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-सुनील कुमार॥

छत्तीसगढ़ विधानसभा में अभी एक सवाल के जवाब में सरकार को ये आंकड़े सामने रखने पड़े कि पिछले महीने राज्य में हुए एक अंतरराष्ट्रीय रामायण मेले में मंच पर जिन कलाकारों का प्रदर्शन हुआ था उन्हें कितना भुगतान किया गया। इसमें कुछ मशहूर कलाकारों को 15 से 25 लाख रूपए के बीच दिए गए, और कुमार विश्वास नाम के एक कवि को अकेले ही 60 लाख रूपए दिए गए। इस मंच पर छत्तीसगढ़ के कलाकारों को जो भुगतान किया गया वह सदमा देता है, यहां के एक सबसे मशहूर गायक दिलीप षडंगी को 1 लाख 13 हजार रूपए, दिए गए, किसी और को एक लाख से भी कम, और राज्य के सबसे मशहूर रामनामी सम्प्रदाय के कलाकार गुलाराम रामनामी को 33 हजार रूपए दिए गए। लोगों को अच्छी तरह याद होगा कि इस राज्य का रामनामी सम्प्रदाय ऐसे लोगों का है जिनमें सिर से पैर तक एक-एक इंच जगह पर राम-राम गुदवा लेने वाले लोग हैं, और ये रामचरित मानस का गायन करते हैं, उस पर नृत्य करते हैं, और इनका परंपरागत प्रदर्शन देखने लायक होता है। ये लोग छत्तीसगढ़ के दलित समुदाय के हैं, और इस समुदाय के सबसे चर्चित कलाकार गुलाराम रामनामी से 180 गुना अधिक भुगतान कुमार विश्वास को किया गया!

सरकार का रूख सरकारी ही होता है, फिर चाहे यह भाजपा की सरकार हो, या कांग्रेस की। लोगों को याद होगा कि जब भाजपा सरकार ने 2012 में राज्य स्थापना दिवस पर करीना कपूर को 8 मिनट के डांस के लिए करीब डेढ़ करोड़ रूपए दिए थे, तो कांग्रेस ने इसका मुद्दा बनाया था, और छत्तीसगढ़ी कलाकारों को बढ़ावा न देने, संरक्षण न देने का आरोप रमन सरकार पर लगाया था। अब अगर देखें तो रामायण मेले में छत्तीसगढ़ के रामनामी सम्प्रदाय से अधिक और किसका हक होना था? यह सम्प्रदाय इतना महत्वपूर्ण है कि दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में इस पर शोधकार्य हुए हैं, और इन्हें सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई में जगह-जगह पाठ्यक्रमों में रखा गया। इस समाज के सबसे प्रमुख कलाकार को 33 हजार रूपए देना इतना शर्मनाक है कि वह हक्का-बक्का ही करता है। राज्य के ऐसे बहुत से संस्कृति आयोजन होते हैं जिनमें अखबारनवीसों को आदिवासी नृत्य का निर्णायक बनाया जाता है, और बिना किसी विशेषज्ञता के, बिना जानकार हुए, उन्हें महज महत्व देने के नाम पर घंटे-दो घंटे की मौजूदगी के लिए 25-25 हजार रूपए तक दिए जाते हैं। ऐसे में रामायण मेले में रामनामियों के साथ यह सुलूक छत्तीसगढ़ सरकार की राम-नीति के भी ठीक खिलाफ है। माता कौशल्या के मंदिर का जीर्णोद्धार करके उसे पर्यटन स्थल में बनाने को यह सरकार अपनी एक बड़ी सांस्कृतिक उपलब्धि बताती है। राम वन गमन पथ नाम का एक पर्यटन घेरा बनाने में सरकार डेढ़ सौ करोड़ खर्च कर रही है। ऐसे में बदन के रग-रग पर राम गुदवाकर उसी को अपनी कला-संस्कृति बनाकर चलने वाले समुदाय को कुमार विश्वास जैसे मंच के सतही कवि के मुकाबले धूल सरीखा मेहनताना देना माता कौशल्या को तो बिल्कुल ही नहीं सुहाएगा। अंतरराष्ट्रीय रामायण मेले का यह मंच दुनिया के कई देशों के सामने छत्तीसगढ़ की सबसे समृद्ध राम परंपरा को रखने का मौका भी था, और सरकार के अपने आंकड़े साबित करते हैं कि उसने इस परंपरा के साथ क्या सुलूक किया है।

