मजीठिया वेजबोर्ड की कानूनी लड़ाई के मैदान पर स्वर्गीय एआर हरीश शर्मा की तैयार पिच पर कर्मियों के मजबूत इरादों, एआर राजुल गर्ग के खेल और ऐन टाइम पर रविंद्र अग्रवाल की दस्तावेजों की मांग की गुगली से जागरण प्रबंधन चारों खाने चित्त हो गया। मैदान पर जागरण का तुरप का पता 20जे भी कहीं टिक नहीं पाया। 17-2 पर जागरण खुद हिट विकेट हो गया। 7 साल का संघर्ष सोमवार को नोएडा के 57 कर्मियों के जीवन में मुस्कान लेकर आया और जागरण के लिए ब्याज समेत लगभग 18 करोड़ की देनदारी।
इस संघर्ष की शुरुआत तो 2014 में ही पड़ गई थी, जब दैनिक जागरण ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कर्मचारियों को मजीठिया बेजबोर्ड का लाभ नहीं दिया। जिसके बाद कर्मचारियों ने जागरण प्रबंधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर संघर्ष का बिगुल बजा दिया था। इसके बाद अवमानना का केस लगाने वाले और पुराने कर्मचारियों को परेशान करने का सिलसिला तेज हो गया। परंतु कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और फरवरी 2015 में नोएडा में अपनी एकजुटता का जबरदस्त प्रदर्शन किया और जिन कर्मचारियों का तबादला कर दिया गया था, प्रबंधन द्वारा उनके तबादले लैटर वापस लिए गए और जो किसी दूसरे सेंटर पर थे, उन्हें वापस नोएडा लाया गया। कई साल पहले वेजबोर्ड के लिए की गई हड़ताल को जेबी यूनियन का गठन कर जागरण खत्म कर चुका था और अपनी देनदारी से बच निकला था। परंतु इस बार कर्मचारियों के इरादे कुछ और ही थे। उन्होंने जागरण के इतिहास में 2015 में पहली बार खुद की पंजीकृत यूनियन का गठन किया। जिससे बौखलाया जागरण प्रबंधन इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण में चला गया। इससे भी कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और अपने प्रतिनिधियों का चयन कर लड़ाई जारी रखी। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बीच कर्मचारियों ने डीएलसी में मजीठिया की मांग को लेकर देने के लिए फार्म सी भरना शुरू किया, जिससे घबराए तत्कालीन सीजीएम खुद कोर कमेटी के सदस्य की मेज से भरे हुए फार्मों का बंडल लेकर चले गउ। इससे भी कर्मचारियों के हौसले पर कोई कमी नहीं आई और उन्होंने बड़ी संख्या में फार्म सी भरकर नोएडा डीएलसी में जमा करवाएं।
प्रबंधन लगातार दवाब बनाने का प्रयास करता रहा, जिसके बाद कर्मचारियों ने 8 जून 2015 को एक मांगपत्र प्रबंधन को सौंपा। उसके बाद 29 जून को कर्मचारियों के प्रतिनिधियों की तरफ से एक बार फिर प्रबंधन को पत्र सौंपा गया जिसमें 16 जुलाई को 24 घंटे की हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी गई थी। इसके बाद कर्मचारी काम के दौरान काली पट्टी बांध कर मौन व्रत पर चले गए और अपनी जबरदस्त एकजुटता दिखाई। परिणामस्वरूप 14 जुलाई 2015 को डीएलसी नोएडा में देररात चली वार्ता के दौरान समझौता हुआ। जिसमें अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर उसे लागू करने की बात कही गई। जिसके बाद कर्मचारियों ने अपना हड़ताल को नोटिस वापस ले लिया।
अंदर ही अंदर खार बैठे जागरण प्रबंधन ने एक बार फिर दबाव बनाने के लिए 2 महिला कर्मियों को निकाल दिया। जिसके विरोध में एक बार फिर कर्मचारियों ने जबरदस्त एकजुटता का परिचय दिया। जिससे घबराए जागरण प्रबंधन ने इष्टदेव, रतन भूषण, विवेक त्यागी, सीपी पाठक, प्रदीप कुमार तिवारी समेत 16 कर्मचारियों को बिना जांच किए सीधे नौकरी से निकाल दिया। इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों के प्रतिनिधि थे। इसका भी असर कर्मचारियों पर नहीं पड़ा और वे प्रबंधन के खिलाफ एकजुट खड़े रहे और वे 2 अक्टूबर 2015 को गांधी जयंती के मौके पर मजीठिया को लेकर एक मांगपत्र देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति गए। जिसके बाद आनन-फानन में प्रबंधन ने लगभग 200 कर्मचारियों की गेट पर नो एंट्री लगा दी और कार्यालय के बाहर भारी पुलिस बल तैनात करवा दिया। प्रबंधन यहीं नहीं रूका और नोएडा के 200 कर्मचारियों समेत हिसार, लुधियाना, जालंधर व धर्मशाला के लगभग 350 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया और फरवरी-मार्च 2016 में बिना जांच पूरी किए ही उनकी अवैध बर्खास्तगी कर दी।
बर्खास्तगी के बाद भी कर्मचारियों ने हार नहीं मानी और कानूनी लडाई के मैदान पर वे अंगद की तरह पांव की जमाए खड़े रहे। जिसका सुखद फल सोमवार, 7 नवंबर को नोएडा की माननीय अदालत ने 57 कर्मचारियों के पक्ष में अपना फैसला सुनाकर दिया। नोएडा लेबर कोर्ट में अभी बाकी कर्मचारियों की सुनवाई जारी है और जल्द ही उनका भी फैसला आ जाएगा।
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