की जमकर आलोचना हो रही है। अपनी पिछली विदेश यात्राओं के दौरान भी श्री मोदी को इन सवालों के जवाब देने पड़े हैं। यह अलग बात है कि श्री मोदी, उनकी सरकार और पार्टी को इसके बावजूद धार्मिक-सामाजिक धु्रवीकरण के चक्कर में मणिपुर की हिंसा को मौन समर्थन दे रहे हैं।
मणिपुर में 4 मई जैसी ही एक और घटना की खबर मिल रही है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पहले ही मान चुके हैं कि ऐसे सैकड़ों मामले वहां हो चुके हैं। वहां की राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उइके भी एक समाचार चैनल को बतला चुकी हैं कि राज्य की परिस्थितियां डरावनी हैं और वे इसकी सूचना ‘ऊपर वालों’ को पहले ही दे चुकी थीं। दूसरी ओर मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई मिजोरम में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। करीब 10 हजार मैतेई मणिपुर व असम लौट गये हैं क्योंकि वहां के पूर्व उग्रवादी संगठन ‘पामरा’ ने मैतेइयों को ‘सतर्क’ रहने को कहा है। यानी हिंसा की सघनता व विस्तार दोनों जारी है। मणिपुर की राज्य समर्थित हिंसा दावानल बन चुकी है। यह अपने उद्गम स्थल मणिपुर में तो सघन हो ही रही है, उसकी दहशत पड़ोसी राज्य मिजोरम तक पसर रही है। इस हिंसा का राज्य में पूर्ण शमन तो ज़रूरी है ही, उसका विस्तार भी रूकना चाहिये।