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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

बिहार में जातिगत जनगणना के सार्वजनिक किये गये आंकड़ों से देश का राजनैतिक परिदृश्य पूर्णत: बदल जाने का अनुमान है। इसका असर अति पिछड़े एवं पिछड़े वर्गों को लेकर होने वाले सियासी गणित पर तो पड़ेगा ही, विमर्श भी ध्रुवीकरण की बजाय सशक्तिकरण की राह पकड़ लेगा। अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय जनता पार्टी के लिये सबसे बुरा समाचार साबित होने जा रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रिपोर्ट कार्ड इस मामले में बेहद खराब है।

भाजपा का सबसे बड़ा नुकसान तो यह होगा कि उसका एक विशाल वोट बैंक उसकी झोली से सरक जायेगा। एकाध साल पहले की बात होती तो मामला दूसरा होता। तब ‘मोदी नहीं तो कौन’ का सवाल उठा दिया जाता था। अबकी ऐसा नहीं है। लगभग एक दशक तक कई उतार-चढ़ाव देखने के बाद कांग्रेस लय में लौट आई है और उसके साथ अन्य 27 दल दमदारी से खड़े हैं जिन्हें इस बदले हुए सियासी माहौल का फायदा इसलिये मिलेगा क्योंकि यह मांग (जातिगत जनगणना की) इसी कुनबे से आई है। दूसरी ओर भाजपा इसे नकारती रही है। जो भी हो, इस साल के 5 राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनावों पर तो इसका असर पड़ेगा ही, बावजूद इसके कि ज्यादातर में भाजपा की स्थिति वैसे भी नाज़ुक है, लोकसभा-2024 का चुनावी विमर्श भी इसी के इर्द-गिर्द घूम सकता है।

बिहार में जातिगत जनगणना के निष्कर्ष गांधी जयंती पर बिहार सरकार द्वारा सार्वजनिक कर दिये गये। अनुमानों के काफी नज़दीक के निकले इन आंकड़ों ने बतलाया कि राज्य में 36 प्रतिशत अति पिछड़ा, 27 फीसदी पिछड़ा, 19.65 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं 1.68 फीसद अनु. जनजाति के लोग हैं। यानी कि अति पिछड़ा व पिछड़ा वर्ग मिलकर 63 फीसदी हो जाते हैं। अगर उनमें अनु. जाति व अनु. जनजाति को मिलाया जाये तो यह आंकड़ा 84 फीसद हो जाता है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस एवं उसके सहयोगी तमाम दल ‘जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के लिये आवाज़ उठाते आ रहे हैं। चूंकि कोविड-19 के चलते वर्ष 2021 में जनगणना नहीं हो सकी थी, इसलिये केन्द्र सरकार इसके आंकड़े उपलब्ध न होने के बहाने करती रही है। वैसे अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान और पिछले दिनों लोकसभा के सत्र में भी राहुल गांधी ने कहा था कि अगर मौजूदा सरकार 2011 की जनगणना के आधार पर आरक्षण नहीं करती तो उनकी सरकार के आने पर ऐसा किया जायेगा। बिहार के नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव की जनता दल यूनाइटेड-राष्ट्रीय जनता दल सरकार ने इस मामले पर लीड लेते हुए जातिगत जनगणना करा डाली।

इसका असर दूर तलक इसलिये जायेगा क्योंकि पिछड़े वर्ग ही एक तरह से भाजपा का मुख्य काडर है। अब उसकी अपेक्षा भाजपा से बढ़ेगी। चूंकि यह दल मनुवादी व्यवस्था से चलता है, जिसमें सवर्णों के अलावा अन्य जातियों के प्रति या तो प्रेम है ही नहीं अथवा है भी तो दिखावा मात्र। ऐसे वर्णों में गैर हिन्दू, दलित एवं पिछड़े वर्ग आते हैं, इसलिये भाजपा नेतृत्व के लिये यह सम्भव ही नहीं होगा कि वह ओबीसी को अधिकार सम्पन्न करेगी। इसकी कमान अब भी ऊंची जातियों के लोगों के हाथों में होने से वे ऐसा होने नहीं देंगे।

फिर, भाजपा की नकेल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों में होने से वह ऐसा कुछ भी करने की इज़ाज़त नहीं देगा जिससे उच्च वर्णों का महत्व कम हो। इस तरह देखें तो भाजपा जातिगत जनगणना के भंवर में फंसती नज़र आ रही है। भाजपा की दिक्कत यह है कि उसने केन्द्र में पिछले साढ़े नौ वर्षों के अपने शासनकाल में लोगों के सशक्तिकरण की दिशा में कुछ भी नहीं किया है। कहने को वह कुछ समय में भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था या पांच ट्रिलियन इकानॉमी बनाने और 2047 तक दुनिया का इसे सबसे विकसित देश बनाने का दावा करती है लेकिन वास्तविकता यही है कि देश बदहाल है। लोगों की माली हालत बहुत खराब हो गई है।

शासकीय नौकरियां निकल नहीं रही हैं और दिखावे के लिये मोदी जो थोड़े से नियुक्ति पत्र वर्चुअली बांटते हैं, वह ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं है। हर साल 2 करोड़ रोजगार देने के वादे के कहीं आसपास भी सरकार नहीं है और जनसंख्या में सबसे बड़ा वर्ग होने के नाते ओबीसी ही सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। एक-एक कर तमाम शासकीय उपक्रमों के होते निजीकरण ने नौकरियां ही खत्म कर दी हैं तो आरक्षण कहां से मिलेगा? भाजपा की आशंका यह भी हो सकती है कि अगर ओबीसी वर्ग को अपने हकों का एहसास हुआ तो वह रोजगार सृजित करने की मांग जोर-शोर से उठाएगा और भाजपा सरकार उसकी यह मांग पूरी न कर सकी तो उसका वोट बैंक उससे छिटक सकता है। अब यह मांग देशव्यापी भी हो सकती है क्योंकि अनेक ऐसे राज्य हैं जहां स्पष्टतया ओबीसी बहुमत में हैं। नीतीश कुमार ने एक तरह से लोगों के सामने पिटारा खोल दिया है और उसमें पड़े उपहार जनता को बांटने के लिये इंडिया गठबन्धन तैयार बैठा है।

इस जनगणना के जारी आंकड़ों से इंडिया का उत्साहित होना स्वाभाविक है। राहुल गांधी ने तो इसके सार्वजनिक होने के बाद दी प्रतिक्रिया में कहा है कि इसे क्रियान्वित करना उनका प्रण है। इसका संदेश अन्य राज्यों के ओबीसी वर्गों तक जायेगा। सामने मिल रहे तत्काल लाभ को छोड़कर वे न तो विश्व की तीसरी सबसे बड़ी इकानॉमी बनने का इंतज़ार करेंगे न ही उसके 5 ट्रिलियन के आकार वाली अर्थव्यवस्था बनने का। स्वाभाविक है कि यह वर्ग 2047 का भी इंतज़ार नहीं करेगा। भाजपा संकट में है।

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