हैरानी की बात यह है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बढ़ावा देने वाले, और उसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी बनाने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मातहत ऐसा हुआ है। छत्तीसगढ़ के लोक गायक दिलीप षडंगी के एक-एक कार्यक्रम को सुनने के लिए दसियों हजार लोग जुटते हैं, उनके कैसेट लाखों की संख्या में बिकते आए हैं, और उन्हें कुमार विश्वास से दो-ढाई फीसदी मेहनताना अगर दिया गया है, तो इससे अच्छा यह होता कि एक कुमार विश्वास को न बुलाया जाता, और उनकी जगह छत्तीसगढ़ के दस-बीस कलाकारों का ठीक से सम्मान हो जाता। यह तो विधानसभा में जानकारी मांगने की आजादी है, और सरकार की जानकारी देने की मजबूरी है कि रमन सिंह सरकार का करीना कपूर को करीब डेढ़ करोड़ का भुगतान भी उजागर हुआ, और इस बार के रामायण मेले के भुगतान का हक्का-बक्का करने वाला फर्क भी दिखा।

दरअसल बहुत समय से शास्त्रीय कलाओं की तरह ही लोक कलाएं भी धीरे-धीरे करके सरकारों की मोहताज होकर रह गई हैं। एक वक्त लोक कला लोक जीवन का एक हिस्सा होती थी, लोगों के लिए घरों की दीवारें कैनवास रहता था, समाज के त्यौहार और सुख-दुख के दूसरे मौके नृत्य, संगीत, और दूसरे रीति-रिवाजों के मौके रहते थे। बाद में सब कुछ सरकार की मेहरबानी पर टिकने लगा। कई मंत्री-मुख्यमंत्री और अफसर अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ऐसे रहते आए हैं कि उन्होंने सरकारी खजाने से ही शास्त्रीय कलाकारों और लोक कलाकारों को संरक्षण दिया। भोपाल का भारत भवन ऐसा ही एक बड़ा केन्द्र था जिसे उस वक्त के मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह और उनके संस्कृति सचिव अशोक वाजपेयी ने तैयार किया था, और जिसने देश के कला नक्शे पर एक अनोखी जगह बनाई थी। हमने उस वक्त के उसके खाता-बही नहीं देखे हैं, और हो सकता है कि उस वक्त भी भुगतान या मेहनताने में इस किस्म का फर्क रहा हो, लेकिन जहां तक याद पड़ता है, एक-एक लोक कलाकार को उसकी कलाकृति के लिए उसकी मांग और उम्मीद से बहुत अधिक भुगतान किया गया था।

कोई सरकार अगर स्थानीय संस्कृति या लोक कलाकारों को बढ़ावा देने की बात करती है, तो उसे बाहर से सितारा कलाकारों को बुलाने का मोह छोडऩा चाहिए। रामायण मेले में रामायण का मंच प्रदर्शन करने वाली देश-विदेश की टीमों का आना तो ठीक था, लेकिन कुमार विश्वास सरीखे नए राम-प्रवचनकर्ता को इतना बड़ा दाम देकर लाना, और स्थानीय लोगों को कुछ टुकड़े डाल देना बहुत ही खराब फैसला था। किसी भी संवेदनशील सरकार को इससे बचना चाहिए, यह एक अलग बात है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पिछले दस-बीस बरस से इसी लायक मान लिया गया है कि कोई आईएफएस अफसर उसे जंगल की तरह चलाए। एक वक्त था जब मध्यप्रदेश में कला और संस्कृति को लेकर सरकारें संवेदनशील दिखती थीं, अब यह बात वहां भी खत्म हो गई, और छत्तीसगढ़ में भी खत्म हो गई। यह तो अच्छा हुआ कि विधानसभा में यह बात उठी, और लोगों को इस बारे में सोचने का मौका मिलेगा, और स्थानीय लोक कलाकारों को भी अपनी हैसियत पता लगेगी।

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